Saturday, December 14, 2024
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Homeअन्यजरा हटकेइस मंदिर में देवी मां के दर्शनों के लिए पुरुषों को करना...

इस मंदिर में देवी मां के दर्शनों के लिए पुरुषों को करना पड़ता है महिलाओं की तरह 16 श्रृंगार, वजह जानकर…

लखनऊः हमारे देश भारत में देवी-देवताओं की पूजा विधि कई तरह से अलग-अलग होती है, कई अलग-अलग जगहों पर मान्यताएं व परंपराएं भी एक दूसरे से भिन्न हैं। कई ऐसे मंदिर भी है जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है तो कही पुरुषों की एंट्री नहीं हो सकती। ऐसे ही हम आज आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां देवी मां के दर्शनों के लिए पुरुषों को महिलाओं की तरह 16 श्रृंगार करने पड़ते हैं। ऐसा सुनने में भले अजीब लग रहा हो, लेकिन ये सच है।

ये मंदिर केरल के कोल्लम जिले में स्थित है। इस मंदिर का नाम ‘कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर’ है। इस मंदिर में हर साल आयोजित होने वाला ‘चमयाविलक्कू उत्सव’ एक ऐसा उत्सव है जहां पुरुष पारंपरिक महिलाओं की पोशाक में तैयार होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।

पूरे विधि-विधान से होती है पूजा

हर साल होने वाले इस उत्सव में पुरुष महिलाओं की तरह साड़ी और गहने पहनते हैं। मंदिर परिसर में ही परिवर के अन्य सदस्य या मेकअप आर्टिस्ट पुरुषों को तैयार करते हैं और 16 शृंगार करते हैं। इसके बाद यात्रा निकाली जाती है और सभी विधि-विधान से पूजा करते हैं। इस दौरान पुरुष अपने हाथ में पाँच बत्ती से जलाया गया दीपक अपने हाथ में रखते हैं। चमयाविलक्कु का शाब्दिक अर्थ है श्रृंगार प्रकाश यानी पांच बत्ती से जलाया गया दीप

क्या है मान्यता

ऐसी मान्यता है कि महिलाओं का रूप धारण कर पूजा करने से पुरुषों को नौकरी, धन और अन्य जो भी मनोकामना होगी वो पूरी होती है। वैसे इस उत्सव के पीछे भी कई स्थानीय लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। एक लोक कथा के अनुसार, एक बार कुछ चरवाहों जंगल में नारियल मिला था और इन लोगों ने इसे पत्थर पर मारकर तोड़ने की कोशिश की। इस कोशिश में पत्थर से खून की बूंदे टपकने लगी जिससे सभी डर गए और गांववालों को इस बारे में जानकारी दी।

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इसके बाद स्थानीय लोगों ने ज्योतिषियों से परामर्श किया तो उन्होंने बताया कि पत्थर में वनदुर्गा की अलौकिक शक्तियां हैं । इसके बाद मंदिर के निर्माण हेतु पूजा शुरू कर दी गई। मंदिर निर्माण के बाद केवल लड़कियों व महिलाओं को ही यहाँ पूजा करने की अनुमति थी। लेकिन एक बार एक गाय चराने वाले पुरुष ने महिला का रूप धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना की। तभी से इस मंदिर में दर्शन के लिए लड़कियों के रूप में तैयार करने की परंपरा शुरू हुई थी।

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