Home देश वक्फ सुधार पर मोदी का चाबुक

वक्फ सुधार पर मोदी का चाबुक

modis-whip-on-waqf

केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को लोकसभा में दो संशोधन विधेयक, वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 और मुसलमान वक्फ अधिनियम 1923 (निरसन) विधेयक 2024 पेश किया, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित करना और वक्फ सम्पत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। संशोधन विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते हुए रिजिजू ने कहा कि वक्फ बोर्ड़ का गठन गरीब मुसलमानों, महिलाओं और बच्चों के हित में कार्य करने के लिए हुआ था, लेकिन आज तक उनको अपना हक नहीं मिला। अधिकांश वक्फ बोर्ड़ पर माफिया का कब्जा है।

वक्फ बोर्ड अधिनियम में तमाम ऐसे प्राविधान किये गए हैं, जो सविंधान के ऊपर हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर इन विधेयक का विपक्षी दलों विशेष कर सपा और कांग्रेस ने विरोध करते हुए खूब हंगामा किया। विपक्षी दलों का कहना है कि यह संशोधन विधेयक असंवैधानिक और अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, जिसके माध्यम से सरकार साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाना चाहती है। एक सपा सांसद ने तो यहां तक कहा कि अगर यह विधेयक पास हो गया तो मुसलमान संविधान बचाने के लिए सड़क पर आ सकते हैं। विपक्ष के भारी विरोध और सरकार की सिफारिश पर इस विधेयक को जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया, जिसमें विभिन्न दलों के कुल 31 सांसद हैं।

वक्फ अधिनियम में संशोधन के लिए भाजपा सरकार द्वारा विधेयक लाये जाने के बाद से ही पूरे देश में वक्फ पर व्यापक चर्चा होने लगी है। विभिन्न माध्यमों से वक्फ का जो सच सामने आ रहा है, उसने निश्चित रूप से सभी देशवाशियों को हिला कर रख दिया। अब लोग भाजपा सरकार से उल्टा सवाल कर रहे हैं कि इस प्रकार के विधेयक लाने में 10 वर्ष तक चुप क्यों बैठे रहे? इस संशोधन विधेयक का औचित्य समझने से पहले वक्फ, वक्फ बोर्ड़ आदि के बारे में जानना भी जरूरी है।

वक्फ और वक्फ बोर्ड

वक्फ अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका आशय खुदा के नाम पर किसी वस्तु को समर्पित करना या परोपकार के लिए दी गयी सम्पत्ति या धन होता है। इसमें चल और अचल दोनों प्रकार की सम्पत्ति को शामिल किया जाता है। व्यावहारिक भाषा में कहा जाय तो इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा धर्म के लिए किये गए दान को वक्फ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी सम्पत्ति को लम्बे समय तक इस्लाम धर्म के काम में प्रयोग किया जा रहा है, तो उसे भी वक्फ माना जा सकता है। प्रायः वक्फ शब्द का प्रयोग इस्लाम से जुड़े शैक्षणिक संस्थान, कब्रिस्तान, मस्जिद और धर्मशालाओं के लिए भी किया जाता है।

सबसे अलग बात यह है कि यदि किसी ने एक बार किसी सम्पत्ति को वक्फ कर दिया तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि माना जाता है कि वह सम्पत्ति खुदा की हो जाती है। मुसलमानों के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति वक्फ कर सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि उसकी आस्था इस्लाम में हो और वक्फ करने का उद्देश्य भी इस्लामिक हो। भारत में वक्फ आजादी से पहले ही चर्चा में आया था। देश की आजादी से पूर्व ही मुसलमानों ने यह मान लिया था कि अब पाकिस्तान बन कर रहेगा, इसलिए तमाम मुस्लिम नबाबों, जमींदारों ने अपनी जमीन को सुरक्षित करने के लिए चाल चली और अनेक नबाबों और जमीदारों ने अपनी सम्पत्ति का वक्फ बना दिया और बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये। आजादी के बाद सत्ता में आयी कांग्रेस सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के कारण यह सारी भूमि वक्फ बोर्ड़ के पास चली गई। एक आंकलन के अनुसार 6 से 8 लाख वर्ग किमी भूमि, जिस पर सरकार का हक होना चाहिए था, वह वक्फ बोर्ड के पास चली गई।

आजादी के बाद देश भर में फैली वक्फ की सम्पत्ति के प्रबंधन हेतु नेहरु सरकार ने एक नीतिगत ढांचा बनाने पर विचार किया और 1954 में पहला वक्फ अधिनियम संसद से पारित हुआ। इसी अधिनियम के अन्तर्गत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया जो वक्फ सम्पत्तियों का प्रबंधन करता है। देश के अधिकांश राज्यों में वक्फ बोर्ड का गठन है। बोर्ड, वक्फ की सम्पत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण करता है। बोर्ड का दायित्व वक्फ सम्पत्तियों के प्रबंधन के अलावा वक्फ में मिले दान से शिक्षण संस्थान, मस्जिद, कब्रिस्तान और धर्मशालाओं का निर्माण व रखरखाव करना शामिल है। राज्यों में बोर्ड का नेतृत्व अध्यक्ष करता है।

भारत में शिया और सुन्नी दो तरह के वक्फ बोर्ड हैं। अध्यक्ष के अलावा बोर्ड में राज्य सरकार के सदस्य, मुस्लिम विधायक, सांसद, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ की देखरेख करने वाले मुतवली को शामिल किया जाता है। 1964 में केन्द्र सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम 1954 में संशोधन करके केन्द्रीय वक्फ परिषद की स्थापना गई थी, जिसका कार्य विभिन्न राज्यों में स्थापित वक्फ बोर्ड के कार्यों की निगरानी करना और आवश्यक मदद करना है। इस परिषद का पदेन अध्यक्ष केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री होता है। देश में केन्द्रीय वक्फ परिषद के अतिरिक्त 32 राज्य वक्फ बोर्ड गठित हैं।

वक्फ अधिनियम में संशोधन

वक्फ अधिनियम,1954 में वर्ष 1964 के बाद सबसे बड़ा संशोधन 1995 में कांग्रेस सरकार द्वारा किया गया। इसमें वक्फ सम्पत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन से संबधित प्राविधानों को और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाये जाने के साथ ही वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां प्रदान की गयीं। समय के साथ कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति परवान चढ़ी तो 2013 में एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वक्फ अधिनियम 1995 के मूल में संशोधन करके वक्फ बोर्ड को और अधिक अधिकार दे दिया। इस संशोधन से वक्फ बोर्ड को किसी की सम्पत्ति छीनने की असीमित शक्तियां मिल गयीं, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

दूसरे शब्दों में वक्फ बोर्ड को दान के नाम पर मिली सम्पत्तियों पर दावा करने की असीमित शक्तियां मिल गयीं। आजादी के बाद लम्बे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस सरकार द्वारा वक्फ बोर्डों की अवैध गतिविधियों को दिये गए मौन समर्थन और वक्फ अधिनियम के माध्यम से मिले असीमित अधिकार ने बोर्ड की कार्य प्रणाली और तमाम निर्णयों को विवास्पद बना दिया। ‘एक बार वक्फ हमेशा वक्फ’ के सिद्धांत ने सर्वाधिक विवादों और दावों को जन्म दिया। वक्फ बोर्ड द्वारा अधिनियम के प्राविधानों का लाभ उठा कर सम्पत्तियों को हड़पने अथवा प्रयास करने के हजारों मामले हैं, जिसमें कुछ तो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं।

1-तमिलनाडु का थिरुचेंथुरई गांव- तमिलनाडु के किसान राजगोपाल कर्ज चुकाने के लिए अपनी कृषि भूमि नहीं बेच पाये, क्योंकि तमिल वक्फ बोर्ड ने उनके पूरे गांव थिरुचेंथुरई को अपनी सम्पत्ति बता दिया था। भूमि बेचने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र न मिलने के कारण राजगोपाल जैसे अनेकों किसान आज वित्तीय और भावनात्मक संकट से जूझ रहे हैं। वक्फ बोर्ड के अनुसार गांव को 1956 में नवाब अनवरदीन खान ने वक्फ के रूप में दान कर दिया था। वक्फ बोर्ड द्वारा गांव की भूमि की अवैध बिक्री या अतिक्रमण को रोकने के लिए पंजीकरण विभाग से वक्फ सम्पत्तियों को ‘शून्य मूल्य‘ देने का अनुरोध किया है। सम्पत्ति लेनदेन की अनुमति देने के लिए अधिकृत अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा फिलहाल रोक लगा दी गई है। अपने तरह के इस अनूठे मामले से राज्य में राजनीतिक और सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

2-बेंगलुरु ईदगाह मैदान– ‘एक बार वक्फ हमेशा वक्फ’ का जीवंत उदाहरण बेंगलुरु ईदगाह मैदान का मामला है। वक्फ बोर्ड दावा करता है कि 1850 के दशक में बेंगलुरु ईदगाह मैदान एक वक्फ सम्पत्ति थी। प्रचलित सिद्धांत के अनुसार वक्फ होने के कारण ईदगाह मैदान अब हमेशा के लिए एक वक्फ सम्पत्ति है। यद्यपि सरकार के अनुसार किसी भी मुस्लिम संगठन को इस प्रकार का कोई हस्तांतरण नहीं हुआ था, लेकिन वक्फ बोर्ड अपना दावा बता रहा है।

3-सूरत नगर निगम की इमारत पर दावाः गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम की इमारत पर दावा करते हुये कहा कि यह वक्फ की सम्पत्ति है क्योंकि दस्तावेज में सुधार नहीं किये गए थे। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान सूरत नगर निगम की इमारत एक सराय थी और हज यात्रा के दौरान इसका इस्तेमाल किया जाता था। दस्तावेज अपडेट नहीं किये जाने के कारण ब्रिटिश शासन के दौरान यह सम्पत्ति ब्रिटिश साम्राज्य की थी। 1947 में जब भारत को आजादी मिली, तो सम्पत्तियां भारत सरकार को हस्तांतरित कर दी गईं। वक्फ बोर्ड के अनुसार धार्मिक कार्यो में प्रयुक्त होने वाली एसएमसी की इमारत वक्फ की सम्पत्ति है अर्थात एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ।

4-कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ का प्रकरण- हुबली-धारवाड नगर निगम की ओर से हिंदू संगठनों को ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने की अनुमति दी गई, जिसका विरोध करते हुए कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि ये ईदगाह मुसलमानों की सम्पत्ति है, जिस पर वक्फ बोर्ड का अधिकार है। इस पर किसी और धर्म के कार्य की अनुमति नहीं दी जा सकती। मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय में गया, तो न्यायालय ने पाया कि वक्फ बोर्ड का दावा झूठा है, क्योंकि यह सम्पत्ति वक्फ के रूप में दर्ज ही नहीं है, अपितु यह तो नगर निगम की सम्पत्ति है।

5-बेट द्वारका का मामला- भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका में स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना दावा जताया। गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य से पूछा कि भगवान कृष्ण की नगरी में आपका हक कैसे हो सकता है। उच्च न्यायालय ने आवेदन पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और बोर्ड से याचिका को संशोधित करने के लिए कहा गया। बेट द्वारिका के जिन दो टापू पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है, उन पर लगभग 7000 परिवार रहते हैं,इनमें से लगभग 6000 परिवार मुस्लिम हैं। कहा जाता है कि इसी आधार पर वक्फ बोर्ड अपना दावा जता रहा है।

6-शिव शक्ति सोसाइटी, सूरत- सूरत में शिव शक्ति सोसाइटी में एक प्लॉट मालिक ने अपने प्लॉट को गुजरात वक्फ बोर्ड में पंजीकृत कराकर उसे मुसलमानों के लिए पवित्र स्थान बना दिया और लोग वहां नमाज पढ़ने लगे। इस घटना से एक नया सवाल उठा कि यदि ऐसा कृत्य प्रचलन में आया तो किसी भी हाउसिंग सोसाइटी का मालिक एक अपार्टमेंट को किसी भी दिन सोसाइटी के अन्य सदस्यों की बिना सहमति के उसे वक्फ के रुप में दान करके पवित्र स्थल या मस्जिद में बदल सकता है।

7-क्लब और होटल- कोलकाता के टॉलीगंज क्लब, रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब और बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल के भी वक्फ भूमि पर होने का दावा वहां के वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता रहा है।

8-फकीर समुदाय की 90 बीघा जमीन पर कब्जाः वक्फ बोर्ड की इस अवैध अतिक्रमण की नीति से केवल हिन्दू समाज ही पीड़ित नहीं हैं, अपितु मुस्लिम समाज में आने वाले तमाम पिछड़े समूह के लोग भी पीड़ित हैं। राजस्थान के बूंदी में रहने वाले शहजाद मोहम्मद शाह ने बोर्ड की करतूतों के विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, क्योंकि फकीर समुदाय की 90 बीघा जमीन को वक्फ बोर्ड ने अपने कब्जे में ले लिया है। उन्होंने मीडिया को बताया कि राजस्थान के कोटा और बारण जिलों में रहने वाले उनके समुदाय के कुछ अन्य लोगों ने भी इसी तरह की याचिकायें अदालत में दायर की हैं।

9-मुजावर सेना ने लगाये गंभीर आरोपः मध्य प्रदेश में मुजावर सेना वक्फ बोर्ड के ऐसे ही कार्यों से परेशान है। अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित होने के बाद अखिल भारतीय मुजावर सेना के संस्थापक अध्यक्ष शेर मोहम्मद शाह ने कहा कि वक्फ एक्ट 1995 पूरी तरह समाप्त होना चाहिए, क्योंकि यह एक्ट मुजावर समाज के लोगों को प्रताड़ित और परेशान कर रहा है। उल्लेखनीय है कि मुजावर समाज के लोग सदियों से दरगाह, खानखाहा, कब्रिस्तान और पीर स्थानों पर अपनी सेवायें देते हैं। आजादी आंदोलन में भमिका निभाने वाले मुजावर समाज को बोर्ड द्वारा गुलाम समझा जा रहा है।

आरोपों के घेरे में वक्फ बोर्ड

वक्फ अधिनियम 1995 बनने के बाद वक्फ बोर्ड बहुत ताकतवर बन गया। आज स्थिति यह है कि कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार, दरगाह अथवा मस्जिद बना कर एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है। बाकी का काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि पूरे भारत में अवैध मस्जिदों, मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। वक्फ बोर्ड की गतिविधियों पर नजर रखने वालों का कहना है कि वक्फ बोर्ड का काम सिर्फ जमीन पर कब्जा करना रह गया है, जो देश के लिए बहुत खतरनाक है। वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि भवन के अतिक्रमण और वक्फ सम्पत्तियों के अवैध पट्टे और बिक्री की शिकायतों में लगातार वृद्धि हो रही है।

अल्पसंख्यक मंत्रालय को मुसलमानों और गैर मुसलमानों से वक्फ भूमि पर जानबूझकर अतिक्रमण और वक्फ सम्पत्तियों के कुप्रबंधन जैसे मुद््दांे पर बड़ी संख्या में शिकायतें और प्रार्थनापत्र प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय को अप्रैल, 2023 से प्राप्त 148 शिकायतों में ज्यादातर अतिक्रमण, वक्फ भूमि की अवैध बिक्री, सर्वेक्षण और पंजीकरण में देरी तथा वक्फ बोर्डों और मुतवल्लियों की खराब कार्य प्रणाली के खिलाफ हैं। इसी क्रम में मंत्रालय ने अप्रैल, 2022 से मार्च, 2023 तक सीपीजीआरएएमएस (केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) पर प्राप्त शिकायतों का भी विश्लेषण किया है तो कुल प्राप्त 566 शिकायतों में से 194 शिकायतें वक्फ भूमि पर अतिक्रमण और अवैध रूप से हस्तांतरण से संबंधित थीं जबकि 93 शिकायतें वक्फ बोर्ड के मुतवल्लियों के विरुद्ध थीं।

वक्फ सम्पत्तियों में तेजी से वृद्धि

वक्फ अधिनियम 2013 लागू होने के बाद भूमि भवन पर अवैध कब्जे के अभियान में बहुत तेजी आयी। 2009 में वक्फ सम्पत्तियों को लेकर हुई बहस में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी की थी। बताया जाता है कि 2009 में पूरे देश में वक्फ की कुल 3,00,000 सम्पत्तियां दर्ज थीं, जो लगभग 4,00,000 लाख एकड़ भूमि में फैली थीं। अगले 12- 13 वर्षों में बोर्ड ने बड़े पैमाने पर दूसरों की सम्पत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ सम्पत्ति घोषित किया। 2022 में केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में बताया था कि वक्फ के पास 7,85,934 सम्पत्तियां दर्ज हैं। उन्होंने राज्यवार आंकड़े भी प्रस्तुत किये थे। हाल के आंकड़े बताते हैं कि देश में वक्फ सम्पत्तियों की संख्या 8,72,328 है, जो 9,40,000 एकड़ में फैली हुई है। इससे इतर 16,713 चल सम्पत्तियां भी हैं। वक्फ की सम्पत्तियों का अनुमानित मूल्य 1.20 लाख करोड़ के लगभग है। आश्चर्य यह है कि इस बहुकीमती भूमि से 10 प्रतिशत की भी आय नहीं है।

सरकारें रहीं मेहरबान

कांग्रेस सरकार सदैव से मुस्लिम तुष्टिकरण नीति पर चलती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केन्द्र की मनमोहन सरकार ने मुस्लिम मतों को साधने के लिए दिल्ली की कुल 123 सम्पत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दिया। चुनाव अधिसूचना से एक दिन पूर्व 5 मार्च को एक सरकारी गजट निकाला गया, जिसमें कहा गया कि दिल्ली में भू एवं विकास कार्यालय की 61 और दिल्ली विकास प्राधिकरण की 62 सम्पत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी जाएंगी।

इस प्रकरण में बताया जाता है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी, 2014 को राजधानी दिल्ली की कुल 123 सम्पत्तियों पर अपना दावा ठोंकते हुए भारत सरकार को भी एक ज्ञापन दिया और 5 मार्च को सरकार की ओर से वक्फ बोर्ड को सम्पत्तियों का स्वामित्व वापस करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। इसी प्रकार जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना से खुलासा हुआ कि दिल्ली की आप सरकार ने 2015 में सत्ता में आने के बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड को 101 करोड़ का सार्वजनिक धन दिया। केवल 2021 में ही 62.57 करोड़ की मदद की गई।

समर्थन में मुस्लिम संगठन

केंद्र सरकार के वक्फ विधेयक पर जेपीसी द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों के संगठनों और धर्मगुरुओं से राय ली जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के निजामुद्दीन में बुलाई गई बैठक में मुस्लिम समाज के धर्मगुरु और धर्म प्रचारक शामिल हुये। मीटिंग के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत की है। धर्म प्रचारक मो. कासमिन ने कहा कि सरकार वक्फ पर जो संशोधन बिल लेकर आई है, उस पर पूरे देश में भ्रम फैलाया गया है।

वक्फ की सम्पत्ति दबे-कुचले मुसलमानों का हिस्सा है। पिछले 70 सालों में राजनीतिक पार्टियां और कुछ मुस्लिम लीडरशिप ने वक्फ के साथ बहुत गलत किया है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के हर दबे कुचले समाज और निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए फैसला ले रहे हैं, जिससे देश की तरक्की के साथ पिछड़ा भी तरक्की कर सके। इसी को ध्यान में रखकर वक्फ बोर्ड में संशोधन किया गया है। वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन हिन्दू सहित समाज का विभिन्न वर्ग कर रहा था, लेकिन अब इसमें मुस्लिम भी शामिल हो गये हैं। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी कहते हैं कि वक्फ बोर्ड की जमीन का अभी तक दुरुपयोग होता आया है।

अधिकांश जमीनें बेच दी गईं हैं और जो बची हैं, उनका पता नहीं है। वक्फ की जितनी प्रॉपर्टी है, उसके हिसाब से 3,500 करोड़ रुपये की सालाना आमदनी होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। अब जब सरकार इसको सही करना चाहती है, तब कांग्रेस के लोग इसका विरोध वोट बैंक के अपने ठेकेदारों को बचाने के लिए कर रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी का कहना है कि केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड को लेकर एक बिल संसद में लाई है, इस बिल के माध्यम से केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति के मामले में होने वाली मनमानी को रोकेगी।

इससे भू माफियाओं की मिलीभगत से वक्फ की सम्पत्ति को बेचने या लीज पर देने के कारोबार पर लगाम लगेगी। रजवी ने कहा कि भारत के तमाम वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष, अधिकारी, सदस्य भू माफिया के साथ मिलकर वक्फ की सम्पत्ति का मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड सही मायने में अपना काम करता तो पूरे देश के मुसलमानों में विकास साफ तौर पर दिखाई देता। बुजुर्गों ने अपनी सम्पत्तियां इसलिए वक्फ कर दी थी कि इसकी आमदनी से मुसलमानों के गरीब और कमजोर बच्चों और बच्चियों की तालीम का अच्छा इंतजाम किया जा सकेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिलहाल, वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के विरोध को लेकर राजनीतिक दलों का संसद से शुरू हुआ संग्राम सड़क पर उतरता दिखायी पड़ रहा है।

एक ओर जहां ओवैसी इसे मुसलमानों का निजी और धार्मिक मामला बताते हुए संशोधन को संसद के अधिकार सीमा से परे बता रहे हैं तो सपा, कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों का आरोप है कि सरकार इस बिल के बहाने वक्फ की सम्पत्तियों पर कब्जा करना चाहती है। इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच संयुक्त संसदीय समिति मामले पर विचार कर रही है। चार बैठकों का आयोजन किया जा चुका है। यदि वक्फ संशोधन विधेयक पर सहमति बनी, तो भारत में वक्फ सम्पत्तियों के प्रबंधन पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है जिसका लाभ उन गरीब मुसलमानों, बेसहारा महिलाओं और अनाथ बच्चों को मिलेगा, जिनके लिए वक्फ की परिकल्पना की गयी थी।

हरि मंगल

Exit mobile version