जनादेश से नीतीश का विश्वासघात

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बिहार में भाजपा और जेडीयू गठबंधन को पांच वर्ष सरकार चलाने का जनादेश मिला था। मगर सुशासन बाबू और जेडीयू नेता नीतीश कुमार जनादेश का अपमान कर नए साथियों के साथ आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर गदगद नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों के साथ विश्वासघात किया है। इस समय अनेक क्षेत्रीय नेता अगले लोकसभा चुनाव के हसीन सपने देख रहे हैं। इसमें उन्हें देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल युग की वापसी नजर आ रही है। सपने को सच मानते हुए सभी क्षत्रप एक-दूसरे को पछाड़ने में लगे है। कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है। ममता बनर्जी और शरद पवार भी अभी से कमान अपने नियंत्रण में रखने की कवायद कर रहे है। यह सही है कि भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए उनकी छवि सुशासन बाबू के रूप में स्थापित हुई है। उनके ऊपर घोटालों और परिवारवाद के आरोप नहीं हैं। इसलिए उनकी भी महत्वाकांक्षा जागृत हुई है। विपक्षी गठबंधन में वह अपने लिए बड़ी भूमिका देख रहे हैं। इसके लिए राजग से अलग होना आवश्यक था। एक बार फिर वह उस पाले में पहुंच गए जहां से वह अलग हुए थे।

नीतीश कुमार ने पहली बार पलटी नहीं मारी है। पहले भी वह राजद के साथ चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री बने थे। तब लालू यादव के दोनों पुत्र उनके मंत्रिमंडल में थे। नीतीश कुमार उनके साथ काम करने का अनुभव भूले नहीं होंगे। कुछ महीने में उनकी हिम्मत जबाब देने लगी थी। ईमानदारी से सरकार चलाने की संभावना समाप्त हो रही थी। नीतीश को अपनी गलती का अनुभव हुआ। वह पुनः राजग में लौट आए थे। तब उन्होंने कहा था कि वह मिट्टी में मिल जाएंगे, लेकिन राजद से कभी समझौता नहीं करेंगे। इसके बाद नीतीश कुमार का राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के साथ निजी आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चलता रहा। अब एक बार नीतीश ने अपने लिए वही स्थिति स्वीकार की है, जिसे उन्होंने अपने जीवन की बड़ी भूल बताया था।

राजद के साथ आने से उनके पास बहुमत तो है पर विश्वसनीयता नहीं है। इस बार तो जेडीयू का संख्याबल भी कम है। नीतीश कुमार इस समय उद्धव ठाकरे की राह पर हैं। विधानसभा चुनाव में बिहार में लालू यादव की विरासत को जनादेश नहीं मिला था। कई वर्ष पहले ही राजद बिहार की राजनीति में हाशिये पर चला गया था। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उसका संख्या बल बहुत कमजोर हो गया था। पिछले आम चुनाव के पहले नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए थे। उन्होंने राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। राजद और कांग्रेस के सहयोग से नीतीश मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन कांग्रेस और लालू के दबाव में वह कमजोर हो गए थे। लालू पर घोटालों के जैसे गहरे दाग थे, वह उनके उत्तराधिकारियों तक पहुंच गये थे। लालू ने अपने पुत्र तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री व दूसरे पुत्र तेजप्रताप को कैबिनेट मंत्री बनवाया था। इन पर मॉल निर्माण में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। इसे बिहार का सबसे बड़ा मॉल बताया जा रहा था। यह मसला कुछ शांत हुआ तो तेजस्वी के खिलाफ अवैध संपत्ति के मामले खुलने लगे। इनके साथ सरकार चलाने से नीतीश की छवि धूमिल हो रही थी। तेजस्वी, मीसा और उनके पति की बेनामी संपत्ति का खुलासा हो रहा था। अन्य परिजनों के पास भी बेनामी संपत्ति की चर्चा शुरू हुई है। तब सोनिया गांधी व राहुल गांधी बिहार की नीतीश सरकार को चलाना चाहते थे, जैसी संप्रग सरकार को चला रहे थे। इसके बाद नीतीश को अपनी छवि की चिंता हुई । उन्हें अनुभव हुआ कि कांग्रेस और राजद के साथ उनका गठबंधन अस्वाभाविक था। इससे केवल नीतीश का ही नहीं बिहार का भी नुकसान हुआ।

बिहार को जंगलराज से बाहर निकालने का श्रेय राजग सरकार को है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में विकास का माहौल बनाया। कोसी महासेतु परियोजना कांग्रेस सरकार के समय से लंबित थी, इसको पूरा कराया गया। मुद्रा योजना के तहत रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए। इस योजना के तहत बिहार को करीब एक लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं। गांव किसान, गरीब, पिछड़ों, दलितों आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। छोटे किसानों, पशुपालकों मत्स्यपालक के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा लाई जा रही है। इसके लिए सरकार बीस हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसका लाभ बिहार के किसानों को भी होगा। कृषि कानून में सुधार से किसानों को लाभ मिलेगा। उन्हें खेत के पास भंडारण की सुविधा मिलेगी। बिहार में मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेज और एम्स खोले जा रहे हैं। बिहार को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जोड़ा जा रहा है। बिहार प्रधानमंत्री ऊर्जा योजना से लाभान्वित हुआ। जलालगढ़ अररिया होते हुए गैस पाइपलाइप बिछाने का काम चल रहा है। फारबिसगंज जोगबनी या फारबिसगंज सीतामढ़ी हाइवे का निर्माण महत्वपूर्ण है। पूर्णिया में एयरपोर्ट के विस्तारीकरण की प्रक्रिया भी चल रही है। गलगलिया अररिया रेललाइन का काम भी चल रहा है। बिहार में गैस ग्रिड का विस्तार हो रहा है।

इसके उलट राजद के पंद्रह वर्षीय शासन में बिहार जंगलराज के रूप में चर्चित हुआ था। बिहार परिवारवाद जातिवाद और घोटालों में जकड़ गया था। राजग की सरकार ने बिहार को इस नकारात्मक छवि से बाहर निकाला था। नीतीश कुमार राजग सरकार के मुखिया थे। बिडंबना यह कि वही नीतीश कुमार बिहार को एक बार फिर जंगलराज की तरफ ले जाने वाली पार्टी की शरण में चले गए हैं। चर्चा है कि कुछ दिन पहले नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के दरबार में पेश हुए थे। उन्होंने राजग से अलग होने की उनको जानकारी दी थी। इसी के साथ यह निवेदन भी किया था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनको ही आसीन रखा जाए। आरोपों से घिरी राजद के लिए सत्ता में भागीदारी भी फिलहाल कम नहीं है। नीतीश ने दबाव से परेशान होकर राजद को छोड़ा था। एक बार फिर वह उसी खेमे में पहुंच गए है। अब कांग्रेस और राजद के साथ वह कितने सम्मान के साथ सरकार चलाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री