वाराणसीः धर्म नगरी काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख सातवें विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग (काशी विश्वनाथ) स्वयं विराजते हैं। इस पावन ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन मात्र से मनुष्य के सभी पापों-तापों से छुटकारा मिलता है। काशी विश्वनाथ के इस नगरी में विराजमान होने से ही यहां जो भी प्राणी अपने प्राण को त्यागता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ उसके कान में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से पापी से पापी प्राणी भी सहज ही भवसागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं। उन्हें पुनः संसार बंधन में नहीं जाना पड़ता।
खास बात यह है कि इसी नगरी में बाबा विश्वनाथ सारनाथ सारंगनाथ महादेव मंदिर स्थित ससुराल में साले ऋषि सारंग नाथ के साथ विराजमान हैं। जहां बाबा विश्वनाथ और उनके साले ऋषि सारंग नाथ का शिवलिंग है। मंदिर के गर्भगृह में दोनों शिवलिंग एक साथ है। इस मंदिर में दर्शन पूजन से ससुराल और मायके पक्ष में संबंध प्रगाढ़, सौहार्दपूर्ण हो जाते है। काशी में मान्यता है कि सावन माह में बाबा पूरे एक माह यहां विराजते हैं। सावन माह यहां दर्शन पूजन और जलाभिषेक करने से वही पुण्य मिलता है, जितना कि काशी विश्वनाथ मंदिर में। काशी में वर्षों से भोर में ओम नमः शिवाय प्रभातफेरी निकालने वाले शिवाराधना समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.मृदुल मिश्र ने बताया कि अपने साले सारंग ऋषि की भक्ति से प्रसन्न बाबा विश्वनाथ यहां उनके साथ सोमनाथ के रूप में विराजमान हैं। उन्होंने पुराणों में वर्णित कथा का उल्लेख किया। डॉ. मिश्र ने बताया कि महादेव आदिशक्ति पार्वती के साथ विवाह के बंधन (पाणिग्रहण) में बंधने के बाद कैलाश पर्वत पर ही रह रहे थे। अपने पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना जगदम्बा पार्वती को अच्छा नहीं लग रहा था। एक दिन उन्होंने महादेव से कहा कि आप मुझे अपने घर ले चलिये। यहां रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सभी लड़कियां शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं, मुझे पिता के घर ही रहना पड़ रहा है। महादेव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। वह माता पार्वती को साथ लेकर अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गये। यहां आकर वे विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। उधर, राजा दक्ष प्रजापति (मां पार्वती के पिता) के पुत्र और सती के बड़े भाई सारंग ऋषि तपस्या के बाद हिमालय पर्वत से लौट कर घर आये तो पता चला कि बहन सती (पार्वती) का विवाह महादेव से हो गया है। इस पर उन्होंने अपनी मां से विरोध जताते हुए कहा कि सती का विवाह आपने एक ऐसे व्यक्ति से कर दिया जिसके पास न घर है, न तन पर ढंग के कपड़े। मृगछाला लपेटे भूतों टोली के साथ घूमते फिरते हैं। माता उन्हें समझाती हैं कि जिसके प्रारब्ध में जो होता है उसे वही वर मिलता है। तुम बहुत दिनों बाद आए हो जाकर अपने बहन से मिल आओ। मां के समझाने पर ऋषि सारंगनाथ भारी मात्रा में धन संपदा लेकर बहन पार्वती से मिलने काशी आ रहे थे।
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काशी से कुछ दूर मृगदाव (सारनाथ) पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पूरी काशी ही सोने की तरह चमक रही है। यह देख उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और ऋषि वहीं तपस्या में लीन हो गए। जब इसका बोध काशी विश्वनाथ को हुआ तो वह मृगदाव पहुंचे। महादेव ने तपस्यारत सारंगनाथ से कहा कि व्यथा और दुख को त्याग दे। हर भाई अपनी बहन की सुख-समृद्धि चाहता है। भाई होने के नाते आप भी अपना कर्तव्य निर्वहन कर रहे थे। हम आप के तपस्या से खुश है,वर मांगे। इस पर ऋषि सारंग बोले- प्रभु, हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ सदैव रहें। इस पर भगवान शिव ने उनसे काशी स्थित अपने धाम पर चलने का अनुरोध किया। लेकिन ऋषि सारंग ने साथ जाने से यह कहते हुए मना किया कि यह जगह बहुत रमणीय है। इसके बाद महादेव ने कहा कि भविष्य में तुम सारंगनाथ महादेव के नाम से पूजे जाओगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार सारंग ऋषि की भक्ति से प्रसन्न बाबा विश्वनाथ यहां उनके साथ सोमनाथ के रूप में विराजमान हैं। माना जाता है कि उत्तर भारत में सारंगनाथ महादेव मंदिर ही ऐसा स्थान है। जहां मंदिर के गर्भगृह में दो शिवलिंग विराजमान है।