Manipur Violence: मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर

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नई दिल्ली: मणिपुर (Manipur Violence) में तीन मई 2023 को दो समुदायों के बीच हुई झड़प के बाद पूरा राज्य हिंसा की आग में जल रहा है। विद्रोही गांवों पर हमले कर रहे हैं, घरों में आग के हवाले किया जा रहा है, दुकानों में तोड़फोड़ की जा रही है। यहां हालात इतने खराब हो गए कि 8 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया. साथ ही 5 दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। दरअसल, मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा मेइती समुदाय को एसटी कैटेगरी में रखे जाने के निर्देश के फैसले के बाद मणिपुर में हिंसा हुई थी. जिसके लिए अब सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई और दूसरी मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर की है।

मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को बीजेपी विधायक गंगमेई की ओर से दायर याचिका में चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद पूरे मणिपुर में अशांति है। इसकी वजह से करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी। राज्य के कई इलाकों में हिंसा फैल गई है और ज्यादातर हिस्सों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। इससे लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार को मेइती समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था।

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गंगमेई की याचिका में कहा गया है कि किसी जाति को एसटी श्रेणी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि हाईकोर्ट के पास। याचिका में कहा गया है कि मैताई समुदाय जनजाति नहीं बल्कि समृद्ध समुदाय है. वे एससी या ओबीसी में आ सकते हैं लेकिन एसटी में नहीं।

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दूसरी ओर, मणिपुर (Manipur Violence) ट्राइबल फोरम द्वारा दायर एक अन्य याचिका में मांग की गई है कि मणिपुर के आदिवासी समुदाय के लोग, जो भागकर सीआरपीएफ कैंपों में गए हैं, उन्हें वहां से निकाला जाए और उन्हें सुरक्षित उनके घर पहुंचाया जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि आदिवासी समुदाय पर हमले को भाजपा का पूरा समर्थन है, जो राज्य और केंद्र में सत्ता में है। याचिका में कहा गया है कि राज्य पुलिस भी दबंग समुदाय के पक्ष में काम कर रही है और लोगों की मौत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

फोरम की याचिका में मांग की गई है कि असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका के नेतृत्व में गठित एसआईटी राज्य में हिंसा की जांच करे। इस एसआईटी के काम की निगरानी मेघालय राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति तिनलियांथंग वैफेई द्वारा की जानी चाहिए ताकि आदिवासियों पर हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

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