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Narasimha Jayanti 2023: नरसिंह जयंती आज, जानें भगवान विष्णु ने क्यों लिया था यह अवतार

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नई दिल्लीः हिंदू धर्म में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का खास महत्व है। इस दिन नरसिंह जयंती मनायी जाती है। भगवान नरसिंह श्रीहरि विष्णु के चौथे अवतार हैं। भगवान ने यह अवतार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए लिया था और दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का अंत किया था। इसलिए इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।

इस साल नरसिंह जयंती गुरूवार (04 मई 2023) को मनायी जा रही है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार आज के दिन भगवान श्रीहरि के अवतार नरसिंह की विधिवत आराधना से शारीरिक व मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। भक्त को सभी सुखों की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

भगवान नरसिंह की पूजा की विधि

हिंदू मान्यताओं के अनुसार नरसिंह जयंती की पूजा का विशेष महत्व है। नरसिंह जयंती के दिन प्रातःकाल के समय दैनिक नित्य कार्यो से निवृत्त होने के बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान नरसिंह की प्रतिमा की स्थापना करें। भगवान नरसिंह को गंगा जल से स्नान कराकर वस्त्र अर्पण करें। इसके बाद भगवान को तिलक लगाकर उन्हें धूप, दीप अर्पित करें।

इसके बाद भगवान को मौसमी फलों का भोग लगायें। तत्पश्चात व्रत कथा श्रवण करने के बाद आरती अवश्य करें। शुद्ध भाव से भगवान नरसिंह की आराधना और व्रत करने से भगवान अपने भक्त के सभी कष्ट को हर लेते हैं।

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नरसिंह अवतार की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र थे। जिनमें एक का नाम हरिण्याक्ष था और दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था। हरिण्याक्ष के अत्याचारों से पृथ्वी और जनजीवन की रक्षा को भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया और उसका वध कर दिया।

इस घटना से हरिण्याक्ष का भाई हिरण्यकश्यप बेहद क्रोधित हो गया और उसने भगवान विष्णु से अपने भाई हरिण्याक्ष के वध का बदला लेने की ठान ली। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्माजी की कठोर तपस्या कर उनसे वरदान लिया कि उसे न तो घर के अंदर न तो घर के बाहर, न धरती पर और न आकाश, न अस्त्र और न ही किसी भी शस्त्र से, न मनुष्य और न ही पशु उसकी हत्या कर सके। भगवान ब्रह्माजी ने हिरण्यकश्यप को यह वरदान दे दिया। ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर उसने इंद्र से युद्ध कर स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया।

अहंकार के मद में चूर हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा से खुद को भगवान की तरह पूजने का आदेश दिया और आदेश न मानने वाले को सजा देने का प्राविधान कर दिया। हिरण्यकश्यप हरि भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद अपने पिता से बिलकुल विपरीत था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नही थी।

जिसके बाद उसने अपने पुत्र का वध करने के कई प्रयास किये, लेकिन उसके सभी प्रयास विफल रहे। जब भक्त प्रहलाद समेत पृथ्वी पर हिरण्यकश्यप के अत्याचारों की सीमा पार हो गयी। तब भगवान विष्णु ने खंभा फाड़कर नरसिंह के अवतार में अवतरित हुए और हिरण्यकश्यप को मिले वरदानों के आधार पर बीच दरवाजे पर सुबह और शाम के बीच के समय में उसे अपनी गोद में लिटाकर अपने तेज नाखूनों से उसका वध किया और सृष्टि से पाप का अंत कर दिया। इस तरह भगवान नरसिंह की आराधना करने से भक्त के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

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