बैकुण्ठ चतुदर्शी पर एक साथ होती है भगवान विष्णु और शिव की पूजा, जानें कथा

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लखनऊः बैकुण्ठ चतुदर्शी व्रत रविवार को रखा जाएगा। यह व्रत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा का विधान है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को नरक चतुदर्शी कहते हैं। इस तिथि के अधिपति मृत्यु के देवता यमराज हैं और इसी मास की शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी तिथि को बैकुण्ठ चतुदर्शी कहते हैं, इस तिथि के अधिपति भगवान विष्णु हैं। इस तिथि में दिनभर व्रत रखा जाता है और रात को भगवान विष्णु की पूजा कमलपुष्पों से करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव की पूजा का विधान है। रात बीत जाने पर दूसरे दिन पुनः शिव पूजा करना चाहिए। यह व्रत-पूजन भगवान विष्णु व शिव दोनों के भक्तों के लिए होता है।

बैकुण्ठ चतुदर्शी पूजा का महत्व
बैकुण्ठ चतुदर्शी के दिन हरि और हर की एक साथ आराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्ति भाव के साथ व्रत कर पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होती है। जिससे भक्त की सभी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है और उसके घर में सुख-सम्पत्ति का वास होता है।

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बैकुण्ठ चतुदर्शी की कथा
इस पूजन-व्रत का पौराणिक आख्यान है कि एक बार भगवान विष्णु शिवजी की पूजा करने काशी आए। यहां मणिकर्णिका घाट पर उन्होंने एक हजार कमल पुष्पों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब विष्णु भगवान कमल से पूजन करने लगे तो शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक पुष्प कम कर दिया। भगवान विष्णु कमल पुष्प शिव पर चढ़ाने लगे, एक पुष्प कम देखकर उन्होंने सोचा कि मेरी आंखे कमल के समान है, मुझे कमलनयन कहा जाता है, तो क्यों न कमल पुष्प के स्थान पर अपनी एक आंख ही चढ़ा दूं, ऐसा करने के लिए वह आंख चढ़ाने के लिए उद्यत हुए, तभी भगवान शिव प्रकट हो गए और विष्णु भगवान की भक्ति से प्रसन्न होकर सुदर्शन चक्र दिया और कहा कि यह राक्षसों का अंत करने वाला होगा और इसके समान दूसरा कोई अस्त्र नहीं होगा।

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