Tuesday, December 17, 2024
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Homeआस्थाबड़प्पन अमीरी में नहीं बल्कि ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित

बड़प्पन अमीरी में नहीं बल्कि ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित

नई दिल्लीः ‘अनमोल’ का अर्थ होता है जिसका कोई मोल न हो। हमारे जीवन में विचारों का बहुत बड़ा महत्व होता है और निरंतन अध्ययन से नित नए विचारों का जन्म भी होता है। जब व्यक्ति सफलता-असफलता के भंवर में गोते लगा रहा होता है, तो महापुरूषों के विचार ही उसे खेवैया बनकर किनारे लगा सकते हैं। भारतीय इतिहास में तमाम महापुरूष हुए और उन्होंने अनमोल विचारों का संग्रह भी किया, जो आज इस आधुनिकता के दौर में भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे, जिन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उन्होंने समाज की भलाई तथा उनके चारित्रिक व सांस्कृतिक उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनके विचार आज भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं और उनमें से हम काफी कुछ अपने जीवन में उतार कर वृहद परिवर्तन की ओर बढ़ सकते हैं। पंडित श्रीराम शर्मा कहते हैं कि इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएं ही हैं ’एक दुख और दूसरा श्रम’। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता है कि दान में कितनी मिठास है। जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है। असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, किसी की भी अंधभक्ति उचित नही है। केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं, जो अदृश्य को भी देख लेते हैं। मनुष्य की वास्तविक पूंजी धन नहीं, विचार हैं। जब मनःस्थिति बदलती है, तभी परिस्थिति भी बदलती है। रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा।

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संसार का सबसे बड़ा दिवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया। समाज के हित में अपना हित है। सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाए। विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। अवसर तो सभी को जिंदगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ लोग ही कर पाते हैं।

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