रघुनाथ कसौधन
Maharashtra New CM: राजनीति दो शब्दों का समूह है राज और नीति। राज का अर्थ होता है शासन करना और नीति का अर्थ होता है उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला। इसका अनुसरण भारतीय राजनेता काफी सलीके से करते हैं और आज की राजनीति में कब क्या हो जाए, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता। विचारधारा, विश्वसनीयता जैसे शब्द आज की राजनीति से गायब होते जा रहे हैं और ‘उचित अवसर’ ही राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा मूल मंत्र बन गया है।
उत्तर प्रदेश के बाद राजनीतिक रूप से दूसरे सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में इन दिनों यही कहानी देखने को मिल रही है। जहां कौन, कब, किसके साथ चला जाए और कौन, कब आपके लिए मजबूरी बन जाए, इसकी थाह मंझे हुए राजनेता भी लगाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
Maharashtra New CM: सीएम के मुद्दे पर बहस पर लगेगा विराम
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसके सहयोगी दलों शिवसेना और एनसीपी को भी अप्रत्याशित सफलता मिली है लेकिन अभी तक सरकार गठन के मुद्दे पर पेंच फंसा हुआ है। मुख्यमंत्री पद के मुद्दे के साथ ही विभागों के बंटवारे को लेकर लंबी बयानबाजी के साथ अटकलों का दौर अभी तक जारी है। फिलहाल बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पर्यवेक्षक बनाकर काफी हद तक मुख्यमंत्री के मुद्दे पर बहस पर विराम लगाने का काम किया है लेकिन अभी भी विभागों के बंटवारे के मुद्दे पर गहमागहमी छिड़ी हुई है।
बहरहाल, बीजेपी ने 05 दिसंबर को मुंबई के आजाद मैदान में मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह का ऐलान कई दिन पहले ही कर दिया है और कल होने वाली बीजेपी बैठक में विधायक दल के नेता के नाम पर भी मुहर लग जाएगी। इन सबके बीच सबसे अहम मुद्दा यह है कि सरकार बनाने के लिए जरूरी आकंड़ों के करीब पहुंचने के बावजूद भाजपा एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना की मान-मनुहार कर रही है। इसके पीछे गहरे सियासी निहितार्थ छिपे हुए हैं।
Maharashtra New CM: बीजेपी के पास मजबूत मराठा छत्रप नहीं
महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए बीजेपी ने दशकों तक भागीरथ प्रयास किया है। बाला साहेब ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के साथ रहकर बीजेपी ने चुनाव-दर-चुनाव छोटे भाई की भूमिका में रहकर अपने पैर जमाने के लिए बड़े प्रयास किए हैं। ताजा हालात यह हैं कि शिवसेना बंट चुकी है और उसके एक धड़े की अगुवाई एकनाथ शिंदे व दूसरे धड़े की अगुवाई उद्धव ठाकरे कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के प्री एग्जाम में सफलता मिलने के बावजूद विधानसभा के मेन्स एग्जाम में उद्धव ठाकरे बुरी तरह फेल हुए हैं और अब उनके सियासी भविष्य पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
इन सबके बीच बीजेपी सबसे मजबूत बनकर उभरी है और उसका दशकों पुराना सपना पूरा हो रहा है। आज वह महाराष्ट्र में शिवसेना की छाया से निकल बड़े भाई की भूमिका में भी आ गई है और उसके शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर सहयोगी दल भी हां में हां मिला रहे हैं। 2024 के इस विस चुनाव में देवेंद्र फडणवीस बीजेपी के सबसे बड़े चाणक्य साबित हुए हैं, जिन्होंने सत्ता को प्राथमिकता न देकर पार्टी की दूरगामी रणनीति को ज्यादा महत्ता दी थी।
हालांकि, अभी भी महाराष्ट्र में बीजेपी के पास कोई मजबूत मराठा नेता नही है, जिसकी वजह से अभी भी बीजेपी को शिंदे सेना की जरूरत है। यही वजह है कि बीजेपी के लिए एकनाथ शिंदे जरूरी भी हैं और मजबूरी भी। कारण कि विधानसभा चुनाव में तो उसे बंपर जीत मिली है लेकिन आने वाले बीएमसी चुनाव के साथ लोकसभा चुनावों में भी यह जुगलबंदी सियासी पैठ बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है।
महायुति की विजय के पीछे मराठा वोटों की अहम भूमिका
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा वोटों का सबसे बड़ा प्रभाव है। राज्य में 288 विधानसभा और 48 लोकसभा की सीटें हैं। इनमें से 150 से ज्यादा विधानसभा और 25 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर मराठा समुदाय का गहरा प्रभाव रहता है। इस चुनाव में महायुति की महाविजय के पीछे मराठा वोटों की अहम भूमिका रही है। मुख्यमंत्री रहते हुए एकनाथ शिंदे ने मराठा आंदोलन को मैनेज करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह सभी बातें बीजेपी को अच्छी तरह से पता हैं, इसलिए वह एकनाथ शिंदे को एकदम से साइडलाइन करने का जोखिम कतई नहीं उठाना चाहेगी।
अजित पवार के इतिहास से डरती है बीजेपी
महायुति में तीन दल शामिल हैं बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी। बीजेपी ने दोनों दलों के साथ मिलकर विस चुनाव की वैतरणी पार कर ली है लेकिन वह अजित पवार से इतिहास को लेकर काफी सशंकित रहती है। हालिया राजनीति उठापटक में अजित पवार खुलकर बीजेपी को सपोर्ट कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इस बार बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बनेगा।
ये भी पढ़ेंः- Maharashtra CM: फडणवीस संभालेंगे महाराष्ट्र की कमान !
इस बयान से बीजेपी थोड़ी खुश जरूर है लेकिन उसे अजित पवार से ज्यादा भरोसा एकनाथ शिंदे पर है। थोड़ा पीछे जाएं तो अजित पवार की गुगली बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर चुकी है इसलिए भाजपा अपनी विचारधारा से साम्य रखने वाले शिंदे पर ज्यादा भरोसा करती है। भाजपा जिस तरह हिंदुत्व की राजनीति करती है, एकनाथ शिंदे भी उसी लाइन पर चलते हैं। चुनाव के दौरान इसका नमूना भी देखने को मिला था। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटोगे तो कटोगे’ नारे ने चुनाव की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई थी और हर तरफ इसकी चर्चा हो रही थी।
एकनाथ शिंदे ने खुलकर इसका समर्थन किया लेकिन अजित पवार ने इससे किनारा कर लिया और कहा कि यह नारा महाराष्ट्र में नहीं चलेगा। हालांकि, इस नारे का चुनाव में व्यापक प्रभाव पड़ा और हिंदू मतदाताओं ने एकजुट होकर महायुति के पक्ष में मतदान किया। इसके असर की पुष्टि मंझे हुए राजनेता शरद पवार ने भी की और करारी हार के बाद कहा कि योगी आदित्यनाथ के नारे ने ध्रुवीकरण करने का काम किया।