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शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद मां कूष्मांडा ने इस जगह पर किया था विश्राम, दर्शन मात्र से मिट जाती है भव बाधा

वाराणसीः धर्म नगरी काशी में शारदीय नवरात्र प्रतिपदा सोमवार से पूरी नगरी शक्तिपूजा में आकंठ तक डूब गई है। कंकर-कंकर शंकर के शहर में चहुंओर दुर्गा सप्तशती के ओजस मंत्रों की गूंज के साथ धूप-लोहबान का धुंआ अलग माहौल बना रहा है। काशी में नवरात्र के पहले दिन अलईपुर स्थित शैलपुत्री माता के साथ दुर्गाकुंड कूष्मांडा के दरबार में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शारदीय नवरात्र में माता कूष्मांडा के दर्शन का चौथे दिन दर्शन पूजन का विधान हैं, लेकिन पूरी काशी नगरी इस जागृत शक्तिपीठ में पूरे नवरात्र हाजिरी लगाने के लिए लालायित रहती है।

दुर्गाकुंड में विराजित हैं आदि शक्ति कूष्मांडा
मान्यता है कि स्वयं आदि शक्ति कूष्मांडा दुर्गाकुंड में विराजित है। देश के प्राचीनतम देवी मंदिरों में से एक इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि दानव शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद थकी आदिशक्ति ने यहां विश्राम किया था। तब काशी का यह इलाका दुर्गम और वनाच्छादित था। इस मंदिर का जिक्र काशी खंड में भी है। नागर शैली में निर्मित गाढ़े लाल रंग के इस आध्यात्मिक शक्तिपीठ में काशी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मत्था टेक चुके है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भी अपने जीवनकाल में दरबार में विधिवत हाजिरी लगाई थी। इस मंदिर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1760ई0 में रानी भवानी ने कराया था। जानकार बताते हैं कि उस जमाने में मंदिर निर्माण में पचास हजार रूपये की लागत आयी थी। माता कूष्मांडा के मंदिर के चारों ओर भव्य बरामदे का निर्माण बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कराया था। मंदिर के मण्डप को भी बाजीराव ने ही बनवाया था, जबकि मंदिर से सटे विशाल कुण्ड का निर्माण इंदौर की महारानी माता अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। मंदिर में लगे दो बड़े घण्टों को नेपाल नरेश ने लगवाया है।

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मुख्य मंदिर के चारों ओर बने बड़े बरामदे में नियमित रूप से श्रद्धालु बैठकर मां का जाप करते रहते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए दो द्वार है। मुख्य द्वार ठीक मां के गर्भगृह के सामने है। वहीं, गर्भगृह के बायीं ओर छोटा सा द्वार है। मंदिर परिसर में गणेश जी, भद्रकाली, चण्डभैरव, महालक्ष्मी, सरस्वती, राधाकृष्ण, हनुमान एवं शिव की भी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर में स्थित भद्रकाली मंदिर के पास यज्ञ कुण्ड है। जहां नियमित रूप से यज्ञ होता है। मां दुर्गा के इस मंदिर में यू तो वर्ष पर्यन्त श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र में दर्शन के लिए दर्शनार्थियों की लम्बी लाइन लगती है। मां के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। मां की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कूष्माण्डा विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं।

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