लखनऊः किसान खुद नहीं बता पा रहे हैं कि आखिर मसूर जैसी दाल को बोने में वह कैसे पीछे रह गए, जबकि यह सभी दालों में सबसे ज्यादा पौष्टिक मानी जाती है। यह ऐसी दलहनी फसल है, जो कि हमारे यहां दो दशक पहले खूब बोई जाती थी। इसके अलावा इसमें ऐसे भी गुण हैं, जो किसानों को ज्यादा आराम और बचत देते हैं। बारिश से ही खेत की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया जाता है, क्योंकि यह सितंबर के अंत या अक्टूबर-नवंबर में बोई जाने वाली फसल है।
मसूर ऐसी दाल है, जो साल भर बिकती है। इसमें ऐसे तमाम लाभदायक तत्व हैं, जो इसकी खूबियां गिनाने के लिए काफी हैं। साल भर इस्तेमाल की जाने वाली दाल को अब हर दिन बोने के लिए किसान भी तैयार रहते हैं। यह मुमकिन इसलिए हुआ क्योंकि फसलों की गुणवत्ता, उसकी खपत, अधिक लाभ के लिए पृष्ठभूमि और जोखिम से बचने के रास्ते भी हर दिन खुल रहे हैं। पहले मसूर को केवल दाल और उसके स्वाद के लिए जाना-पहचाना जाता था लेकिन अब मसूर का बाजार में विस्तार हो रहा है। फसल के डम्प होने का डर नहीं है। अदला-बदली की जगह आर्थिक क्रय-विक्रय के क्षेत्र खुले हैं। इस्तेमाल किए जाने वाले क्षेत्र तथा इसके गुणों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
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