MP Elections 2023- भोपालः मध्य प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में संभावना है कि जल्द ही राज्य में आचार संहिता लग सकती है। प्रदेश में यह तय है कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच होगा, लेकिन छोटे दल इन दोनों प्रमुख दलों की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं और लगभग सभी जगहों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने वाला है। लेकिन कई सीटें ऐसी हैं जहां इन दोनों बड़ी पार्टियों से बगावत करने वाले छोटे दल या नेता मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की क्षमता रखते हैं।
छोटे दलों ने अभी तक नहीं खोले पत्ते
प्रदेश में सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी (आप), गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जय युवा संगठन चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। अब तक के चुनावों में कोई भी तीसरी पार्टी दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई है, हां ये सच है कि कई जगहों पर समाजवादी पार्टी या फिर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार हारे हुए उम्मीदवारों की श्रेणी में आ गए हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा आम आदमी पार्टी की ओर से उम्मीदवारों के नाम तय किए जा रहे हैं, जबकि जयस ने अभी तक अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले हैं।
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ये छोटे दल राज्य में प्रभाव रखते हैं और अपनी क्षमता और जमीनी ताकत के आधार पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं और यह स्थिति भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है। सूत्रों का दावा है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बागी इन छोटी पार्टियों की ओर रुख कर रहे हैं, कई ने तो पार्टियां भी बदल ली हैं और उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
50 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस-बीजेपी चिंतित
राष्ट्रीय स्तर पर भले ही विपक्षी दलों ने गठबंधन कर लिया है, लेकिन मध्य प्रदेश में अभी तक किसी तरह के गठबंधन के संकेत नहीं हैं। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सकारात्मक बातचीत की उम्मीद जताई है, वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता साधना भारती का कहना है कि प्रदेश में चुनाव दो विचारधाराओं के बीच है, एक तरफ गांधी जी की विचारधारा है तो दूसरी तरफ गांधी जी की विचारधारा है।
ऐसे में छोटे दलों को सोचना चाहिए, मंथन करना चाहिए और फिर फैसला लेना चाहिए। राज्य में 50 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जहां सपा, बसपा या आम आदमी पार्टी चुनाव तो नहीं जीत सकतीं, लेकिन चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता जरूर रखती हैं। इसलिए दोनों प्रमुख राजनीतिक दल चुनाव नतीजों पर इसके असर को लेकर चिंतित हैं।
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