Home मध्य प्रदेश कला और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम नमूना है मांडू

कला और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम नमूना है मांडू

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मांडू (Mandu) मध्य प्रदेश का एक सुंदर प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर आकर्षक पर्यटन स्थल है। यह शहर प्रेम आनंद तथा उल्लास का प्रतीक है। मांडू का इतिहास 13वीं शताब्दी से लेकर अंग्रेजी शासन तक रक्तरंजित रहा है। इस शहर में कदम रखते ही कवि शहंशाह बाज बहादुर एवं रानी रूपमती का नाम स्वतः ही जेहन में उभर आता है। आज भी इनके प्रेम के किस्से मालवा के लोकनायक गाते हुए मिल जाएंगे। पहाड़ी के ऊपर बना रानी रूपमती का मंडप बाज बहादुर के महल को अदृश्य आंखों से निहारता हुआ नजर आता है। विंध्य की पहाड़ियों पर समुद्र तल से 2,000 फुट की ऊंचाई पर बसा मांडू शहर मालवा के परमार राजाओं की राजधानी था। अपने प्राकृतिक सुरक्षा कवच की वजह से यह उनका पसंदीदा शहर था, बाद में 13वीं शताब्दी में यह मालवा के सुल्तान के हाथों में आ गया। पहले सुल्तान ने इसका नाम ‘शादियाबाद’ रखा था, इसका अर्थ होता है ‘खुशियों का शहर’। मांडू शहर की स्थापना 10वीं शताब्दी में हिन्दू राजा भोज ने की थी। 11वीं शताब्दी में परोमा राजाओं ने मालवा को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया था, तब अतुल सौन्दर्य की सुरम्य घाटी मांडू को राजधानी बनाया गया।

इसके बाद मालवा पर गोरी और खिलजी राजाओं ने कब्जा कर लिया। सन् 1401 में मुगलों ने दिल्ली को जीतकर अपने कब्जे में कर लिया था। उसी वर्ष मालवा के गवर्नर अफगान नायक दिलावर खां ने स्वयं को मांडू का स्वतंत्र रूप से सुल्तान घोषित कर दिया था। दिलावर खां खिलजी वंश का था। सन् 1405 से 1526 तक मालवा में खिलजी वंश का राज्य रहा। दिलावर खां ने मांडू की प्रगति के लिए अनेक काम किए। अफगान शिल्प कला के आधार पर कई महल, मस्जिदें बनाईं। 1405 में दिलावर खां के पुत्र होसांगशाह ने सत्ता संभाली। उसने ‘धार’ के स्थान पर मांडू को राजधानी बना दिया था। शहर का प्रवेश द्वार दिल्ली गेट, जामा मस्जिद अपनी ही समाधि होसंगशाह की शिल्प प्रेम, प्रतिमा के आकर्षक एवं अनुपम नमूने हैं। होसांगशाह के पुत्र को महमूद शाह में सत्ताच्युत कर दिया और स्वयं सुल्तान बन बैठा।

बाज बहादुर व रूपमती के प्यार की महकती है सुगंध

सन् 1469 में महमूद के पुत्र गियासुद्दीन ने 47 वर्ष की प्रौढ़ावस्था में गद्दी संभाली और 31 वर्षों तक शासन किया। हालांकि, बाद में इसी के पुत्र नसीरुद्दीन ने षड़यंत्र कर पिता को जहर दे दिया और स्वयं सुल्तान बन बैठा। कहा जाता है कि नसीरुद्दीन को अपने पाप का फल भोगना पड़ा और सन् 1510 में अपने पिता की हत्या के आरोप में उसे भी मौत के घाट उतार दिया गया, बाद में नसीरुद्दीन के पुत्र महमूद ने गद्दी सम्हाली किंतु अयोग्य शासकों के कारण आंतरिक फूट व कलह अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। सन् 1526 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मालवा पर अधिकार कर लिया। हुमायूं ने मालवा पर हमला किया तो बहादुर शाह गुजरात भाग गया, किंतु मालवा शाह वंश के ही अधिकार में रहा।

यहां इतिहास विलक्षण करवटें बदलता रहा तथा सूबेदार शुजा खां के बड़े लड़के वाजिद खां अपने पिता की मृत्यु के बाद 1554 में मालवा का सुल्तान बना तथा बाज बहादुर की उपाधि धारण की। बाज बहादुर संगीतज्ञ था और वह सुंदरी, नृत्यांगना तथा बेजोड़ गायिका रूपमती से प्रेम करता था। मालवा की धरती आज भी बाज बहादुर व रूपमती के प्यार की सुगंध से महकती है। उनकी दास्तानों की अनुगूंज गूंजती रहती है। बाज बहादुर और रूपमती दोनों संगीत व कला प्रेमी थे। दोनों अक्सर प्रेम और संगीत से डूबे रहते थे। एक कलाकार बेहतर सैनिक न हो सका। रानी दुर्गावती ने उसे पराजित कर दिया। पराजय के बाद दोनों युगल संगीत में खो गए। बाज बहादुर ने सन् 1561 में फिर अकबर के सिपहसालार आधम खां के हाथों मात खाई।

 

इस पराजय ने बाज बहादुर को नौ वर्षों तक जंगल में छिपने के लिए विवश कर दिया। इधर रानी रूपमती को जहाज महल में कैद कर लिया गया। रानी रूपमती के सौन्दर्य पर मुग्ध आधम खां ने उनसे विवाह करने का फतवा जारी कर दिया और मजबूर रूपमती ने अंगूठी का हीरा निगल कर अपनी जान दे दी। प्रेम की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देने वाली रानी रूपमती सम्राट अकबर के आदेश पर सारंगपुर में दफन की गईं। वहां उनकी कब्र पर ‘‘शहीदे वफा’’ लिखकर अकबर ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी। 28 वर्ष बाद सन् 1593 में रूपमती की कब्र पर बाज बहादुर ने भी अपने प्राण त्याग दिए। उन्हें भी वहीं दफना दिया गया और ‘‘आशिके सादिक’’ ये दो शब्द उनकी कब्र पर अंकित कर दिए गए। इस तरह प्रेम का एक अध्याय समाप्त हो गया।

अफगान स्थापत्य का आकर्षक कला केन्द्र

प्रेमस्थली मांडू में कई मुगल बादशाह आए लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता मांडू का आकर्षण समाप्त होता गया। मुगल सम्राट जहांगीर एक बार सात माह तक मांडू में रहा था,ा उसने यहां की मरम्मत भी कराई थी। बाज बहादुर अकबर और जहांगीर के बाद किसी ने मांडू की सुधि नही ली। प्रेम और उल्लास का यह शहर उपेक्षित होने लगा। सन् 1732 में मल्हार राव की देखरेख में मराठों ने मुगल राज्यपाल को हराकर मालवा पर कब्जा कर लिया था। मांडू अफगान स्थापत्य का आकर्षक कला केन्द्र है। यहां के सौन्दर्य की बात ही कुछ अलग है। यहां की प्रत्येक स्मारक वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना नजर आता है। मांडू दुर्ग की क्षेत्र-परिधि में जो कि लगभग 45 किमी है। लगभग तीस दर्शनीय स्मारक हैं, किंतु मुख्य स्मारकों में हिंडोला महल, जहाज महल, जामा मस्जिद, होशंगशाह का मकबरा, अशर्फी महल, नील कंठेश्वर मंदिर, बाज बहादुर महल, रानी रूपमती का मंडप आदि उल्लेखनीय हैं।

हिंडोला महल बड़ा ही विचित्र है। इसका निर्माण वास्तुकला की सामान्य शैली से हटकर किया गया है। हिंडोला महल एक पालने के समान झूलता हुआ सा दृष्टिगत होता है। यह महल अंगे्रजी भाषा के ‘‘टी’’ अक्षर के आकार से मिलता-जुलता है। मुगलकालीन महलों में इसके समकक्ष कोई दूसरा महल कहीं भी नहीं है। हाथी पर बेगमों की पालकियों को दूसरी मंजिल पर ले जाने के लिए ऊपर उठता हुआ चैड़ा जीना बना हुआ है। इस महल के निर्माण में हिन्दू मंदिरों की सामग्री का भी उपयोग किया गया है, जिसके अनेक स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध होते हैं। दूसरा जहाज महल है। इसकी सर्वाधिक विशेषता उसकी अपूर्व भव्यता के कारण है। इसके पूर्व और पश्चिम में कपूर-तालाब और मंजु तालाब विद्यमान हैं और इनके मध्य यह महल एक विशाल जहाज के समान प्रतीत होता है।

यह महल अन्य इमारतों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित है। इसके ऊपरी भाग में पानी पहुंचाने के लिए पर्शियन रहट का प्रयोग होता रहा है। मुगल सम्राट जहांगीर ने अपने संस्मरणों में इस महल की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। मांडू में स्थित जामा मस्जिद की अपनी निराली ही शान है, इसका निर्माण दमिश्क की विशाल मस्जिद के कलात्मक ढंग पर किया गया है। इसके भीतर दर्शनार्थियों के लिए बनी कोठरियों के द्वार मेहराब द्वार हैं। इसकी पृष्ठभूमि में स्थित तीन बड़े गुंबद सुंदर तथा प्रभावशाली हैं। मांडू में होसंगशाह का संगमरमर से निर्मित मकबरा इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि वह आगरा के विश्वप्रसिद्ध ताजमहल के लिए नमूना बना रहा। शाहजहां के द्वारा भेजे गए चार शिल्पकारों ने इसका निरीक्षण किया था और इसकी कलात्मक शैली की प्रशंसा की थी।

रेवाकुण्ड की है विचित्र महिमा

मांडू में ‘‘रेवाकुण्ड’’ की विचित्र महिमा है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि नर्मदा गुप्त रूप से यहां प्रवाहित होती है, अतः वे नर्मदा की परिक्रमा के साथ-साथ इसकी परिक्रमा को भी सफल मानते हैं। रेवा नर्मदा का ही दूसरा नाम है। इसी कुण्ड के पास बाज बहादुर का सुंदर महल है। यह महल पहाड़ी ढलान पर स्थित है और पहाड़ी के अंतिम शिखर पर निर्मित रानी रूपमती के मण्डप को यहां से देखा जा सकता है। बाज बहादुर महल के अंदर एक विशाल प्रांगण है और उसके चारों ओर बड़े और छोटे कमरे बने हुए हैं।

इनके मध्य भाग में एक सुंदर कुण्ड भी है। दुर्ग के सर्वोच्च शिखर पर स्थित रानी रूपमती के मण्डप का अवलोकन करने से विदित होता है कि इसका निर्माण कम से कम तीन अलग-अलग समयों में सम्पन्न हुआ है। इसके मूलखण्ड भाग में दो दीर्घ कक्ष हैं और ये सैनिक निवास स्थल और अस्तबल के समान प्रतीत होते हैं। इनकी मंडलाकार छत पर हिन्दू शिल्प के संकेत स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। संभवतः ये शत्रुओं के आक्रमण की पूर्व सूचना अथवा उनकी गतिविधियों को अवगत करने के लिए ही बनाए गए थे। इसके मूल खण्ड की छत पर बने हुए दो मंडपों के कारण ही महल को रूपमती का मण्डप कहा जाता है। कहा जाता है कि रानी रूपमती यहीं से प्रतिदिन नर्मदा नदी के दर्शन किया करती थीं।

मांडू में स्थित नीलकंठेश्वर अति प्राचीन मंदिर है। यह शिव मंदिर पहाड़ी की निचली ढलान पर शिवलिंग रूप में प्रतिष्ठित है। इसके चारों ओर बने चबूतरे पर झुक कर अथवा लकड़ी की सीढ़ी से नीचे उतर कर ही लिंग पर फूल, विशेषतः कमल के लाल फूल चढ़ाए जाते हैं। इस मंदिर के प्रांगण में ही एक नीलकंठ नामक महल है, जिसका निर्माण मुस्लिम शासकों के समय हुआ था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने खानदेश की विजय के उपरांत इसी महल में विश्राम करके प्राकृतिक सौन्दर्य का लाभ उठाया था। वास्तव में मांडू का संपूर्ण परिवेश प्रकृति मनोहारी दृश्यों से परिपूर्ण है। इस नगर को प्रकृति का वरदान प्राप्त है। बरसात में मांडू के पर्वतीय दुर्ग पर जब मेघ मंडराते हैं, तब इसके खंडहरों में से मेघ-मल्हार की ध्वनि गूंजती हुई प्रतीत होती है, क्योंकि यह दुर्ग प्रणय का ही नहीं, संगीत साधना का भी स्थल रहा है।

मांडू कैसे पहुंचें

मांडू का निकटतम रेलवे स्टेशन इंदौर 100 किमी तथा रतलाम 124 किमी है। मांडू सड़क मार्ग द्वारा इंदौर, महू, उज्जैन, भोपाल आदि नगरों से जुड़ा है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है, जो यहां से 100 किमी पर स्थित है, जो मांडू को मुंबई, दिल्ली, ग्वालियर, भोपाल आदि नगरों को सीधा वायुमार्ग द्वारा जोड़ता है। मांडू में पर्यटकों के ठहरने के लिए ट्रेवलर्स लॉज, टूरिस्ट बंगला, टूरिस्ट कॉटेज, पीडब्ल्यूडी का पर्यटक निवास, पंचायत और जैन धर्मशाला तथा जहाज महल के सामने पुरातत्व विभाग द्वारा संचालित टेªवल महल, रेस्ट हाउस आदि हैं।

ज्योतिप्रकाश खरे

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