नियंत्रण में है राज्य में हिंसा, सुप्रीम कोर्ट में बोली मणिपुर सरकार

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नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बताया कि हिंसा पर काबू पा लिया गया है। मेताई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के लिए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक साल का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि सरकार से जुड़े लोग किसी समुदाय के खिलाफ बयान न दें। मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्टेटस रिपोर्ट फाइल कर दी गई है। पेट्रोलिंग की जा रही है, ट्रांसपोर्ट को लेकर भी कदम उठाए गए हैं। 46 हजार से ज्यादा लोगों की मदद की जा चुकी है। पीड़ितों को मुआवजा दिया जा रहा है। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। तीन करोड़ रुपये का आकस्मिक कोष स्वीकृत किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि हाईकोर्ट में क्या हुआ। तब मेहता ने कहा कि उन्होंने कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए एक साल का समय मांगा था।

डिवीजन बेंच ने 15 मई को जारी किया नोटिस

हाईकोर्ट ने आदेश को लागू करने के लिए समय दिया है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के बारे में सोच रहे हैं। क्या किसी ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में याचिका दाखिल की है। तब कोर्ट को बताया गया कि ट्राइबल फोरम और अन्य याचिकाकर्ताओं ने सिंगल बेंच के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की है। डिवीजन बेंच ने 15 मई को नोटिस जारी किया है। खंडपीठ छह जून को सुनवाई करेगी। उसके बाद उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को गर्मी की छुट्टी के बाद ताजा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। 8 मई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई थी कि हाईकोर्ट किसी भी वर्ग को एसटी की सूची में शामिल करने का आदेश कैसे दे सकता है।

सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों को रिकॉर्ड में लेते हुए, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को सुविधाएं और चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा था कि यह एक मानवीय समस्या है। हमारी चिंता जान-माल के नुकसान को लेकर है। कोर्ट ने सरकार से कहा था कि राहत शिविरों में भोजन और चिकित्सा सुविधाओं की समुचित व्यवस्था की जाए। विस्थापितों का पुनर्वास, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। सुनवाई के दौरान मणिपुर सरकार ने बताया था कि इस संबंध में उचित कानूनी कदम उठाए जा रहे हैं। पर्याप्त सुरक्षा बल भी तैनात किए गए हैं। हालात सामान्य हो रहे हैं।

दो अलग-अलग याचिकाएं है दायर

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि स्थिति सामान्य करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए हैं। इस मामले को लेकर शीर्ष अदालत में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई और दूसरी मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर की है। मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को बीजेपी विधायक गंगमेई की ओर से दायर याचिका में चुनौती दी गई है। वहीं याचिका में कहा गया कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद मणिपुर में अशांति है। इससे कई लोगों की मौत हो गई।

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हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार को मेइती समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। गंगमेई की याचिका में कहा गया है कि किसी भी जाति को एसटी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि हाईकोर्ट के पास। दूसरी याचिका मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि मणिपुर के आदिवासी समुदाय के लोग, जो सीआरपीएफ शिविरों में भाग गए हैं, उन्हें निकाला जाए और सुरक्षित रूप से उनके घरों में वापस लाया जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि आदिवासी समुदाय पर हमले को भाजपा का पूरा समर्थन है, जो राज्य और केंद्र में सत्ता में है।

याचिका में कहा गया है कि राज्य पुलिस भी दबंग समुदाय के पक्ष में काम कर रही है और लोगों की मौत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। याचिका में मांग की गई है कि असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका के नेतृत्व में गठित एसआईटी राज्य में हुई हिंसा की जांच करें। मेघालय राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति तिनलियांथंग वैफेई को इस एसआईटी के काम की निगरानी करनी चाहिए, ताकि आदिवासियों पर हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

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