भीषण उमस ने खोली विद्युत विभाग के दावों की पोल, 25 दिनों में फुंके 27,000 ट्रांसफार्मर, रोजाना लगी दो करोड़ की चपत

0
32

transformers

लखनऊः बीते जुलाई माह में भीषण उमस से बढ़ी बिजली की बेतहाशा मांग ने विद्युत विभाग बखिया उधेड़ दी। भीषण उमस ने विद्युत आपूर्ति की तैयारियों की पोल खोलकर रख दी। प्रदेश में जुलाई माह में रोजाना औसतन 1081 ट्रांसफार्मर (transformers) क्षतिग्रस्त होने के साथ ही फुंक गए। ओवरलोडिंग, तेल की कमी, केबल फाल्ट व अन्य वजहों से फुंकने वाले ट्रांसफार्मरों के चलते बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को बिजली संकट झेलना पड़ा। इसके अलावा इतनी अधिक संख्या में ट्रांसफार्मरों के फुंकने के चलते पावर कॉर्पोरेशन को भी रोजाना करीब दो करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। ट्रांसफार्मरों के बड़ी संख्या में फुंकने की वजह भीषण उमस के चलते बेतहाशा बढ़ी बिजली की मांग को माना जा रहा है।

ओवरलोड होने के चलते फुंके अधिकतर ट्रांसफार

प्रदेश में इस बार ऊर्जा प्रबंधन के अनुमान से अधिक बिजली की मांग रही। उपकरणों की मरस्मत समय से नहीं होने से भी दिक्कतें अधिक बढ़ीं। गर्मीं प्रारंभ होने से पूर्व समर प्लान के तहत समय से ट्रांसफार्मरों की लोड जांच व क्षमता वृद्धि और अन्य उपकरणों की मरम्मत न होने से भी मुश्किलें बढ़ीं। पावर कॉर्पोरेशन ने 01 से 25 जुलाई तक के जो आंकड़े तैयार किए, उसके तहत 25 दिनों में ही प्रदेश में 27,024 ट्रांसफार्मर फुंक गए। इन ट्रांसफार्मरों की मरम्मत पर कॉर्पोरेशन को 47.71 करोड़ रुपए करने पड़े।

ये भी पढ़ें..Conjunctivitis: उत्तर भारत में बढ़ी आई फ्लू के मरीजों की संख्या, सावधान रहने…

ओवरलोड होने के चलते अधिकतर ट्रांसफार्मरों () इस दौरान फुंके। आंकड़ों की मानें तो इस अवधि में 10,610 ट्रांसफार्मर ओवरलोडिंग के चलते फुंक गए। इसके अतिरिक्त अनबैलेसिंग के चलते 2005, खराब अर्थिंग की वजह से 41, तेल कम होने से 616, एलटी केबल शार्ट होने से 614, हाईटेंशन लाइन की खराबी से 914, केबल फाल्ट होने से 4203 समेत अन्य कारणों से बड़ी संख्या में ट्रांसफार्मर फुंक गए।

बीते जून माह में रोजाना औसतन 850 ट्रांसफार्मर फुंके, तो जुलाई में बढ़कर एक हजार से ज्यादा की संख्या में ट्रांसफार्मर फुंके। जानकारों की मानें तो सबस्टेशनों पर कैपेसिटर बैंक की स्थापना कर ट्रांसफार्मरों को फुंकने से बचाया जा सकता था। दरअसल, अधिकतर बिजली उपकेंद्रों पर कैपेसिटर बैंक लगे ही नहीं हैं और जहां पर लगाए भी गए हैं, तो वह चल नहीं रहे हैं। व्यवस्था में सुधार के लिए वर्ष 2007-08 में नियामक आयोग ने इक्विपमेंट क्वॉलिटी कंट्रोल कमेटी बनाई थी।

कमेटी ने निर्देश दिए थे कि वितरण निगम उपकेंद्रों के हिसाब से कैपेसिटर बैंकी स्थापना करें ताकि ओवरलोडिंग न हो। इसके बाद भी कैपेसिटर बैंक स्थापित करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विभागीय जानकारों की मानें तो अधिकतर जगह ट्रांसफार्मर ओवरलोड हैं। जिस जगह पर साल भर पूर्व 25 केवी का ट्रांसफार्मर लगा था, वहां अब 63 या 100 केवी के ट्रांसफार्मर की जरूरत है, वहीं 25 केवी के ट्रांसफार्मर के फुंकने पर स्टोर से उसी क्षमता का ट्रांसफार्मर दे दिया जाता है। इसके चलते ही कई जगहों पर ट्रांसफार्मर लगने के दूसरे-तीसरे दिन ही दोबारा फुंक जाते हैं। ऐसे में इन जगहों पर अधिक क्षमता के ट्रांसफार्मर लगाए जाने चाहिए।

मेंटीनेंस के लिए हर माह 10 लाख

पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने इन दिक्कतों को दूर करने के लिए मेंटीनेंस के मद में इजाफा कर दिया है। नई व्यवस्था के तहत वितरण खंडों को मेंटीनेंस के लिए अधिक बजट दिया जाएगा। अब सभी वितरण खंडों को हर माह 10 लाख रुपए मेंटीनेंस के काम के लिए दिए जाएंगे। इस बजट को बचाकर आगे के महीनों में भी उपयोग किया जा सकेगा, वहीं तीन महीने बाद इस व्यवस्था की समीक्षा प्रबंधन द्वारा की जाएगी। नई व्यवस्था के साथ ही बिजली कम्पनियों को मेंटीनेंस कार्य के लिए दिए जाने वाले पांच करोड़ रुपए की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है। अधिक लोड वाले क्षेत्रों की जांच कर वहां पर ज्यादा क्षमता के ट्रांसफार्मर लगाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

(रिपोर्ट- पंकज पांडेय, लखनऊ)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)