बिहार राजनीति

नीतीश सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए किया सभी वर्गो को संतुष्ट करने का प्रयास

Bihar CM Nitish kumar.

पटनाः बिहार में पिछले साल नवंबर में बनी नीतीश सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हो गया। मंत्रिमंडल विस्तार में 17 नए मंत्री बनाए गए हैं। मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (युनाइटेड) ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। भाजपा और जदयू ने शाहनवाज हुसैन और जमां खान को मंत्री बनाकर जहां अल्पसंख्यकों को खुश करने की कोशिश की है, वहीं भाजपा ने नितिन नवीन को मंत्री का दायित्व देकर कायस्थ वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। गौरतलब है कि दोनों दलों में से एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचा था। शाहनवाज हुसैन को विधान परिषद पहुंचाया गया तथा जमां खान बहुजन समाज पार्टी से जदयू में शामिल हुए हैं।

मंत्रिमंडल विस्तार में ऐसे तो सभी जाति से आने वाले नेताओं को मंत्री बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन सबसे अधिक राजपूत जाति को तवज्जो दी गई है। राजपूत जाति से आने वाले चार लोगों को मंत्री बनाया गया है। भाजपा और जदयू ने दो-दो राजपूत नेताओं को मंत्री बनाकर सवर्णो पर भी विश्वास जताया है। भाजपा ने जहां नीरज कुमार बबलू व सुभास सिंह को मंत्री बनाया, वहीं जदयू ने लेसी सिंह और जमुई से निर्दलीय विधायक सुमित सिंह को मंत्री बनाया है। दोनों दलों ने ब्राम्हण जाति से आने वाले एक-एक नेता को मंत्री बनाया गया है। भाजपा ने जहां आलोक रंजन को मंत्री बनाया है, वहीं जदयू ने संजय कुमार झा पर एक बार फिर विश्वास जताया है। भाजपा ने अपने वैश्य वोट बैंक पर भी विश्वास जताया है। भाजपा ने विधायक प्रमोद कुमार तथा नारायण प्रसाद को मंत्री बनाकर वैश्य जातियों के वोटबैंक को साधने की कोशिश की है। इसी तरह जदयू ने अपने वोटबैंक कुर्मी पर विश्वास जताया है। जदयू ने कुर्मी जाति से आने वाले नीतीश कुमार के विश्वासपात्र श्रवण कुमार तथा कुशवाहा जाति से आने वाले जयंत राज को मंत्री बनाया है। जदयू ने मल्लाह समाज से आने वाले मदन सहनी को भी मंत्री बनाया है। भाजपा ने दलित समुदाय से आने वाले पूर्व सांसद जनक राम को मंत्रिमंडल में शामिल किया है, जबकि जदयू ने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे गोपालगंज के भोरे के विधायक सुनील कुमार को मंत्रिमंडल में स्थान देकर दलित कॉर्ड भी खेलने की कोशिश की है।

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बहरहाल, मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए दोनों दलों ने अपने-अपने तरीके से जहां अपने वोटबैंक को खुश करने की कोशिश की है, साथ ही नए सियासी समीकरण साधने का भी प्रयास किया है। वैसे अब देखने वाली बात होगी कि दोनों दल इसमें कितना सफल हो पाते हैं। वैसे, मंत्रिमंडल विस्तार के पहले ही भाजपा में बगावती सुर भी सुनाई देने लगे हैं। भाजपा से बाढ़ विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानु ने नए मंत्रियों के चेहरों पर पार्टी के निर्णय को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि अनुभवी लोगों को दरकिनार कर दिया है तथा सवर्णों की उपेक्षा की गई है। ज्ञानु ने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार में न अनुभवी नेताओं को शामिल किया गया है और न ही क्षेत्र में सामंजस्य बैठाने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल में कई जिलों से तीन-तीन मंत्री बन गए हैं, जबकि कई जिलों को छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि दिग्गज नेता जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र और अनुभवी नेता नीतीश मिश्रा को भी मंत्री बनाने लायक नहीं समझा गया। उन्होंने कहा कि विस्तार में भाजपा ने जाति, क्षेत्र और छवि का ख्याल भी नहीं रखा।