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महिलाओं के लिए मिशाल बनीं पुष्पा

लखनऊः आप भी स्वस्थ्य रहने के लिए हरी सब्जी का ही इस्तेमाल करते होंगे। अगर वह सब्जी देसी खाद का प्रयोग कर उगाई गई हो तो वह और भी लाभदायक हो जाती है। भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में राजधानी के अलीनगर सुनहरा की रहने वाली पुष्पा मौर्य अब महिलाओं के लिए एक मिशाल बन गई हैं। देसी खाद से उगाई गई सब्जियोें से न सिर्फ वह अपने परिवार बल्कि आस-पास के दर्जन भर से अधिक घरों के लोगों को निरोगी काया का उपहार दे रही हैं।

खेती-किसानी में बढ़ते रासायनिक खादों के इस्तेमाल से अब लोग देसी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। गांवों को छोड़ शहरों में तो लोगों को बाहर से आई सब्जियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन बदलते समय के साथ अब शहर की महिलाएं भी घर की क्यारी में स्वास्थ्यवर्धक सब्जियां उगा रही हैंै।

शहर की तमाम महिलाएं अपने घर का काम पूरा करने के बाद थोड़ा समय अपनी क्यारी को भी देती हैं। इनमें एक हैं पुष्पा मौर्य। अलीनगर सुनहरा की रहने वाली पुष्पा कहती हैं कि उनका मन तरह-तरह की सब्जियों को उगाने में लगता है। हमारी क्यारी में गोभी, पालक, सरसों, बैंगन, पपीता, गाजर, मूली, मिर्च, लहसुन, प्याज और टमाटर प्रचुर मात्रा में उगते हैं। पुष्पा के पति राजेश मौर्य सरकारी कर्मचारी हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने करीब 600 स्क्वायर फीट में क्यारियां बना रखी हैं। उनकी पत्नी ही इन क्यारियों में उगने वाली सब्जियों की देखभाल करती हैं। कब खाद डालना है और कब पानी देना है, यह पुष्पा ही देखती हैं। सीजन के अनुसार मैं बाजार से बीज लाकर उनकी बुवाई में सहयोग तो कर देता हूं, लेकिन बाकी सारी जिम्मेदारी वह खुद निभाती हैं।

कई तरह की सब्जियां होती हैं तैयार

पुष्पा मौर्य की अलग-अलग क्यारियों में गोभी, पालक, सरसों, बैंगन, पपीता, गाजर, मूली, मिर्च, लहसुन, प्याज और टमाटर तो साल भर तक खाने के लिए तैयार होती है। सीजन के अनुसार लौकी, कद्दू, सेंम और तरोई तो इतनी ज्यादा होती है कि वह पड़ोसियों को भी खिलाती हैं। पुष्पा कहती हैं कि इसे बांटकर उन्हें काफी खुशी मिलती है। इच्छा यह होती है कि पास के लोग भी खाली पड़े प्लाॅट मंे सब्जियां उगाएं। कहती हैं कि सब्जियों की क्यारियों में मैं सिर्फ देसी खाद यानी गोबर के खाद का ही इस्तेमाल करती हूं।

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बढ़ता गया हौसला

घर के बाहर पड़ी जमीन में एक टमाटर का पौधा देखकर पुष्पा के मन में अचानक ख्याल आया कि और भी पौधे हो जाएं तो टमाटर खरीदने नहीं पड़ेंगे। बस यहीं से उनको हौसला मिल गया। उन्होंने पास में ही केसरीखेड़ा के बाजार से टमाटर, मिर्च, गोभी, और बैंगन के पौधे खरीदे और उनको घर के पास क्यारी में रोप दिए। ये पौधे केवल थोड़ी मेहनत के बाद तेजी से बढ़ते गए। धीरे-धीरे इनमें सब्जियां तैयार होने लगीं। एक बैंगन तो तीन साल तक सब्जी खिलाता है तो चार पौधे लगाए रखने में दिक्कत क्या है ? इस समय हर दिन बदल-बदल कर सब्जियां खाने के लिए तैयार भी हैं।