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युवा किसानों को मालामाल बनाएगी मशरूम की खेती, साल-दर-साल बढ़ रही है खपत

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लखनऊः आने वाले सालों में अत्याधुनिक फसल मशरूम बनेगी। ऐसा मानना है मुख्य उद्यान विशेषज्ञ डाॅ. राजीव कुमार वर्मा का। इसमें संदेह नहीं है कि जो कल्पना की जा रही है, वह केवल कोरी हो। ऐसे कथन को परखने के लिए हमने बाजारों और पूर्व के मशरूम से जुड़े इतिहास को भी खंगाला। मशरूम ऐसी फसल है, जिसकी खपत हर साल बढ़ रही है। इसके प्रति शहर से गांव तक लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है। यही कारण है कि उद्यान विभाग ज्यादा से ज्यादा युवाओं को मशरूम उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकार तमाम योजनाओं पर काम कर रही है। इनमें से एक नई है मशरूम की खेती को प्रोत्साहित करना। उद्यान विभाग लखनऊ इन दिनों काकोरी, मलिहाबाद और रहीमाबाद क्षेत्र के युवाओं को प्रशिक्षण देकर आधुनिक खेती के गुर सिखा रहा है। करीब एक हफ्ते तक उक्त तीनों क्षेत्रों में विशेषज्ञों को लगाकर मशरूम की खेती से सम्बंधित कार्यशालाएं आयोजित की गईं। इनमें क्षेत्र के सैकड़ों युवक और युवतियों ने भागीदारी निभाई। कार्यशालाओं में दूसरे जिलों के लोग भी पहुंचे और मशरूम की खेती से सम्बंधित जानकारी हासिल की। मलिहाबाद में उद्यान विभाग की एक कार्यशाला में मशरूम की खेती के उत्पादन, भंडारण, बाजार और प्रोडक्ट के बारे में विशेषज्ञों ने तमाम तरह की जानकारियां दीं।

विषेशज्ञों ने बताया कि यह एक ऐसी फसल है, जिसे बहुत कम समय में तैयार किया जा सकता है। इसके लिए बड़े भू-भाग यानी खेतों की जरूरत नहीं होती है। मशरूम किसी झोपड़ी, कमरे या फिर बेसमेंट में उगाया जा सकता है। इसमें आमदनी ज्यादा होती है, जबकि लागत काफी कम आती है। मशरूम उगाने से फसल मिलने तक सिर्फ 40 दिन लगते हैं। मशरूम करीब तीन बार तोड़ा जा सकता है। इसके बाद नया बैग उसी स्थान पर रख सकते हैं। मशरूम काफी दिनों से उगाया जा रहा है, लेकिन यह अभी बडे़े बाजार वाली वस्तु नहीं बन सका है। इसका कारण है कि युवा इसे उगाना तो चाहते हैं, लेकिन बिना बीज वाली फसल मानकर इससे दूरियां बनाना ही बेहतर मानते हैं। हालांकि, इसके बीज यानी स्पोन बाजार में मिल जाते हैं। इसके अलावा बाकी चीजें भी आसानी से मिल जाती हैं, इसीलिए किसानों को इसकी बारीकियां बताई जा रही हैं। उद्यान विभाग को इन दिनों ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षण का टारगेट भी दिया गया है।

साफ-सफाई का रखना होता है विशेष ध्यान –

किसानों को यह तब सफल बनाता है, जबकि इसको पर्याप्त अंधेरा मिलता है। यह स्वच्छ स्थान पर रहना पसंद करता है। इसके लिए आर्द्रता और तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होना चाहिए। पहले कभी इसे गंदगी में रहने वाला माना जाता था, लेकिन यह कुकुरमुत्ते जैसे मशरूम से बिल्कुल भिन्न है। यह काफी स्वच्छ स्थान पर उगाया जाता है। यहां तक कि जिस स्थान पर मशरूम उगाया जाता है, वहां चप्पल भी पहनकर नहीं जाया जा सकता है अन्यथा मशरूम काला पड़कर खराब होने लगता है। यह बाजार में काफी महंगा बिकता है। इसे सुखाकर भी बेचा जा सकता है। कुछ लोग पाउडर बनाकर इसे बाजार में बेचते हैं, तो कुछ लोग सब्जियां बनाकर खाते हैं। यह भूसे में ही उगाया जाता है। जिस भूसे में उगाया जाता है, उसके बैक्टीरिया पूरी तरह से नष्ट करने होते हैं।

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मलिहाबाद में जो कार्यशाला आयोजित की गई, उसमें इसे उगाने के दो तरीके बताए गए हैं। पहली विधि में भूसे को उबले पानी में शुद्ध किया जाता है, तो दूसरे में इसे ठंडे पानी में शुद्ध किया जाता है। पानी से निकाले गए भूसे में मशरूम के बीज यानी स्पोन मिलाए जाते हैं। इसके बाद पॉलीबैग में इसे भर दिया जाता है। इसके बाद अंधेरे वाली जगह में इसे रखा जाता है। पॉलीबैग में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिससे वाष्पीकरण में मदद मिलती है। मशरूम सफेद रंग का होता है। यह इन दिनों बाजारों में बिकने लगा है। इससे चॉकलेट, बिस्कुट, टॉफी, चिप्स भी बनाए जाते हैं। यह जिस स्वाद युक्त पदार्थ में मिलाया जाता है, वैसा ही टेस्टी बन जाता है। इसे जिस स्थान पर उगाया जाता है, वहां के तापमान को उसके अनुकूल रखना जरूरी होता है इसलिए उपकरण के जरिए उगाए जाने वाले स्थान को 24 घंटे में दो बार चेक किया जाता है। मशरूम को लगाने के बाद जब वह बड़े होने लगें तो समझो फसल की शुरूआत है, लेकिन जब यह छोटे पड़ने लगें तो समझ लेना चाहिए कि मशरूम के बैग को बदलने का समय आ चुका है।

सरकार दे रही है मदद –

मशरूम उगाने के लिए सरकार फ्री में प्रशिक्षण दे रही है। जो लोग मशरूम की खेती करना चाहते हैं, वह किसी झोपड़ी को अंधेरा युक्त बना कर उसमें इसकी खेती कर सकते हैं। कमरे में भी इसे उगाया जा सकता है। ज्यादा जगह न होने पर किसी कमरे में स्टेªक्चर बनाकर इसे उगाा जाता है। इससे कई गुना जगह बढ़ जाती है और काफी ज्यादा उत्पादन भी मिलता है। सरकार इसकी खेती करने के लिए लोन दे रही है और इसमें 40 फीसदी सब्सिडी भी मिल रही है।

  • शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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