पुणे: बर्फीले और ठंडे प्रदेश में ही अब तक सेब उत्पादन लिया जाता रहा है लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने अब सेब की ऐसी किस्मों को तैयार किया है जिनसे 45-50 डिग्री के गर्म प्रदेशों में इस फल की पैदावार ली जा सकेगी। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किस्मों को विदर्भ के उस क्षेत्र में जहां का तापमान 40-45 डिग्री रहता है, वहां इसकी पैदावार ली जा चुकी है। यही वह क्षेत्र है जहां के किसान आत्महत्या के लिए जाने जाते हैं और अब सेब की यह किस्म इन किसानों के जीवन को खुशहाल कर सकेगी।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सेब की नई किस्मों की जानकारी पाकर अकोला क्षेत्र के संतोष वानखेड़े हिमाचल प्रदेश से इन किस्मों के पौधे लाकर अपनी खेतों में लगाया। अब इन सभी पौधों से उसका दो एकड़ का खेत हरा-भरा होने के साथ फल-फूल रहा है। संतोष के खेत में सेब उत्पादन होता देख अन्य किसान भी इन किस्मों को अपने खेतों में लगाने की तैयारी में जुट चुके हैं। विदर्भ ऐसा क्षेत्र है यहां का तापमान 45 डिग्री से ऊपर भी हो जाता है।
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आघारकर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक दीपेंद्र वाडकर भी इन एचआरएम99, अन्ना, डोरसेट गोल्डन नाम की इन तीन प्रजातियों की पुष्टि करते हुए बताते हैं कि ये 48-50 डिग्री सेल्सियस की धूप में भी लहलहाएंगे। सन्तोष के यहां लगाए पौधे पिछले वर्ष की तेज धूप में भी जिंदा रहे और रसायनिक उर्वरक के बजाय जैविक खाद से इनकी अच्छी देखभाल की गई।
अकोला देउलगाव के सन्तोष ने बताया कि सोशल मीडिया द्वारा हिमाचल प्रदेश के अलावा राजस्थान के कुछ किसानों से संपर्क किया और उससे सेव की नई किस्मों की जानकारी मिली। उसने तय किया कि अगर जैसलमेर-बाड़मेर जैसे इलाके में सेब की खेती हो रही है तो अकोला में भी वे खेती करेंगे। इसी सोच के साथ उसने अपने खेत में इन नई किस्मों के पौधे लगाए और अब वह सफल हुआ है। महाराष्ट्र के इस क्षेत्र के किसान कपास, सोयाबीन, अरहर, चना, ज्वार की पैदावार के अलावा फलों में संतरे, अनार, मौसमी, नींबू की उपज भी लेते हैं, लेकिन अब सेव की खेती के सफल प्रयोग से विदर्भ के इस किसान को नई पहचान मिली है। अन्य किसान भी ऐसी फसल लगाने के लिए आगे आने लगे हैं।
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