होलाष्टक में भूलकर भी नहीं करने चाहिए मांगलिक कार्य, उठाना पड़ सकता है नुकसान

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नई दिल्लीः ज्योतिष के ग्रंथों में ‘होलाष्टक’ के आठ दिन समस्त मांगलिक कार्यों में निषिद्ध कहे गए हैं। इस वर्ष 10 मार्च से 18 मार्च (होलिका दहन तक) तक होलाष्टक है। इनमें शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। होलाष्टक में कभी भी विवाह, मुंडन, नामकरण आदि 16 संस्कार नहीं करने चाहिए। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा के मध्य तक किसी भी दिन न तो नए मकान का निर्माण कार्य प्रारंभ करें और न ही गृह प्रवेश करें। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक होलाष्टक के दिनों में नए मकान, वाहन, प्लॉट या प्रॉपर्टी को बेचने या खरीदने से बचें, होलाष्टक के समय में कोई भी यज्ञ, हवन आदि कार्यक्रम नहीं करना चाहिए।

ज्योतिष के अनुसार, होलाष्टक के समय में नौकरी परिवर्तन से बचना चाहिए। नई जॉब ज्वांइन करनी है तो होलाष्टक से पहले या बाद में करें। यदि अत्यंत ही आवश्यक है तो कुंडली के आधार पर किसी अच्छे योग्य ज्योतिष की सलाह ले सकते हैं। होलाष्टक के समय में कोई भी नया बिजनेस शुरु करने से बचना चाहिए। इस समय में ग्रह उग्र होते हैं। नए बिजनेस की शुरुआत के लिए यह समय अच्छा नहीं माना जाता है। ग्रहों की उग्रता के कारण बिजनेस में हानि होने का डर हो सकता है। होलाष्टक के समय में आप भगवान का भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ आदि जैसे कार्य कर सकते हैं। इनके लिए किसी भी प्रकार की कोई मनाही नहीं होती है। इसके अलावा आप किसी अच्छे ज्योतिष की सलाह से आप अपने उग्र ग्रहों की शांति के लिए उपाय भी होलाष्टक के समय पर करवा सकते हैं। हिंदू धर्म में होलाष्टक के 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है।

यह ग्रह हो जाते हैं उग्र
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक 8 ग्रह उग्र रहते हैं। इन ग्रहों में सूर्य, चंद्रमा, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु शामिल होते हैं। इन ग्रहों के उग्र रहने से मांगलिक कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके कारण इन 8 दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गयी थी, कामदेव की पत्नी रति द्वारा शिव से क्षमा याचना करने पर महादेव ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनायी। होलाष्टक का अंत दुल्हंदी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।

शुभ कार्य प्रतिबंधित होने के पीछे यह है मान्यता
होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य प्रतिबंधित रहने के पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय मान्यता भी है। ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए हुए रहते हैं। इससे पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद व दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।

आठ दिनों तक चलने वाला है पर्व
सामान्य रूप से देखा जाए तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिन का त्योहार है। भगवान श्रीकृष्ण आठ दिन तक गोपियों संग होली खेले और दुलहंदी के दिन अर्थात होली को रंगों में सने कपड़ों को अग्नि के हवाले कर दिया, तब से आठ दिन तक यह पर्व मनाया जाने लगा।

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सवा महीने पूर्व बढ़ जाती है होली की झंडी
परंपरा अनुसार तो बसंत पंचमी को होली का डंडा (जिसे डंडा या झंडी गाड़ना ) कहते हैं। वह सवा महीने पहले गाड़ दिया जाता है पर शहरीकरण के कारण, होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है। उस दिन को होलाष्टक प्रारंभ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मोहल्ले के चैराहे पर यह होली का डंडा, झंडी स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबंधित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।

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