मुंबई: पालघर के तटीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कछुए जख्मी अवस्था मे पाए जाते हैं। जिनके उपचार के लिए 2012 में डहाणू में वनविभाग की देखरेख में कछुओं के एक उपचार केंद्र की स्थापना की गई थी। अधिकारियों के अनुसार यह भारत में कछुओं का पहला उपचार केंद्र (रेस्क्यू सेंटर) है। इस उपचार केंद्र में 5 जख्मी हुए कछुओं का उपचार जारी है। और अब तक करीब 500 कछुओं का उपचार करने के बाद उन्हें सुरक्षित समुंदर मे छोड़ दिया गया है। समुंदर के कारण यह क्षेत्र कछुओं के लिये आदर्श प्रजनन क्षेत्र है। यहां के तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले कछुए आकार में काफी बड़े होते हैं।
समुद्र में मिलने वाले मानव निर्मित कचरों व अन्य कारणों से कछुए घायल हो जाते हैं। इन जख्मी कछुओं को यहां उपचार केंद्र पर लाया जाता है और इनका एक्सरे व लेजर तकनीकी से ऑपरेशन कर इन्हें एक नई जिंदगी दी जाती है। कछुओं के इस उपचार केंद्र में कई पानी की टंकियां बनाई गई हैं। प्रत्येक टंकी समुचित रूप से चौड़ी और गहरी है। इसमें हर समय खारे पानी की व्यवस्था रहती है। जख्मी हुए कछुओं को उपचार केंद्र पहुंचाने वाले या उनका जीवन बचाने वाले लोगों को प्रोत्साहन देने के लिये उन्हें सम्मानित भी किया जाता है।
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कछुओं के जीवन पर बढ़ा खतरा –
लोगों में सदा जवान रहने की चाहत का फायदा उठाते हुए तस्करों ने कछुआ की तस्करी करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश, म्यांमार सहित भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हजारों लोग यह मानते हैं कि कछुआ के मांस से बनी शक्तिवर्धक दवाएं बहुत असरकारी होती है। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 11,000 कछुओं की तस्करी की जा रही है। पिछले 10 वर्षों में 110,000 कछुओं का कारोबार किया गया है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, मछली पकड़ने के जाल में फंसने, प्रदूषण, उनके घोसले नष्ट होने, अवैध शिकार व बांधों व बैराज के कारण कछुओं को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। डाॅक्टर दिनेश जे. विन्हेरकर ने जानकारी दी कि एक मादा कछुआ अपने जीवनकाल में 80 से 100 अंडे तक देती है, लेकिन इनमें केवल 2 से 3 फीसदी ही आगे चलकर अंडे देने की अवस्था तक जीवित रहते हैं। बता दें कि इस उपचार केंद्र में सालाना करीब 40 कछुओं का इलाज किया जाता है। डाॅक्टर जख्मी कछुओं का देखभाल करते हैं और स्वस्थ होने पर इन्हें समुद्र में छोड़ दिया जाता है।
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