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बंगाल की 17वीं विधानसभा में नजर नहीं आएंगे कई चिर परिचित चेहरे

कोलकाता: राज्य की नवगठित 17वीं विधानसभा में कई चिर परिचित विधायकों के चेहरे नजर नहीं आएंगे। अपने लंबे राजनीतिक अनुभव से संसदीय राजनीति को समृद्ध करने वाले यह नेताओं की फिर से सदन में वापसी की संभावना लगभग क्षीण सी मानी जा रही है। लंबे समय तक सदन की गतिविधियों में हिस्सा लेने वाले ये लोग तकरीबन पांच दशक से भी अधिक समय से राजनीति में सक्रिय रहे हैं और सदन में कई राजनीतिक उत्थान व पतन के साक्षी बनें। बरसों बाद ऐसा होगा जब सदन में यह अनुभवी नेता नजर नहीं आएंगे।

अब्दुल मन्नान (कांग्रेस)

16वीं विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके कांग्रेस के अब्दुल मन्नान पिछले 56 वर्ष से बंगाल की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। हुगली की चांपदानी सीट से चुनाव हार चुके अब्दुल मन्नान बताते हैं कि 1964 में जब विनोबा भावे बंगाल आए थे, तब उन्हीं का चरण स्पर्श कर उन्होंने कांग्रेस के लिए काम करना शुरू किया था। तब से लेकर उनका राजनीतिक सफर जारी है। अविवाहित अब्दुल मन्नान ने अपना पूरा जीवन राजनीति को समर्पित कर दिया। उन्होंने बताया कि राजनीति ही मेरा परिवार है। पेंशन के पैसे से घर चल जाता है। अन्य क्षेत्रों की तरह राजनीति में भी परिवर्तन देखने में आ रहा है लेकिन मैं अभी भी वैसा ही हूं।

अब्दुल मन्नान के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो 1982 में पहली बार उन्होंने हुगली जिले की आरामबाग सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। लेकिन अगले चुनाव में वह इस सीट से हार गए। उसके बाद 1991 से 2001 तक लगातार तीन बार इस सीट से जीतते रहे। 2006 में फिर उनकी हार हुई और 2016 में उसी सीट से जीतकर विधानसभा की सदस्यता हासिल की। 2021 के चुनाव में एक बार फिर उनकी पराजय हुई है। यह पूछने पर कि क्या वे फिर से विधानसभा में नजर आएंगे? मन्नान ने कहा कि देखते हैं, इंसान तो उम्मीद के सहारे ही जिंदा रहता है।

अब्दुल रज्जाक मोल्ला (माकपा/तृणमूल)

2016 में माकपा छोड़कर तृणमूल में आये रज्जाक मोल्ला 78 साल के हो चुके हैं। तकरीबन छह दशक पहला वाम आंदोलन से जुड़ने वाले मोल्ला 1970 से लगातार 11 बार कैनिंग पूर्व सीट से विधानसभा का चुनाव जीतते रहे हैं। वाम शासन में लंबे समय तक मंत्री भी रह चुके हैं। बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ मतभेदों के चलते उन्हें माकपा से निलंबित कर दिया गया था। 2016 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए माकपा उम्मीदवार को पराजित किया था और फिर ममता मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए थे। इस बार रज्जाक मोल्ला को तृणमूल ने टिकट नहीं दिया और अब उनके विधानसभा में लौटने की संभावना बेहद क्षीण है।

नेपाल महतो (कांग्रेस)

चार बार के विधायक एवं प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष नेपाल महतो इस चुनाव में पांचवीं बार उम्मीदवार थे, लेकिन जीत नहीं सके। सुशीक्षित एवं भद्र राजनीतिज्ञ के तौर पर पहचाने जाने वाले नेपाल महतो ने विधानसभा में अपनी एक खास जगह बनाई थी। महतो उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में वाम एवं आइएसएफ के साथ कांग्रेस के गठबंधन की खुलकर मुखालफत की थी। 1977, 82 एवं 87 में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव हारने वाले नेपाल महतो पहली बार 1996 में जीत हासिल की। 2001 में फिर से उन्हें जीत मिली जबकि 2006 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। महतो 2011 एवं 16 में फिर से विधानसभा के लिए चुने गए।

मनोज चक्रवर्ती (कांग्रेस)

अपनी तेजतर्रार छवि के लिए विख्यात मनोज चक्रवर्ती ने पहली बार 2006 में विधानसभा चुनाव जीता। बाद में कांग्रेस और तृणमूल की गठबंधन सरकार में मंत्री भी बनें। हालांकि कुछ समय बाद मतभेदों की वजह से वे सरकार से बाहर निकल गये। आगामी 20 मई को 67 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले मनोज चक्रवर्ती इस बार का चुनाव हार गए हैं।

अशोक भट्टाचार्य (माकपा)

सिलीगुड़ी सीट से चुनाव हार चुके माकपा के दिग्गज नेता अशोक भट्टाचार्य की गिनती जेंटलमैन राजनीतिज्ञों में होती रही है। उत्तर बंगाल में वाम राजनीति के स्तंभ माने जाने वाले भट्टाचार्य ने 1991 में पहला पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।1996 से 2011 तक वे लगातार चुनाव जीतते रहे। उन्होंने राज्य सरकार में शहरी विकास मंत्री के तौर पर जिम्मेदारी भी निभाई। पिछले 20 सालों में एकमात्र 2011 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 2016 में उन्होंने फिर से जीत हासिल की। 2021 के चुनाव में सातवीं बार प्रतिद्वंदिता कर रहे अशोक भट्टाचार्य को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा है।

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विश्वनाथ चौधरी (आरएसपी)

बंगाल की राजनीति में इनका कद इतना बड़ा रहा है कि गत 28 जनवरी को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने उनके घर जाकर उनका आशीर्वाद लिया था। 1977 से 2006 तक लगातार सात बार विधायक रह चुके विश्वनाथ चौधरी 25 साल तक राज्य के मंत्री रहे। 2011 में उन्हें सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 2016 में फिर से उन्होंने चुनाव जीत कर विधानसभा में वापसी की थी। इस बार अपनी उम्र संबंधित समस्याओं की वजह से उन्होंने चुनाव में शिरकत नहीं की थी।

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