नई दिल्लीः कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के उपराज्यपाल (एलजी) को अधिक अधिकार दिए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। शनिवार को सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए खड़गे ने कहा कि केंद्र सरकार का जम्मू-कश्मीर के साथ विश्वासघात बदस्तूर जारी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी करना चाहती है। वह राज्य सरकार को उपराज्यपाल की दया पर रखना चाहती है।
एलजी की दया पर रखना चाहते हैं सरकार
खड़गे ने पोस्ट पर कहा है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत नियमों में संशोधन कर एलजी को अधिक अधिकार देने वाली नई धाराओं को शामिल करने के केवल दो अर्थ हैं। पहला यह कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव अनिवार्य कर दिए हों, लेकिन मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी करना चाहती है। दूसरा यह कि भले ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर दिया गया हो, लेकिन वह नवनिर्वाचित राज्य सरकार को एलजी की दया पर रखना चाहती है।
क्या-क्या बदले नियम
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन किया है। गृह मंत्रालय के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की प्रशासनिक भूमिका का दायरा बढ़ जाएगा। इस संशोधन के बाद अब पुलिस, कानून व्यवस्था, एआईएस (अखिल भारतीय सेवाएं) से जुड़े मामलों में उपराज्यपाल के पास ज्यादा अधिकार होंगे। अभी तक एआईएस से जुड़े मामलों (जिनमें वित्त विभाग की सहमति जरूरी थी) और उनके तबादलों व नियुक्तियों के लिए वित्त विभाग की मंजूरी की जरूरत होती थी, लेकिन अब इन मामलों में भी उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार मिल गए हैं।
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इसके अलावा अब एडवोकेट जनरल, विधि अधिकारियों की नियुक्ति और मुकदमा चलाने, अपील दायर करने की अनुमति देने या न देने से जुड़े प्रस्ताव पहले उपराज्यपाल के समक्ष रखे जाएंगे। गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत संशोधित नियमों को अधिसूचित कर दिया है। उपराज्यपाल की भूमिका को परिभाषित करने के लिए नई धाराएं जोड़ी गई हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि कानून के तहत उपराज्यपाल द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए पुलिस, कानून और व्यवस्था, एआईएस और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को वित्त विभाग की पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं होगी, बशर्ते प्रस्ताव मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष रखा जाए।
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