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देवोत्थानी एकादशी के दिन से शुरू हो जाते हैं मांगलिक कार्य, जानें पूजा की विधि

लखनऊः चार माह के बाद श्रीहरि के जागने का पर्व देवोत्थानी एकादशी 15 नवम्बर को मनाई जाएगी। हिन्दी महीने के कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। जन मानस में इसे डिठुवन भी कहा जाता हैं। इसी दिन से चैमासा समाप्त हो जाता है। शादी-व्याह जैसे मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। बहुत से भक्त इस तिथि में भगवान विष्णु को ऊनी वस्त्र धारण कराते हैं। उनके आसन पर रजाई-गद्दे बिछाते हैं। इस दिन पूजा में भगवान को विशेष रूप से गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंदी चढ़ाई जाती है।

चौमासा हो जाता है समाप्त
ऐसा माना जाता है कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी (जिसे देवशयनी एकादशी कहते हैं) से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी (जिसे देवोत्थानी एकादशी कहते हैं) तक की चार मास की अवधि को चैमासा कहा जाता है। इस अवधि में मांगलिक कार्य ठप रहते हैं। देवोत्थानी एकादशी से मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। एक प्रचलित पौराणिक आख्यान है कि इस अवधि में भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। भगवान के सो जाने से धरती पर मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

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जानिए क्या करना चाहिए इस एकादशी पर
इस तिथि में भगवान श्रीहरि व तुलसी माता की पूजा करनी चाहिए। तुलसी के पौधे के पास भगवान श्रीहरि मूर्ति या तस्वीर रखकर पूजा कर सकते हैं। श्रीविष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा में गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंदी भगवान की पूजा में अर्पण करनी चाहिए। इसे प्रसाद रूप में ग्रहण भी करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस तिथि में बहुत से परिवारों में भगवान को ऊनी वस्त्र धारण कराए जाते है। भगवान के लिए रजाई-गद्दे भी आसन पर रखे जाते हैं। भक्त भगवान के आगे जागो जागो रे भगवान कहकर उन्हें जगाने का उपक्रम करते हैं। भगवान विष्णु के मंदिरों में इस तिथि में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बहुत से भक्त एकादशी व्रत भी रखते हैं।

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