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Jharkhand: 33 लाख छात्रों के निवाले पर संकट, दुकानों से उधार लेकर स्कूलों में बन रहा mid-day-meal

रांची : झारखंड के सरकारी स्कूलों में लगभग 33 लाख बच्चों के निवाले पर संकट पैदा हो गया है। इन बच्चों को मिलने वाले मिड-डे-मील (mid-day-meal) के लिए स्कूलों के पास अब फूटी कौड़ी नहीं है। आलम यह है कि स्कूलों की प्रबंध समितियां और शिक्षक दुकानों से उधार लेकर पिछले 18 दिनों से मिड-डे-मील (mid-day-meal) उपलब्ध करा रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने फंड उपलब्ध नहीं कराया तो दुकानदार राशन देना बंद कर देंगे और ऐसी स्थिति में मिड-डे-मील वितरण बंद हो सकता है।

गौरतलब है कि स्कूलों में मिड-डे-मील (mid-day-meal) के लिए सरकार चावल उपलब्ध कराती है, जबकि दाल, तेल, मसाला, सब्जी, फल, अंडा और कुकिंग कॉस्ट के लिए छात्रों की संख्या के हिसाब से राशि उपलब्ध कराती है। पहली से पांचवीं कक्षा के प्रत्येक बच्चे के लिए कुकिंग कॉस्ट के तौर पर 4.97 रुपये और कक्षा छठी से आठवीं तक के बच्चों के लिए 7.45 रुपये मिलते हैं। राज्य में अप्रैल से जून तक के लिए इस मेद राशि उपलब्ध करायी गयी थी। जुलाई में इस मद में स्कूलों को कोई पैसा नहीं मिला है। राज्य के लगभग 41 हजार प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में 33 लाख से ज्यादा बच्चों को स्कूलों में ही दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार स्कूलों में मिड-डे-मील (mid-day-meal) दिया जाना अनिवार्य है। इस योजना पर होने वाले खर्च की 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार और 40 फीसदी राशि राज्य सरकार देती है।

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झारखंड सरकार ने मिड-डे-मील (mid-day-meal) में बच्चों को हफ्ते में पांच दिन अंडा या फल देना अनिवार्य किया है और इसके लिए सालाना लगभग 400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट तय किया गया है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से मिड-डे-मील की राशि नहीं मिल पाने की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। राज्य के शिक्षा सचिव राजेश शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से मिड-डे-मील (mid-day-meal) के लिए करीब 650-700 करोड़ रूपए की उपलब्ध करायी जाती है, जो अब तक अप्राप्त है। उन्होंने स्वीकार किया है कि स्कूलों को राशि नहीं मिल पाने से कहीं-कहीं कठिनाइयों की सूचना आ रही है। सरकार की कोशिश है कि जल्द ही इस समस्या को दूर कर लिया जाये।

इधर, अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता नसीम अहमद का कहना है कि मिड-डे-मील (mid-day-meal) का पैसा न मिलने से राज्य भर के विद्यालयों से शिक्षक परेशान हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के दुकानदार हफ्ते-दस दिन से ज्यादा उधार देने को तैयार नहीं होते। फल और अंडे की खरीदारी नगद करनी पड़ती है। फिलहाल शिक्षक अपनी जेब से पैसे लगा रहे हैं। कायदे के मुताबिक जुलाई से सितंबर तक की राशि महीने की शुरूआत में ही उपलब्ध हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

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