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Nepal: तीन संसदीय सीटों पर उपचुनाव 23 अप्रैल को, सभी पार्टियों ने झोंकी ताकत

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काठमांडूः नेपाल में तीन संसदीय सीटों पर 23 अप्रैल को होने वाला उपचुनाव पुराने और नए दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। हैवीवेट उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने से इस चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है। इस उपचुनाव में सभी प्रमुख पार्टियों के नेताओं ने अपनी ताकत झोंक दी है। चितवन-2, बारा-2 और तनहुं-1 संसदीय सीटों पर उपचुनाव के लिए 23 अप्रैल को मतदान होगा।

चितवन-2 सीट पर नई पार्टी के रूप में उभरी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के अध्यक्ष रवि लामिछाने मैदान में हैं। आरएसपी से बारा-2 सीट पर पूर्व पुलिस डीआईजी रमेश खरेल उम्मीदवार हैं। तनहुं-1 सीट पर स्वर्णिम वाग्ले आरएसपी के उम्मीदवार हैं। वह एक अर्थशास्त्री हैं जो नेपाल के योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। नई पार्टी के रूप में आरएसपी ने पिछले साल 20 नवंबर को हुए संसदीय चुनावों में 20 संसदीय सीटें जीतीं। ऑडियो विवाद के बाद आरएसपी के एक सांसद की सदस्यता रद्द होने के बाद प्रतिनिधि सभा में उसके सिर्फ 19 सदस्य हैं। चितवन में एक चुनाव जनसभा में आरएसपी अध्यक्ष लामिछाने ने कहा कि उनके खिलाफ पुराने दलों के तमाम नेता एकजुट हैं। उन्होंने दावा किया कि उनके पास एक मजबूत दिल है और वे अकेले ही सबका सामना करने की ताकत रखते हैं। अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए सत्तारूढ़ घठबंधन के नेता प्रधानमंत्री एवं सीपीएन (एमसी) अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, सीपीएन (यूएस) के अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं।

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सत्तारूढ़ गठबंधन ने तनहुं-1 और बारा-2 सीट को बहुत महत्व दिया है। तनहुं-1 वह सीट है जो रामचंद्र पौडेल के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद खाली हुई है, जहां से नेपाली कांग्रेस के गोविंद भट्टराई उम्मीदवार हैं। बारा-2 रामसहाय प्रसाद यादव के उप राष्ट्रपति चुने जाने के बाद खाली हुई है। इस सीट से जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के अध्यक्ष उपेंद्र यादव चुनाव मैदान में हैं। दोनों क्षेत्रों को सत्तारूढ़ गठबंधन ने प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। पिछले साल नवंबर में हुए प्रतिनिधि सभा के चुनाव में चितवन-2 सीट से लामिछाने ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। नागरिकता मामले में उनकी संसद सदस्यता रद्द किए के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया जा रहा है। लामिछाने ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।

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