नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू (navjot singh sidhu) को बड़ा झटका देते हुए उन्हें 1988 के रोड रेज मामले में एक साल जेल की सजा सुनाई। दरअसल पीड़ित परिवार की ओर से इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सिद्धू (navjot singh sidhu) को मात्र एक हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके बाद पीड़ित पक्ष ने इस पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
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न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा पुनर्विचार याचिका की अनुमति दी, जिसने सिद्धू को मात्र 1,000 रुपये के जुर्माने के साथ बरी कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अब सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, “हमने सजा के मुद्दे पर एक समीक्षा आवेदन की अनुमति दी है.. हम प्रतिवादी को एक साल के कारावास की सजा देते हैं..।” इस मामले के संबंध में आदेश बाद में अपलोड किया जाएगा।
25 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के रोड रेज मामले में सिद्धू को दी गई सजा को बढ़ाने के निर्देश की मांग वाली एक समीक्षा याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सिद्धू का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए. एम. सिंघवी ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ से समक्ष कहा कि सजा अदालत का विवेक है और मौत की सजा के मामलों को छोड़कर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, जो दुर्लभ से दुर्लभ और वर्तमान मामले में दिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सिंघवी ने कहा, “सजा की पर्याप्तता पर अपील पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। सरकार सजा के खिलाफ अपील में नहीं है और पीड़ित पर्याप्तता को चुनौती नहीं दे सकता।” उन्होंने आगे कहा कि उनके मुवक्किल की ओर से सहयोग की कमी का कोई आरोप नहीं लगाया गया है। पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल भी शामिल थे, ने कहा कि उसके सामने केवल यह मुद्दा है कि क्या अदालत द्वारा सजा पर सीमित नोटिस जारी किए जाने के बावजूद जिस प्रावधान के तहत सजा दी गई है, उस पर गौर करने की जरूरत है।
पीठ ने मामले में विस्तृत दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। मृतक के परिजन गुरनाम सिंह ने 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। पीड़ित परिवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया कि कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई मौत सही नहीं है और पीड़ित को एक झटका मिला है। सिंघवी ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि यह बेहद संदिग्ध है कि मुक्का मारने से लगी चोट से मौत हो सकती है। लूथरा ने तर्क दिया कि 2018 का फैसला रिछपाल सिंह मीणा बनाम घासी (2014) के मामले में पिछले फैसले पर विचार करने में विफल रहा।
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