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चीनी सेना को खदेड़ने वाली ​'विकास रेजिमेंट' के नाम दर्ज हैं बहादुरी के कई किस्से

नई दिल्ली: पैंगोंग झील के दक्षिणी तट की जिस थाकुंग और काला टॉप चोटी पर भारतीय सेना की विकास रेजिमेंट ने कब्ज़ा करके चीनियों को खदेड़ा, उसकी बहादुरी के तमाम किस्से हैं, लेकिन 29-30 अगस्त की रात से पहले गुमनामी में थे, क्योंकि यह भारतीय सेना की खुफिया बटालियन है।अब जब बटालियन के जवानों ने चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया तो इसकी चर्चा सामने आई है। चीन को मात देने वाली विकास रेजिमेंट बटालियन के जवानों की भारतीय सेना में ऐतिहासिक भूमिका रही है। यह सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (​​एसएफएफ) इकाई है, जिसे उत्तराखंड से लाकर लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कुछ प्रमुख ऊंचाइयों वाले मोर्चों पर तैनात किया गया है।

भारत-चीन सीमा युद्ध के बाद​ ​नवम्बर 1962 में ​​​​​​​​खुफिया ब्यूरो ​के ​निदेशक ​​बी​​​​एन​ ​​मुल्लिक ने कुछ तिब्बती सैनिकों की भर्ती करने का फैसला किया। उस समय ​​तिब्बती गुरिल्ला आंदोलन सक्रिय था​ और बहुत सारे सैनिक और कुछ अधिकारी पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग या दार्जिलिंग में थे। मलिक ने दलाई लामा के बड़े भाई ग्यालो थोंडुप के साथ संपर्क किया। अगले कुछ महीनों में उन्होंने उन शरणार्थियों में से तिब्बतियों को भर्ती किया जो 1959 के बाद भारत आए थे। ​उस समय उनके पास छह-सात हजार ​तिब्बती ​थे, जो वापस तिब्बत ​​जाने और चीनी कब्जे से मुक्त​ कराना चाहते थे​​​​​​​​​​​​​​​​। भर्तियों का एक समूह विभिन्न तिब्बती बस्तियों में गया और हर युवा तिब्बती तिब्बत के लिए लड़ने के लिए उत्सुक था, लेकिन वह उद्देश्य कभी पूरा नहीं हुआ।

तिब्बती सेनाओं ने कभी चीन के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। ​​इस तरह ​स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन 1962 के चीन-भारत युद्ध के तुरंत बाद किया गया था​​। इसमें सिर्फ तिब्बतियों को भर्ती किया गया था और शुरू में इसे 22 बटालियन के नाम से जाना जाता था। ​इसका नाम 22 बटालियन इसलिए रखा गया था, क्योंकि इसका गठन 22 माउंटेन रेजिमेंट के आर्टिलरी अधिकारी मेजर जनरल सुजान सिं​​ह उबान ने किया था​ और वे ​ही एसएफएफ ​​के पहले महानिरीक्षक थे​। ​अब इसमें तिब्बतियों के साथ-साथ गोरखाओं को भी भर्ती किया जाने लगा है।

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​समय के साथ स्पेशल फ्रंटियर फोर्स​ ​भारतीय सेना के अधीन हो गई और इसे विकास बटालियन का नाम दिया गया​।​​​ ​​​​यह बटालियन अब कैबिनेट सचिवालय के दायरे में आती है, जहां इसका नेतृत्व मेजर जनरल के रैंक के सेना अधिकारी महानिरीक्षक​ (सुरक्षा)​ के रूप में करते हैं। डीजीएस अब भारत की बाहरी एजेंसी ​रॉ ​का हिस्सा है।​ ​एसएफएफ में शामिल इकाइयां विकास बटालियन के रूप में जानी जाती हैं। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह ने अपनी सेवा में रहते हुए एक समय पर इसका नेतृत्व किया है।