भारतीय ज्योतिष शास्त्रानुसार सूर्यादि सभी ग्रह दुष्ट स्थान में बैठकर निश्चय ही मनुष्यों के अशुभ कर्मों के फलस्वरूप अनेक प्रकार से पीड़ित करते हैं। सूर्यादि ग्रहों की प्रतिकूलता में व्याधिग्रस्त रोगी को औषधि भी अनुकूल फल प्रदान नहीं करती है, क्योंकि औषधि के गुण प्रभाव-बल-वीर्य को ग्रह हरण कर लेते हैं। अतः पहले ग्रहों को अनुकूल करके बाद में चिकित्सा करनी चाहिए। महर्षि वशिष्ठ का कथन है कि दुःस्वप्न होने पर, मारक में अनिष्टकर कारण उपस्थित होने पर, ग्रहों की प्रतिकूलता में, जन्मराशि में, आठवें स्थान में, बृहस्पति, शनैश्चर, मंगल और विशेषकर सूर्य के रहने से धन की हानि, मृत्यु का भय एवं और भी सब संकट आकर मनुष्य को दुखित करते हैं। सूर्यादि ग्रहों की प्रतिकूल परिस्थिति में मनुष्य को चेष्टापूर्वक ग्रह शांति अवश्य करनी चाहिए। ग्रहों के दान, पूजा, व्रत एवं ग्रह औषधि स्नान द्वारा ग्रहों को प्रसन्न कर मनोनुकूल धन-धान्य का सुख, शरीर सुख, सौभाग्य की वृद्धि, ऐश्वर्य, आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्त कर सकता है। सूर्यादि ग्रहों के अनिष्ट फल को शमन करने और शुभफल प्राप्ति के लिए औषधियों को जल में भिगोकर स्नान करने का विधान है।
सूर्य की अनिष्टशांति के लिए केसर, कमलगट्टा, इलायची, देवदारू को जल में भिगोकर स्नान करना चाहिए। इस स्नान को रविवार के दिन करना चाहिए। चंद्रमा की अनिष्टशांति के लिए सोमवार के दिन पंचगव्य, स्फटिक, बिल्वपत्र, मोती, कमल और शंख से स्नान करना चाहिए। मंगल की अनिष्टशांति के लिए मंगलवार को चंदन, बिल्वपत्र, बैंगनमूल, प्रियंगु, जटामासी, लाल पुष्प, नागकेशर और जपापुष्प को जल में भिगोकर स्नान करना चाहिए। बुध की अनिष्टशांति के लिए बुधवार के दिन नागकेशर, अक्षत, गोरोचन, मधु और पंचगव्य को जल में भिगोकर स्नान करना चाहिए।
बृहस्पति की अनिष्टशांति के लिए पीली सरसों, मालती, जूही के पुष्प और पत्ते से भिगोए जल से बृहस्पतिवार को स्नान करनी चाहिए। शुक्र की अनिष्टशांति के लिए शुक्रवार के दिन श्वेत कमल, मनःशिल, इलायची और केसर के जल से स्नान करना चाहिए। शनि की अनिष्टशांति के लिए शनिवार के दिन काले धान का लावा, सौंफ और काले सुरमा के जल से स्नान करना चाहिए। राहु की अनिष्टशांति के लिए शनिवार के दिन बिल्वपत्र, लाल चन्दन, कस्तूरी तथा दुर्वा के जल से स्नान करना चाहिए। केतु की अनिष्टशांति के लिए शनिवार के दिन लाल चन्दन, कस्तूरी, भेड़ का मूत्र, अनार और गुडूची के जल से स्नान स्नान करना चाहिए। इन स्नान औषधि में जितनी भी वस्तु उपस्थित हो उन्हीं के जल से स्नान करना चाहिए। इस प्रकार नवग्रह पीड़ा में औषधि स्नान के द्वारा अनिष्ट फल की शांति होती है तथा मनुष्य का अभ्युदय है।
लोकेन्द्र चतुर्वेदी
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