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मिशन 2024 और सियासी पार्टियों के लिए कर्नाटक चुनाव के संदेश

  कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए मिशन 2024 से पहले एक बड़ी सौगात है, लेकिन दूसरे दलों के लिए भी इससे कुछ न कुछ सियासी संदेश जरुर निकले हैं। चाहे वह भारतीय जनता पार्टी हो, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का जनता दल (एस) हो, आम आदमी पार्टी हो या अन्य। कांग्रेस के लिए जीवनदायिनी बन कर यह जीत आयी है। देश में अगले एक साल बाद होने वाले आम चुनाव में उसे अपने लिए भी बेहतर संभावनाएं दिखने लगी हैं। दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक भाजपा के लिहाज से एक अहम राज्य और प्रवेश द्वार था, लेकिन चुनाव परिणाम ने लगता है कि इसे बंद कर दिया है। अब आगे इस साल के आखिर तक पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के अलावा पूर्वोत्तर का मिजोरम भी शामिल है। यह तो फिलहाल साफ दिख रहा कि मुख्य मुकाबला इन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता दिखेगा। अभी तो कांग्रेस और बीजेपी जैसे दोनों दलों के लिहाज से यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कर्नाटक के नतीजों का असर 2024 आमचुनाव से पहले होने वाले इन पांच राज्यों के चुनावों पर भी पड़ेगा। जैसी जीत कांग्रेस को कर्नाटक में मिली है, वैसा ही परिणाम यहां भी उसे मिलेगा। इनमें से दो राज्यों में तो कांग्रेस सत्ता में है। कर्नाटक का किला भाजपा से छीनने के बाद कांग्रेस में उत्साह का संचार तो बेशक पैदा हो ही गयी है, लेकिन क्या वह उत्साह 2024 तक बना रहेगा, यह एक सवाल है। 2024 के आम चुनाव पर भाजपा के लिए कर्नाटक चुनाव का कितना असर होगा, यह उसके लिए भी बड़ा सवाल बना है। आम चुनाव में अपने लिए राह बनाने में लगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब आगे किस रास्ते पर बढ़ेंगे, इस पर भी सवालों का सिलसिला शुरू होना तय है। निश्चित तौर पर कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में बड़ी जीत का श्रेय अपने नेता राहुल गांधी को देने में लगी है। पिछली कुछ हार के बाद गांधी परिवार अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था। उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे। लगातार हार के बाद कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में सफलता मिली पर छोटा राज्य होने के कारण इस जीत से मनमाफिक जीत का माहौल नहीं बना, लेकिन कर्नाटक की जीत राहुल गांधी को स्थापित करने में जरूर मदद करेगी। ऐसे में कांग्रेस कह रही है कि राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान सबसे ज्यादा समय इसी राज्य में गुजारा था। इससे पार्टी के भीतर और मतदाताओं के बीच उनकी छवि पर अच्छा असर पड़ा। कर्नाटक के जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों से भारत जोड़ो यात्रा गुजरी थी, उनमें से 15 में कांग्रेस को जीत मिली। वहीं, इस परिणाम के चलते कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की भी अपनी पार्टी में स्थिति और मजबूत होगी। बता दें कि, कर्नाटक उनका गृह राज्य है। उन्होंने राज्य में कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए कड़ी मेहनत दिखाई। वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी की अहमियत भी पार्टी में पहले से ज्यादा बढ़ जाएगी, ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह लोकसभा चुनाव 2019 के बाद पहली बार पार्टी के प्रचार के लिए मैदान में उतरी थीं। कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला। कर्नाटक की जीत से पूरे देश में कांग्रेस की छवि भी और बेहतर होने की संभावना बनती दिख रही है। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पहले से ही सत्ता में है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राजस्थान, मध्य‍ प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। संभव है कि कर्नाटक की जीत का असर इन राज्यों में भी देखने को मिले। कांग्रेस की इस जीत का असर बाकी विपक्षी दलों पर भी नजर आ सकता है। अब तक सपा, बसपा, राजद, जद(यू), जद(एस), तृणमूल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी केंद्र की राजनीति में कांग्रेस पर दांव लगाने में सुस्त दिख रही थी। कांग्रेस की कर्नाटक में बड़ी जीत के बाद केंद्र की राजनीति में सक्रिय ज्यादातर विपक्षी दल कांग्रेस के पीछे खड़े होने को तैयार हो सकते हैं। भाजपा के लिए आत्ममंथन का समय कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम ने भाजपा को झटका दिया है। उसके लिए ये समय आत्ममंथन का बन चुका है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव अगले वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के लिहाज से एक लिटमस टेस्ट जैसा भी साबित हुआ। लगातार 10 साल के कार्यकाल के बाद बीजेपी आम चुनावों को तीसरी बार जीतने के लिए मैदान में उतरेगी। ऐसे में ठीक एक साल पहले पार्टी को कर्नाटक में मिली अप्रत्याशित हार एक मौके और संकेत की तरह है कि वह पहले जनता का मन भांपकर उसके अनुसार अपनी चुनावी रणनीतियों में जरूरी बदलाव कर ले। माना जाता है कि साल 2014 का आम चुनाव मोदी लहर लेकर आया था। बीजेपी ने बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करते हुए केंद्र की सरकार बनाई थी। ठीक यही बात साल 2019 के आम चुनावों के लिए भी सटीक बैठती है। इस बीच, जितने भी विधानसभा चुनाव या अन्य कोई उपचुनाव लड़े गए, एक तरीके से सभी के केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी ही रहे हैं। कर्नाटक चुनाव ने ये साबित किया है कि बार-बार मोदी के नाम पर ही चुनावी वैतरणी पार करना भाजपा नेताओं के लिए घातक हो सकता है। 2024 से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसे देखते अब ये जरूरी हो गया है कि प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए लोकप्रिय स्थानीय नेता का होना जरूरी है। वह जनता के बीच पूरी ताकत से उनके बीच रहे और जनता से नजदीकी को वोट में बदलने में सक्षम हो। बीजेपी के लिए संदेश है कि वह जब किसी राज्य में चुनाव में वह उतरे तो वहां पार्टी के तौर पर ऐसा प्रमुख चेहरा सामने लाए जिसकी छवि दमदार और साफ सुथरी हो। कर्नाटक में बोम्मई मुख्यमंत्री थे, येदियुरप्पा भी भाजपा के बड़े नेता थे, लेकिन चुनाव के दौरान प्रमुख चेहरे के तौर पर इनकी इमेज कभी सामने नहीं रही। इसके विपरीत कांग्रेस में चाहे डीके शिवकुमार हों, सिद्धारमैया हों या जगदीश शेट्टार, तीनों ही बड़े और नामी चेहरे थे। राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अब राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय मामलों, मुद्दों को भी उठाया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो स्थानीय मुद्दों के आधार पर जनता किसी को भी नकार सकती है। इस मामले में कांग्रेस ने पूरी रणनीति के तहत काम किया, उसने अडानी-हिंडनबर्ग मामले, राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने और ईडी-सीबीआई की कार्रवाई के मसलों को सिर्फ उतना ही उठाया, जितना कि वह चर्चा में बने रहे। एक ओर जहां कांग्रेस ने लोगों के सामने महंगाई, भ्रष्टाचार, विधि व्यवस्था और आरक्षण जैसे मुद्दों पर अधिक बात की, वहीं दूसरी ओर बीजेपी में इस बात की कमी दिखी। गौरतलब है कि, साल 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने से ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगे हुए थे। इसके बाद से वहां अरसे से अपने लिए सियासी जमीन तलाश रही भाजपा को फायदा मिला। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ मिलने से दीर्घकालिक लाभ मिला। कर्नाटक में भी भाजपा ऐसे ही किसी प्रकरण की आस में रही पर लाभ नहीं मिला। मुस्लिम आरक्षण खत्म करना भाजपा का बड़ा दांव था। चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण को खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांटने का ऐलान किया गया, लेकिन कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का ऐलान कर दिया। इसके अलावा हलाला, हिजाब और अजान जैसे बीजेपी के मुद्दे भी किसी काम नहीं आए। यह भी पढ़ेंः-इंग्लिश विंग्लिश और श्रीदेवी की दूसरी पारी कर्नाटक में सत्ता बदलने की परंपरा कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन की बात करके मुस्लिम वोट को अपने खेमे में कर लिया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने कर्नाटक में खूब मेहनत की थी, वहां तीन दशक से भी अधिक समय से परंपरा रही है सत्तारूढ़ दल को बाहर करते रहने की। ऐसे में इस बार के चुनाव में भी कर्नाटक में बीजेपी को एंटी इनकंबेंसी ने चोट पहुंचायी। सत्ता विरोधी लहर को कांग्रेस ने 40 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार बताकर और हवा दी, लेकिन भाजपा ने इस पर काम नहीं किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव के केंद्र में खुद को सामने रखा और कोशिश रखी कि यह चुनाव विधानसभा का न होकर राष्ट्रीय बन जाए। दूसरी ओर कांग्रेस अपने स्थानीय मुद्दों पर कायम रही, जिसका फायदा उसे हुआ और एंटी इनकंबेंसी का फायदा भी मिला। गौर करने वाली बात यह है कि विधानसभा चुनावों में मतदाता राज्य सरकार के प्रदर्शन और स्थानीय मुद्दों पर मत देते हैं, इसका लोकसभा या राष्ट्रीय राजनीति से कोई लेना देना नहीं होता है। सामान्य तौर पर विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे भी बहुत कम बार स्थानीय मुद्दों पर हावी होते देखाई दिए हैं। इन सबसे इतर बीजेपी को कर्नाटक की हार से दोहरा झटका लगने की आशंका है। दक्षिण भारतीय राज्यों में धीरे-धीरे बढ़ रही पार्टी की पैठ को झटका लग सकता है तथा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना भी कुछ हद तक बिखर सकता है। एक धड़ा ऐसा भी है, जो मानता है कि कर्नाटक की हार से पीएम मोदी की करिश्माई छवि को नुकसान हो सकता है। उनका कहना है कि केंद्र से लेकर चुनाव में जाने वाले सभी राज्यों की जीत में पीएम मोदी की रैलियों की बड़ी भूमिका मानी जाती है। इस हार से उनकी इस छवि को कुछ झटका लगा सकता है। अब ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ज्यादा जोर लगाए, ताकि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पार्टी को लगे इस सियासी खरोंच से उबारा जा सके। अमित झा (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)