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माघी पूर्णिमाः लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

Maghi Purnima, प्रयागराजः माघी पूर्णिमा के अवसर पर शनिवार को लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा, जमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाई। मेला प्रशासन के मुताबिक शाम छह बजे तक करीब 38 लाख 20 हजार स्नानार्थियों और श्रद्धालुओं ने पुण्य लाभ उठाया। माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर चल रहे माघ मेले का आज अनौपचारिक समापन हो गया और कल्पवास भी समाप्त हो गया। वैसे मेले का समापन 08 मार्च को आखिरी स्नान पर्व महाशिवरात्रि पर होगा।

सुरक्षा व्यवस्था पर रहा खास ध्यान

मेला प्रशासन के मुताबिक, सुबह 10 बजे तक करीब 18 लाख 60 हजार, दोपहर 12 बजे तक करीब 25 लाख 50 हजार, दोपहर 2 बजे तक करीब 30 लाख, शाम 4 बजे तक करीब 35 लाख 50 हजार और शाम 6 बजे तक करीब 38 लाख 20 हजार लोगों ने दर्शन किए और आस्था की डुबकी लगाई। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने मेला क्षेत्र का दौरा कर सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित कीं। खोया-पाया केंद्र की ओर से लगातार अनाउंसमेंट कराकर माघ मेला क्षेत्र में अपने परिजनों से बिछड़े लोगों को उनके परिजनों से मिलाया गया। मेले में श्रद्धालुओं को भटकना न पड़े, इसके लिए सड़कों पर संगम का मार्ग, वापसी मार्ग समेत अन्य मार्गों के साइन बोर्ड लगाए गए हैं। माघ मेला क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रही। इस मौके पर एडीजी जोन भानु भास्कर, मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत, पुलिस कमिश्नर रमित शर्मा, पुलिस महानिरीक्षक प्रेम कुमार गौतम, कुंभ मेला अधिकारी विजय किरन आनंद, पुलिस उपमहानिरीक्षक-वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक माघ मेला डॉ. राजीव नारायण मिश्र, प्रभारी अधिकारी जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल दयानंद प्रसाद, अपर जिलाधिकारी मेला विवेक चतुर्वेदी सहित अन्य वरिष्ठ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी भ्रमण कर व्यवस्थाओं का जायजा लेते रहे। यह भी पढ़ेंः-UP: ट्रेन के ठहराव के लिए प्रधानमंत्री को लिखा खून से पत्र माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही संगम तट पर एक माह तक चला कल्पवास अनुष्ठान भी आज समाप्त हो गया। पौष पूर्णिमा से यहां एकत्रित कल्पवासी माघी पूर्णिमा में स्नान करने के बाद अपने घरों के लिए प्रस्थान करना शुरू कर देते हैं। अधिकांश कल्पवासी रविवार को घर लौट जायेंगे, जबकि कुछ कल्पवासी त्रिजटा पर्व पर स्नान कर मेला क्षेत्र छोड़ने की तैयारी में हैं।

कल्पवास क्या है?

कायाकल्प के लिए संगम की रेती पर की गई तपस्या को कल्पवास कहा जाता है। यह व्रत पौष पूर्णिमा से आरंभ होता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि विधान से संकल्प लेते हैं। वे तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में मां गंगा, नगर देवता वेणी माधव और पुरखों का स्मरण कर व्रत शुरू करते हैं। महीने भर जमीन पर सोते हैं। पुआल और घास-फूस उनका बिछौना होता है। तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव एवं पूर्वजों का स्मरण कर त्याग-तपस्या के 21 नियमों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। साथ ही ये कल्पवासी मेला क्षेत्र में बनी अपनी अस्थायी झोपड़ी या तंबू के दरवाजे के पास रेत में तुलसी के पत्ते रोपते हैं और जौ बोते हैं। सुबह स्नान के बाद यहां जल चढ़ाया जाता है। यहां सुबह-शाम दीपक भी जलाए जाते हैं। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय वह इसे प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाएंगे। गंगा की रेती पर एक महीने तक कठोर तपस्या करने के बाद ये कल्पवासी माघी पूर्णिमा पर स्नान करके अपने घर लौटते हैं। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)