पुराने मामले निपटे नहीं, नए के लग रहे ढेर

22

 

Lucknow Development Authority: विकास प्राधिकरण में भी अधिकारियों से न्याय पाने की उम्मीद में लोग चक्कर लगा रहे हैं। वह बड़ा भाग्यशाली होता है, जिसको यहां आसानी से न्याय मिल जाता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कई महीनों से यहां उपाध्यक्ष से मिलकर उनको अपनी पीड़ा सुनाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं।

एलडीए का हाल भी बदहाल है। यहां शहर के हर छोर से शिकायतें पहुंच रही हैं। परेशान करने वाली बात तो यह है कि बड़े अफसरों के हस्तक्षेप के बिना किसी भी मामले का निपटारा नहीं हो पा रहा है, जबकि बड़े अफसर बडे काम का हवाला देकर मिलते ही नहीं हैं। एलडीए के सामने कोई गरीब है तो कोई अमीर है, लेकिन जो भी है, वह फरियादी है। इनके प्रति अधिकारियों का व्यवहार ऐसे है, मानों वह कोई अपराधी हैं। जब कभी जनता अदालत लगाई जाती है, ढेरों पत्र न्याय की आस में पहुंचाए जाते हैं।

कुछ मामले तो अदालतों तक पहुंच चुके हैं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि उपाध्यक्ष की अदालत में भी गिने-चुने मामले ही निपटाए जा रहे हैं। ऐसे में पुराने तो निपट नहीं रहे, नए अब ढेर होते जा रहे हैं। यह ऐसे मामले हैं, जो एलडीए के न चाहने पर भी उजागर हो जाते हैं। फरवरी में यहां जनता अदालत लगाई गई। इसमें प्राधिकरण के उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी ने सुनवाई की। अफसरों को भी उनके साथ बैठाया गया। गुरूवार 15 फरवरी की अदालत में 34 मामले उपाध्यक्ष के सामने लाए गए। यह वह मामले हैं, जो काफी दिनों से लटकाए जा रहे थे।

यह भी पढ़ें-Swami Prasad Maurya के बाद अब इस दिग्गज ने समाजवादी पार्टी से दिया इस्तीफा

इनमें नामांतरण, फ्री-होल्ड, रजिस्ट्री व अवैध निर्माण आदि से संबंधित थे। लोग अपनी परेशानियां बताते रहे और अधिकारी मामले का हल निकाल पाने में असमर्थ होते रहे। हमेशा की तरह ही ज्यादातर मामले लटका दिए गए, कुछ को ही निपटाया जा सका यानी फरवरी का महीना भी न्याय पाने की उम्मीद में ही बीत रहा है। 34 में केवल 09 को ही निपटाया जा सका, शेष प्रकरणों के निस्तारण के लिए प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉ. इन्द्रमणि त्रिपाठी ने समयसीमा निर्धारित की है। सवाल यह है कि जिन अधिकारियों को कार्यवाही के लिए निर्देशित किया गया, उनमें ज्यादातर मौके पर मौजूद रहे, उसके बाद भी समाधान क्यों नहीं निकाला जा सका। जनता अदालत का उद्देश्य था कि जन सामान्य एवं आवंटियों की समस्याओं को त्वरित गति से निष्पादित किया जाए, लेकिन प्राधिकरण भवन के कमेटी हॉल में काफी उम्मीदों के बाद भी निराशा हाथ लगी।

बसन्तकुंज योजना के सेक्टर-डी निवासी वीरेन्द्र सिंह व मंजूलता कश्यप की विद्युत लाइन ऊर्जीकृत न होने के कारण विद्युत विभाग द्वारा नया कनेक्शन नहीं मिलने की शिकायत थी। इस शिकायत के समाधान के बाद भी एक सप्ताह का समय कार्यवाही में लगेगा। पुराना हैदरगंज निवासी राम विलास श्रीवास्तव की परेशानी थी कि बिजनौर के ग्राम-मौदा में गाटा संख्या-152 पर कुछ लोग अवैध रूप से रो-हाउस भवनों का निर्माण कर रहे हैं। इस मामले में भी अभी आख्या मांगी गई है। मजेदार बात यह है कि जगह-जगह जेसीबी से ध्वस्तीकरण कार्रवाई की जा रही है, लेकिन शुरूआती चरण में ही अवैध निर्माण की जानकारी के बाद भी इस पर रोक नहीं लगाई जाती है। वह भी जब जनता आदलत में मामला पहुंचाया गया, जिसका उद्देश्य ही त्वरित कार्रवाई है।

यही नहीं, लोगों को ईडब्यूएस भवन के रीफंड के लिए चक्कर लगाना पड़ रहा है। गोंडा के करनैलगंज निवासी वकील अहमद को देवपुर पारा के भवन के रिफंड के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। पेपरमिल कॉलोनी निवासी विजय गुप्ता के पिता ने वर्ष 1960 में भवन संख्या-सी-5/10 आवंटित कराया था, तब से वह लोग इसमें रहते हैं और किराया भी जमा करते हैं। अब वह समस्त देय शुल्क जमा कर भवन की रजिस्ट्री कराना चाहते हैं। यह ऐसे काम हैं, जो साधारण प्रक्रिया वाले हैं, लेकिन इनको अफसर टालते रहते हैं। एलडीए उपाध्यक्ष के पास लगातार मामले पहुंच रहे थे, इसलिए इनको जल्द समाधान देने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया गया है।

(रिपोर्ट-पंकज पाण्डेय, लखनऊ)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)