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बढ़ गए भारत में शेर

नई दिल्ली: व्यवस्था अच्छी हो और सभी कुछ पर्यावरण अनुकूल हो तो प्रकृति में जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो, उसमें वृद्धि होती ही है। भारत में इन दिनों हर क्षेत्र में वृद्धि देखने को मिल रही है, क्या वन और क्या वन्यजीव । कुछ प्रजातियों की वृद्धि जो कि विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई थी, जो बढ़ोतरी भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के प्रयासों से हो रही है, उसके लिए सभी के प्रयासों की सराहना आज के समय में जितनी की जाएगी वह कम ही होगी। ऐसी ही प्रजातियों में से एक शेर की प्रजाति भी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट के अनुसार शेर कमजोर प्रजातियां हैं।

पहले भले ही एक समय में हो सकता है कि पूरी दुनिया में खासकर यह एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप में स्वतंत्र रूप से घूमते रहे हों, लेकिन आज ऐसा बिल्कुल नहीं है। हाल के सर्वेक्षण को देखें तो इनकी संख्या लगभग 30,000 से घटकर 20,000 हो गई है। इसकी संख्या सभी ओर से सिमटती जा रही है जबकि भारत में लगातार संरक्षण के कारण एवं शिकार नहीं होने देने एवं विशेष निगरानी के चलते इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होते हुए ही देखी जा रही है ।

शेरों की वृद्धि में है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का योगदान अहम

दरअसल, आज हम '' विश्व शेर दिवस'' मना रहे हैं। कभी एशिया समेत विश्व के तमाम देशों से तेजी के साथ घटती इनकी संख्या को भारत ने जैसा थामा, उसके लिए केंद्र की मोदी सरकार के साथ संयोग से गुजरात सरकार का योगदान रहा है। जहां पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी कहते भी हैं, 'जब मैं गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर रहा था, तो मुझे गिर (गिर राष्ट्रीय उद्यान, गुजरात) शेरों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का अवसर मिला। कई पहलें की गईं, जिनमें स्थानीय समुदायों और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवास सुरक्षित हैं और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। शेर राजसी और साहसी होता है। भारत को एशियाई शेरों का घर होने पर गर्व है। विश्व शेर दिवस पर मैं शेर संरक्षण के प्रति उत्साही सभी लोगों को बधाई देता हूं। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत की शेरों की आबादी में लगातार वृद्धि हुई है।' निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शेरों के कुनबे को बढ़ाने के लिए जो कुछ भी अब तक प्रयास किए हैं, वे बहुत ही सराहनीय रहे हैं।

Gujarat, Jan 28 (ANI): Asiatic Lions seen at Sarthana Nature park, in Surat on Wednesday. (ANI Photo)

भारत में सिर्फ गिर राष्ट्रीय उद्यान में पैदा होते हैं शेर

वास्तव में भारत में शेर की वंश वृद्धि को लेकर अब तक किए प्रयास इसलिए भी सराहनीय और श्रेष्ठतम कहे जा सकते हैं, क्योंकि पिछले 100 वर्षों में अपनी ऐतिहासिक सीमा के 80 फीसद से अधिक ये शेर गायब हो चुके हैं। आज के समय में यह शेर वर्तमान में 25 से अधिक अफ्रीकी देशों और एक एशियाई देशों में मौजूद हैं। इनमें एशियाई शेर दुनिया में कहीं और नहीं सिर्फ गिर राष्ट्रीय उद्यान में पैदा होते हैं। यह एशियाई शेर भारत में पाई जाने वाली पांच बड़ी बिल्लियों में से एक हैं, अन्य चार रॉयल बंगाल टाइगर, इंडियन लेपर्ड, क्लाउडेड लेपर्ड और स्नो लेपर्ड हैं।

शेरों की संख्या 523 से 674 हो गई

गुजरात के मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा मीडिया के बीच साझा की गई जानकारी के अनुसार अंतिम जनसंख्या आकलन 2015 में आयोजित किया गया था, जिसमें शेरों की संख्या 523 थी, जो 2010 के अनुमान से 27 प्रतिशत अधिक थी। पिछले साल जून में आई जनसंख्या आकलन रिपोर्ट के अनुसार शेरों की संख्या 674 हो गई है। इसके बाद कहा जा सकता है कि पिछले साल जून में भारत ने एशियाई शेरों की आबादी में 28.87 प्रतिशत की हाई स्पाइक की जनसंख्या बढ़ाने में सफलता अर्जित की है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी इनका क्षेत्र 22,000 वर्ग किमी से बढ़कर आज के समय में 30,000 वर्ग किमी तक हो चुका है। इस तरह इनका भ्रमण का दायरा बढ़ाया जा चुका है ।

शेरों की वंशवृद्धि के लिए सरकार ने चलाईं अनेक परियोजनाएं

शेरों की जनसंख्या को लेकर अब तक के भारतीय संदर्भ में ताजा रिपोर्ट यही बताती है कि यहां पाए जाने वाले एशियाई शेर ज्यादातर प्रतिबंधित गिर वन और राष्ट्रीय उद्यान और इसके आसपास के क्षेत्रों में विचरण कर रहे हैं। हालांकि, पहले वे पश्चिम में सिंध से लेकर पूर्व में बिहार तक फैले भारत-गंगा के मैदानों में घूमते रहते थे। उनके शिकार को देखते हुए भारत सरकार ने विशेष प्रयासों के माध्यम से इन्हें देश में कुछ विशेष जोन बनाकर विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं के माध्यम से जंगल के राजा की रक्षा के प्रयास शुरू किए गए, जिसका इनकी वंशवृद्धि के रूप में आज भरपूर लाभ मिलता दिख रहा है।

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उल्लेखनीय है कि पहला विश्व शेर दिवस 2013 में मनाया गया था। तब से यह दिन राजसी प्रजातियों की रक्षा की लड़ाई में एक प्रतीक बन गया है। दरअसल, विश्व शेर दिवस डेरेक और बेवर्ली जौबर्ट के दिमाग की उपज था, जोकि एक पति-पत्नी की टीम थी। उन्होंने जंगल में रहने वाली शेष बड़ी बिल्लियों की रक्षा के लिए एक बैनर के तहत नेशनल ज्योग्राफिक और बिग कैट इनिशिएटिव जैसी पहल एक साथ शुरू की थी । तब से आज का दिन विश्व शेर दिवस शेरों की घटती आबादी और संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जा रहा है। भारत रॉयल बंगाल टाइगर, भारतीय तेंदुआ, बादल तेंदुआ और हिम तेंदुआ के साथ एशियाई शेर का घर है।

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