Elections in Maharashtra and Jharkhand : पिछले ही महीने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने। हरियाणा में फिर से भाजपा की सरकार आ गयी। अब नवंबर महीने में दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनाव होने हैं, इसके लिए भारत निर्वाचन आयोग ने तिथि भी तय कर दी है। महाराष्ट्र की सभी 288 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में 20 नवंबर को मतदान होगा। झारखण्ड की 81 सीटों के लिए 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा।
दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आ जाएंगे। अब सबकी नजर इन चुनावों पर है कि क्या यहां कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडी गठबंधन को कामयाबी मिलेगी या भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को फिर से सरकार बनाने का मौका मिलेगा। वैसे महाराष्ट्र में इंडी गठबंधन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी यानी एमवीए के तौर पर दिखेगा। इसमें उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-यूबीटी, कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी-एसपी शामिल हैं।
कितना असरकारक साबित होगा मोदी मैजिक
एनडीए यहां सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति के रूप में दिख रहा है, जिसमें एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना, भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल है। इधर, झारखण्ड में सत्तारूढ़ महागठबंधन में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस के साथ-साथ राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल है। दूसरी ओर, विपक्ष में बैठे एनडीए गठबंधन में भाजपा, आजसू पार्टी, जदयू तथा लोजपा (आर) जैसे दल हैं। इस तरह से अब इन दो महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव के जरिए महायुति-एमवीए के बीच बहुमत हासिल करने के लिए सियासी संग्राम होना शुरू है। साथ ही यह भी देखा जाना है कि इन चुनावों के बीच ‘मोदी मैजिक’ कितना असरकारक साबित होता है।
महाराष्ट्र में पहली बार सत्तारूढ गठबंधन महायुति और विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी के बीच ही मुकाबला होना तय है। महायुति में शिवसेना, भाजपा और एनसीपी शामिल है, जबकि एमवीए में शिवसेना-यूबीटी, कांग्रेस और एनसीपी-एसपी का गठजोड़ है। इस तरह से राज्य में 6 मुख्य राजनीतिक दल चुनावी मैदान में हैं। राज्य में पिछले पांच वर्षों में शिवसेना और एनसीपी में फूट दिखती रही है, नये सियासी समीकरण बनते रहे हैं, इससे व्यापक बदलाव होता रहा और अब महायुति और एमवीए के बीच ही सीधा मुकाबला होगा।
2019 में जब इस राज्य में चुनाव हुए थे, तो नतीजों के बाद यहां की राजनीति में कई तरह के बदलाव होते दिखे। इस दौरान भाजपा और अविभाजित शिवसेना ने राजग के बैनर तले साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 105 कैंडिडेट जीते थे, जबकि शिवसेना के 56 विधायक थे। बहुमत मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री के मुद्दे पर यह गठबंधन अलग हो गया था।
2019 में आये चुनाव नतीजों के बाद महाराष्ट्र के लोगों ने तीन अलग-अलग गठबंधनों की सरकार को देखा। यहां कभी सुर्योदय से पहले सरकार का शपथ ग्रहण हुआ, तो कभी सरकार में शामिल शिवसेना और एनसीपी में हुई बगावत के बाद राज्य में सरकार बनी। दूसरी तरफ झारखण्ड में 2014-2019 तक भाजपा के रघुवर दास ने सरकार चलायी। नवंबर 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से 2014 तक की अवधि में वे झारखण्ड पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने पांच साल तक अपना कार्यकाल पूरा किया। 2019 में हुए चुनाव में उन्हें जनादेश नहीं मिला। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाले महागठबंधन ने 47 सीटों पर जीत हासिल की। इसमें जेएमएम को 30, कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट पर जीत मिली।
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस तरह से रघुवर दास सरकार के बाद महागठबंधन की सरकार ही ऐसी रही है, जिसने पांच सालों का कार्यकाल पूरा किया है। अबकी जो चुनाव होने हैं, उसके लिए पक्ष-विपक्ष में जबर्दस्त टकरार है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मानें तो विधानसभा चुनाव में हमें भाजपा और विपक्ष के धनतंत्र, झूठ, साजिश और समाज को तोड़नेवाली राजनीति के खिलाफ मिलकर लड़ना है। जनता के विश्वास और समर्थन के साथ मिलकर हम एक समृद्ध, विकसित और खुशहाल झारखण्ड का निर्माण करेंगे।
दिशोम गुरुजी के सपनों का झारखण्ड बनकर रहेगा। हेमंत के अनुसार, दिसंबर 2019 में उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली। झारखण्ड रुपी इस पेड़ को विपक्ष (भाजपा) ने 20 वर्षों तक दोनों हाथों से लूटा। हमने इस पेड़ की जड़ों को मजबूत करने का सशक्त प्रयास किया। कोरोना काल में पूरे देश में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला भी झारखण्ड पहला राज्य बना। हमने “सरकार आपके द्वार” के तहत लाखों राज्यवासियों को कई कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा।
लाखों परिवारों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली दी। बकाया बिल माफ किया। किसानों को दो लाख रुपये तक कृषि ऋण माफ किया। लाखों माताओं-बहनों को “मईया सम्मान” सहित कई योजनाओं से जोड़ा। झारखण्ड के एक लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाया के लिए आवाज उठाने पर उन्हें जेल में डाल दिया गया। यह इसलिए था, क्योंकि वे झारखण्डवासियों की सेवा कर रहे थे। अपने लोगों को हक-अधिकार दे रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सरकार को कई बार निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा कि आदिवासी होने के नाम पर क्या किसी को कोई भी अपराध करने की छूट मिल सकती है? राज्य सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित होती रही है।
युवाओं, माताओं, बहनों को रोजगार और आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है। जनता की सेवा करने की जगह हेमंत अपने परिवार की सेवा करते आये हैं, परन्तु भाजपा ऐसा नहीं सोचती। पार्टी ने पंचप्रण के जरिये राज्य के हर वर्ग के लिए वादे किए हैं। “गोगो दीदी” योजना के तहत झारखण्ड की हर महिला के बैंक खाते में हर महीने की 11 तारीख को 2,100 रुपये दिए जाएंगे। “लक्ष्मी जोहार योजना” के जरिये सभी घरों में 500 रुपये में एलपीजी गैस सिलेंडर और साल में दो सिलेंडर मुफ्त दिए जाएंगे। सुनिश्चित रोजगार गारंटी के जरिये युवाओं के लिए 5 साल में 5 लाख स्वरोजगार, 2।87 लाख खाली सरकारी पदों के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती की जायेगी। स्नातक और स्नातकोत्तर पास युवा साथियों को 2 वर्षों की अवधि के लिए हर माह 2000 रुपये और 21 लाख परिवारों को अपना पक्का आवास मिलेगा।
विधानसभा चुनाव में मोदी मैजिक की आस
जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम से भाजपा को ज्यादा आस नहीं थी, परन्तु हरियाणा में भी कई राजनीतिक विश्लेषकों को आस नहीं थी कि भाजपा यहां वापसी करेगी। इसके बावजूद हरियाणा के रिजल्ट ने साबित किया कि वहां के लोग भाजपा और मोदीजी से अभी भी प्रभावित हैं। हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कुल 5 रैलियां की थी। इन रैलियों का असर 17 विधानसभा सीटों पर था। इनमें करीब एक दर्जन पर भाजपा के पक्ष में परिणाम आए, लेकिन इसी अनुपात में कांग्रेस के प्रमुख लीडर राहुल गांधी अपनी पार्टी को ऐसी जीत नहीं दिला सके।
हरियाणा का रिजल्ट आने के साथ ही भाजपा नेता गौरव भाटिया ने राहुल का नाम लिए बगैर कहा था कि लोकतंत्र की जीत हो गयी है। यह उस रॉकेट को करारा जवाब है, जो लॉन्च नहीं होता है, लेकिन कहता है कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है। हरियाणा ने दिखा दिया है कि जलेबी फैक्ट्री में नहीं बनती, मेहनती हलवाई की दुकान में बनती है। इसके विपरीत कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा दिये थे। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव से पहले इसी साल लोकसभा के चुनाव हुए थे। इसमें लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को सफलता मिली थी।
जाहिर है कि महाराष्ट्र के साथ- साथ झारखण्ड के नेताओं को भी अपने सबसे मजबूत चेहरे नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है। झारखण्ड में तो प्रदेश भाजपा के स्तर से दो चरणों में होने वाले चुनाव को देखते हुए मोदीजी से अधिक से अधिक चुनाव प्रचार कराये जाने की योजना तय की जा रही है। महाराष्ट्र में भी ऐसी ही तैयारी की सूचना है, जहां एक ही चरण में चुनाव होने हैं। अब महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव परिणाम तो 23 नवंबर को आने हैं, पर इस बहाने करीब-करीब सभी दलों को अपनी-अपनी ताकत को आजमाने का मौका मिल रहा है।
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खासकर इंडी गठबंधन के लिए झारखण्ड में चैलेंज बड़ा है, जहां उसे फिर से सरकार में वापसी करने का दबाव है। महाराष्ट्र में 288 सीटों पर बहुमत हासिल करना भी पक्ष-विपक्ष के लिए कम चैलेंज नहीं है। इतना तो तय समझा जा रहा है कि इन राज्यों के चुनाव परिणाम से देश में एनडीए और इंडी गठबंधन के सियासी भविष्य और बढ़ते वजूद की परख होगी।
अमित झा
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