अब स्मार्ट सिटी के कार्यों की कदम-कदम पर होगी जांच, सख्त हुए नगर आयुक्त

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लखनऊः स्मार्ट सिटी योजना की रफ्तार इतनी धीमी है कि अब आला अधिकारियों को इसकी निगरानी खुद करनी पड़ रही है। निर्देश देकर थक चुके नगर आयुक्त ने बीते महीने बनाई गई कार्यान्वयन समिति को बड़ी जिम्मेदारी दी है। इस समिति से कहा गया है कि वह निर्माण स्थल पर जाकर हर सप्ताह के काम की समीक्षा करें और उसकी गति बढ़ाने के लिए कार्यदाई संस्था को बाध्य करें। कार्यान्वयन समिति का गठन इसलिए किया था, ताकि वह अपनी रौ में रहे। इसके बाद भी महीनों बीत चुके हैं और संस्था अपना काम नहीं कर पा रही हैं। जिलाधिकारी और मंडलायुक्त के लिए भी अधूरे काम परेशानी बन चुके हैं। इस सम्बंध में कई बार बैठकें भी हो चुकी हैं, इसीलिए एक बार फिर नगर आयुक्त अपने मातहतों को यह निर्देश देने के लिए विवश हुए हैं कि कार्यान्वयन समिति निष्ठा का पालन करे और जो काम कार्यदाई संस्था कर रही है, उसके हर पहलू की जांच कर काम गतिशील कराएं। इस बात की जानकारी भी करें कि काम की गति इतनी धीमी क्यों रही है। कई स्थान ऐसे हैं, जहां पर अधूरे काम होने से लोगों को परेशानी हो रही है।

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नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह का कहना है जो निगरानी टीम बनाई गई है, वह खुद परियोजनाओं की जानकारी करें और इसकी रिपोर्ट उन्हें दें। स्मार्ट सिटी योजना के तहत शहर के चैराहों का सुंदरीकरण करना है। इनमें से वह चैराहे भी हैं, जहां पर पहले भी काम हो चुका है। योजनानुसार करीब 53 करोड़ खर्च कर कई काम किए जाने हैं। जो काम 30 जून 2022 को पूरे होने थे, वह अभी तक लटके हुए हैं। इसमें अभी और कितना समय लगेगा, यह भी तय करना संस्था के बस की बात नहीं है। 15 दिसंबर 2021 को जिन कार्याें का लक्ष्य दिया गया था, वह 2022 में पूरे किए जाने थे लेकिन संस्था की काम करने की गति इतनी सुस्त रही कि आज भी निर्धारित शहर की तमाम सड़कों को स्मार्ट नहीं बनाया जा सका है।

हालत यह है कि गड्ढों पर चल-चल कर लोग इतने परेशान हो चुके हैं कि वह सड़कों पर निकलना नहीं चाहते हैं। करीब 276 करोड़ रुपए खर्च कर सड़कों को स्मार्ट किया जाना था। 2019 में इस काम के लिए आदेश पारित हुए थे, लेकिन अभी तक इनमें गड्ढे ही गड्ढे हैं। डीएम दफ्तर की पार्किंग भी कच्छप गति से बन रही है। हालांकि, अब नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह के तेवर काफी सख्त हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि कार्यदाई संस्था को जल्द ही अपने अधूरे काम पूरे करने होंगे। मौके पर जाकर अधिकारी देखेंगे कि काम चल रहा है या नहीं।

  • शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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