Thursday, October 24, 2024
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Homeउत्तर प्रदेशकार्यशाला में सिखाई पानी से रंगोली बनाने की कला

कार्यशाला में सिखाई पानी से रंगोली बनाने की कला

लखनऊ: फूलों और रंगों की रंगोली के बारे में सबने सुना और देखा होगा, लेकिन पानी पर रंगोली बनाने की बात तो आपने शायद ही सुनी होगी। हालांकि महाराष्ट्र में यह पहले से ही पुष्पित-पल्लवित है। अब उत्तर प्रदेश में इस कला के विकसित होने के आसार दिखाई पड़ रहे हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र स्थित राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के क्षेत्रीय केंद्र मेें आज यानि बृहस्पतिवार से पानी पर रंगोली बनाने की कार्यशाला शुरू हुई।

जलगांव से आई गीता मोहन रावले रंगोली बनाने का प्रशिक्षण दे रही हैं। कार्यशाला का आयोजन उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान व राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के क्षे़त्रीय केंद्र की ओर से किया गया है। मुख्य अतिथि प्रोफेसर अनुज तिवारी, राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के क्षे़त्रीय केंद्र के सचिव डॉक्टर देवेंद्र त्रिपाठी, उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने दीप प्रज्जलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया।

महाभारत काल से विकसित है पानी पर रंगोली बनाने की कलाः

इस अवसर पर कार्यशाला प्रशिक्षिका गीता मोहन रावले ने बताया कि पानी पर रंगोली बनाने की परम्परा महाराष्ट्र में तो काफी विकसित है। वहां काफी लोग इसे जानते भी है। उन्होंने बताया कि हमारा ड्राइंग विषय रहा है, इसलिए हमे इसे सीखने में कोई परेशानी नहीं हुई। गीता मोहन ने बताया कि पानी पर रंगोली बनाने की परम्परा महाभारत काल की है। जब दुर्योधन को पानी को जमीन और जमीन को पानी समझने का भ्रम हो जाता है और वहां पानी पर गिर जाता है, जिस पर द्रौपदी हंस देती है और महाभारत हो जाती है। उन्होंने पानी पर देवी लक्ष्मी के पांव, कमल पुष्प, गणेश जी आदि शुभ चिन्हों को बनाकर दिखाया।

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इस अवसर पर उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने कहा कि रंगोली बनाना हमारी प्राचीन परम्परा है। घरों में महिलाएं ऐपन से रंगोली बनाती थी। लेकिन पानी पर रंगोली बनाने की कला अभी उत्तर प्रदेश में नहीं है। आगारा में सांझी के नाम कुछ काम होता है। इसलिए इसको सिखाने के लिए इस कार्यशााल का आयोजन किया गया है।

राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के क्षे़त्रीय केंद्र के सचिव डॉक्टर देवेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि रंगोली बनाने की कला बडी प्राचीन है। हड़प्पा मोहन जोदड़ो में अल्पनाएं देखने को मिली है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि हमारे यहां मूर्तिकला, सेरेमिक की वर्कशाप चलती रहती है। हमारा प्रयास है पानी पर रंगोली बनाने की जो तकनीकि है, उसे यहां के विद्यार्थी भी सीखे। इस कार्यशाला में कला शिल्प महाविद्यालय लखनऊ, डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, गोयल इंस्टीट्यूट ललित कला विभाग, नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजकीय महिला महाविद्यालय, बाबू त्रिलोकीनाथ इंटर कॉलेज, काकोरी केंद्रीय विद्यालय, अलीगंज एवं बहुत से स्वतंत्र कलाकारों ने भाग लिया।

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