लखनऊः बसंत का समय भी अब ज्यादा दूर नहीं है। इस मौसम में कई फसलों की बुवाई की जा सकती है। इसके लिए किसान अभी से खेत की तैयारी शुरू कर दें। खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता की जांच के साथ चयनित फसलांे के बीजों को शोधित जरूर कराएं। इसी तरह से राजमा के दिन भी आने वाले हैं।
इन दिनों लोबिया की खेती की तैयारी करना श्रेयष्कर होगा। इसकी उन्नत किस्मों में पूसा कोमल, अर्का गरिमा व पूसा दोफसली किस्मों को लोग सालों से अपनाते आए हैं। पूसा कोमल लोबिया की ऐसी किस्म है, जो बैक्टीरियल ब्लाईट प्रतिरोधी मानी जाती है। लोबिया की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश के दिनों में की जाती है। यह ऐसे मौसम हैं, जिनमें किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। जिन किसानों की लोबिया की फसल अच्छी रही है, उनकी प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल उपज रही है। बारिश और बसंत ऋतु में लोबिया के बीजों का अंकुरण 85 फीसदी तक रहता है। हालांकि, लोबिया की खपत कम रहती है, लेकिन अब मोटे अनाज में इसकी भी खपत बढ़ जाएगी। लोबिया को कभी मोटे अनाज में दालों में गिना जाता था, लेकिन अब इसे हरे साग के रूप में ही खपा दिया जाता है।
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लोबिया की खेती में प्रति हेक्टेयर के लिए 12 से 20 किग्रा बीज काफी होता है। इसकी बुवाई को पंक्तियों में करने से सिंचाई से कटाई तक आरामदायक रहता है। लोबिया बोते समय ध्यान रहे कि 45 से 60 सेमी पंक्ति में ही बीजों को रखें। बीजों की दूरी करीब 10 सेमी रखें। इसी तरह से राजमा की बुवाई भी बसंत के मौके पर कर सकते है। किसानों के लिए यह जरूरी होता है कि जो भी फसलें बोएं, उनके बीज अच्छी किस्म के हों और वह शोधित करके ही बोएं। राजमा की फसल में प्रति हेक्टेयर तीन लाख पौधे उगाए जाते हैं। राजमा की बुवाई करते समय ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेंटीमीटर तथा बीज को 8-10 सेंटीमीटर गहराई में बोएं।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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