ढाका: पाकिस्तान की तरह, बांग्लादेश में भी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली मदरसों की ओर झुक रही है। छात्रों को कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने से बचाने के लिए बांग्लादेश में सभी शैक्षणिक संस्थानों को पिछले साल 16 मार्च से बंद कर दिया गया था। हालांकि, कुछ महीनों तक बंद रहने के बाद कौमी मदरसा को पिछले साल 12 जुलाई से खोल दिया गया। दूसरी तरफ अन्य शैक्षणिक संस्थान बंद हैं लेकिन अभिभावकों को मासिक फीस देनी पड़ रही है। इसलिए जो लोग अतिरिक्त खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, वे अपने बेटों और बेटियों को कौमी मदरसे में प्रवेश कराने के लिए मजबूर हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार बांग्लादेश में निम्न या निम्न मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों को कम से कम थोड़ी सी अंग्रेजी पढ़ाना चाहते हैं लेकिन कोरोना के कारण स्कूल अभी भी बंद हैं। बच्चों का क्लास नहीं हो रहा है लेकिन फीस जमा करना बाध्यता है इसलिए अधिकतर अभिभावक छात्रों को मदरसों में ही दाखिला करवा रहे हैं।
खास बात यह है कि इन मदरसों में आधुनिक शिक्षा अथवा अंग्रेजी की पढ़ाई नहीं होती। इसलिए प्राथमिक स्तर की शिक्षा कौमी मदरसे की ओर झुक रही है। चिंता की बात यह है कि इन मदरसों में महामारी से बचाव के लिए शारीरिक दूरी के प्रावधानों का पालन नहीं हो रहा है।
कमिशनर फॉर द एलिमिनेशन ऑफ घातक दलाल के अध्यक्ष, पत्रकार व लेखक शहरयार कबीर इसे एक भयानक खतरे के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि कौमी मदरसों के प्रति बढ़ते झुकाव से बांग्लादेश में भी एक तालिबान जैसे उग्रवादी समूह अस्तित्व में आ सकता है। क्योंकि 80 के दशक के बाद अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया में आईएस समूह का गठन हो चुका है। बांग्लादेश में भी इसी तरह का समूह बनाया जा सकता है। न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरी दुनिया इससे प्रभावित हो सकती है। क्योंकि कौमी मदरसे अफगानिस्तान या सीरिया में एक आतंकवादी शिविर की तरह है। ये मदरसे कोई नियम नहीं मानते हैं। अपने स्वयं के नियमों के अनुसार शैक्षिक गतिविधियों का संचालन करते हैं।
उन्होंने कहा कि कौमी मदरसों में बांग्लादेश का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया जाता है। राष्ट्रगान गाने की इजाजत नहीं है। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के इतिहास को पढ़ने की अनुमति नहीं है। एक कौमी मदरसा एक आतंकवादी शिविर की तरह है।
शहरयार ने अभिभावकों से अनुरोध किया कि वे अपने बच्चों को इन मदरसों में न भेजें। उन्होंने आरोप लगाया कि कौमी मदरसे में जूनियर छात्रों के साथ वरिष्ठ छात्र और शिक्षक बलात्कार सहित विभिन्न अनैतिक कार्यों में शामिल पाये जाते रहे हैं । उन्होंने कहा कि भारत में देवबंद से कौमी शिक्षा प्रणाली आई है। लेकिन अंग्रेजी शिक्षा सहित आधुनिक शिक्षा को वहां अंगीकार किया गया है। लेकिन बांग्लादेश में, भले ही सरकार कौमी मदरसे को मान्यता देती हो, लेकिन वे कुछ भी नहीं मान रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में 60,000 से अधिक मदरसे हैं। जिनमें से अधिकांश कौमी मदरसे हैं। और 3 मिलियन से अधिक लड़के और लड़कियां इसमें अध्ययन करते हैं। नतीजतन, विभिन्न संगठनों के शोध के अनुसार, पाकिस्तान में उग्रवाद को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इसलिए, जल्द ही इस संबंध में एक आशय पत्र प्रकाशित किया जाएगा। वर्तमान में चल रही कोरोना स्थिति के कारण, महामारी बांग्लादेश की शिक्षा प्रणाली को प्रभावित कर रही है। पिछले साल मध्य मार्च से सभी शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए थे। हालांकि, बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जटबरी से आठ किलोमीटर के राजमार्ग पर लगभग 100 मदरसे नए बने हैं। इनमें से 77 का स्वामित्व कौमी मदरसे के पास है।
बांग्लादेश में मदरसों का इतिहास
बंगाल के पहले मुस्लिम शासक इख्तियार उद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने 1204 ई. में बंगाल की राजधानी गौड़ में एक मस्जिद और मदरसा बनवाया। सुल्तान ग़यासुद्दीन ने 1212 ई. में एक मदरसा की स्थापना की। 2002 की जनगणना के अनुसार, बांग्लादेश में 14987 इबादतू मदरसे, 6402 दरख़्त, 1376 आलिम, 1,050 फ़ाज़िल और 3,000 से अधिक कौमी मदरसे हैं।
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कोरोना काल में बंद हो रहे गैर सरकारी स्कूल
निजी स्वामित्व वाले किंडरगार्डन स्कूलों में संकट और भी भयानक है। देश भर में फैले लगभग 70,000 किंडरगार्डन स्कूलों में दस लाख छात्र अध्ययनरत थे। स्कूलों को अचानक बंद करने के कारण ट्यूशन फीस बंद हो गई और आय की कमी के कारण शिक्षकों और कर्मचारियों को भुगतान करना संभव नहीं था। अधिकारियों ने किराए के मकानों में चल रहे इन स्कूलों को बंद कर दिया है और घरों को छोड़ दिया है। माता-पिता और छात्र भी परेशानी में हैं क्योंकि स्कूल बिना किसी अग्रिम सूचना या नोटिस के बंद हो गए हैं।