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Balrampur Hospital में कहीं MRI बिल्डिंग जैसा न हो जाए मॉड्यूलर OT का हाल

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लखनऊः Balrampur Hospital के नेत्र रोग विभाग को एक नया तोहफा मिला है। यहां अत्याधुनिक मॉड्यूलर ओटी और वार्ड बनकर तैयार हो चुके हैं। यह प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल है, जहां मॉड्यूलर ओटी की सुविधा उपलब्ध होगी। पुराने जर्जर भवन की जगह अब मरीजों को आधुनिक सुविधाओं से लैस ओटी और वार्ड में इलाज मिलेगा। इस नए मॉड्यूलर ओटी में संक्रमण का खतरा काफी कम होगा और मरीजों को बेहतर उपचार भी मिल सकेगा। इसके अलावा, मरीजों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा और उन्हें बेहतर देखभाल मिलेगी।

Balrampur Hospital में डॉक्टरों की कमी

अस्पताल प्रशासन का मानना है कि इस नए मॉड्यूलर ओटी और वार्ड के शुरू होने से मरीजों को बड़े चिकित्सा संस्थानों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अस्पताल के निदेशक डॉ. सुशील प्रकाश ने बताया कि बिल्डिंग हैंडओवर हो चुकी है और जल्द ही इसका उद्घाटन किया जाएगा। पूरी उम्मीद करनी चाहिए कि यहां पर मरीजों को सुविधाएं जल्द मिलनी शुरू हो जाएंगी लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि मॉड्यूलर ओटी और वार्ड भवन का हश्र कहीं एमआरआई भवन जैसा तो नहीं होगा। एक स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने बताया कि अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों को अक्सर निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने चार साल पहले अस्पताल में एमआरआई मशीन लगाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक यह मशीन नहीं लगी है। अस्पताल में कई जांचों से लेकर एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड के अलावा सीटी स्कैन तक की सुविधा मिलती है। जहां रोजाना 05 हजार से अधिक मरीज आते हैं, जिनमें गरीब वर्ग के मरीज ज्यादा होते हैं। उन्हें मुफ्त इलाज से लेकर मुफ्त जांच और मुफ्त दवा तक की सुविधा दी जाती है। हालांकि, कई सुविधाओं के लिए मरीजों को काफी भटकना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिला अस्पताल, लखनऊ का बलरामपुर अस्पताल, संसाधनों की भारी कमी से जूझ रहा है। 776 बेडों वाले इस अस्पताल में रोजाना 5,000 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं लेकिन डॉक्टरों की कमी, आवश्यक मशीनों का अभाव और बुनियादी सुविधाओं का नाकाफी होना मरीजों को मुसीबत में डाल रहा है। कार्डियोलॉजी विभाग में भी डॉक्टरों की कमी है। यहां अधिकांश मरीजों का इलाज डिप्लोमा वाले डॉक्टर कर रहे हैं।

Balrampur Hospital में सुविधाओं का अभाव

बलरामपुर अस्पताल का कार्डियोलॉजी विभाग, जो कभी सबसे बेहतरीन माना जाता था, अब दिल के मरीजों के लिए खतरा बन गया है। यहां डॉक्टरों की भारी कमी और आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। विभाग में एकमात्र डॉक्टर डीएनबी मेडिसिन है और उन पर कई जिम्मेदारियां हैं। विभाग में ईको जांच की सुविधा तक नहीं है। बलरामपुर अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी विभाग का संकट गहराता जा रहा है। 2016 से ही यहां कोई स्थायी प्लास्टिक सर्जन नहीं है। विभाग में एकमात्र प्लास्टिक सर्जन डॉ. प्रमोद के सेवानिवृत्त होने के बाद से यह स्थिति बनी हुई है। इसके चलते विभाग की जिम्मेदारी जनरल सर्जन संभाल रहे हैं। हालांकि, जनरल सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी दोनों ही अलग-अलग क्षेत्र हैं और जनरल सर्जन प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञ नहीं होते। इस कारण मरीजों को समुचित उपचार नहीं मिल पा रहा है और उन्हें निजी और सरकारी अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है।

नर्सों की संख्या में भारी कमी

अस्पताल में स्वीकृत नर्सों की संख्या 178 है, लेकिन वर्तमान में लगभग 10 पद खाली हैं, जबकि मरीजों की संख्या और अस्पताल के बेडों की संख्या को देखते हुए यहां 400 से अधिक नर्सों की आवश्यकता है। मानकों के अनुसार, हर 10 बेड पर 05 नर्सों की तैनाती होनी चाहिए। चूंकि नर्सों का काम 24 घंटे होता है, इसलिए पर्याप्त संख्या में नर्सों का होना अत्यंत आवश्यक है लेकिन अस्पताल में नर्सों की कमी के कारण मौजूदा नर्सों पर कार्यभार बहुत अधिक है। इससे न केवल नर्सों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि मरीजों को भी उचित देखभाल नहीं मिल पा रही है।

अस्पतालों ने सार्वजनिक नहीं की वेंटिलेटर बेडों की जानकारी

राजधानी लखनऊ के प्रमुख सरकारी चिकित्सा संस्थानों- किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लोहिया अस्पताल और पीजीआई में वेंटिलेटर की भारी कमी देखी जा रही है। सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, इन अस्पतालों ने अपने पास उपलब्ध वेंटिलेटरों की संख्या और स्थिति के बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं दी है। राज्य सरकार के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने 26 नवंबर को सभी अस्पतालों को आदेश दिया था कि वे अपने यहां उपलब्ध वेंटिलेटर, बेड और डॉक्टरों की संख्या की जानकारी ऑनलाइन अपडेट करें। यह कदम मरीजों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उठाया गया था लेकिन तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इन अस्पतालों में लगभग 700 वेंटिलेटर होने के बावजूद, गंभीर मरीजों को समय पर वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहा है।

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कई मामलों में तो मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है, जहां उन्हें अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। कुछ मामलों में वेंटिलेटर न मिलने के कारण मरीजों की जान तक चली गई है। केजीएमयू और लोहिया अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी का फायदा उठाते हुए दलाल सक्रिय हो गए हैं। ये दलाल मरीजों को कम कीमत में वेंटिलेटर दिलाने का झांसा देकर निजी अस्पतालों में ले जाते हैं और बदले में मोटी रकम वसूलते हैं। सरकार द्वारा कई बार इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाने और जांच के आदेश देने के बावजूद, स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। केजीएमयू में तो हालात इतने खराब हैं कि ओपीडी से लेकर वार्ड तक में दलालों का जाल बिछा हुआ है। केजीएमयू में प्रतिदिन हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

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