Home अन्य संपादकीय कुंभकोणम तीर्थः जहां गिरी थी अमृत की बूंदें

कुंभकोणम तीर्थः जहां गिरी थी अमृत की बूंदें

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Kumbakonam Tirtha : कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ कुंभकोणम नगर दक्षिण भारत का प्रमुख पावन तीर्थ है। यहां प्रति बारहवें वर्ष कुंभ स्नान का मेला लगता है, जिसमें देश के लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। सागर के जल स्तर से कुंभकोणम तीर्थ की ऊंचाई 27 मीटर है। कुंभकोणम का संस्कृत नाम ‘कुंभघोणम’ है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने अमृत का घट (कुंभ) यहां लाकर रखा था। उस कुंभ की नासिका (घोणा) में से अमृत की कुछ बूंदें बाहर गिर गई थीं, जिससे सोलह किमी तक की भूमि भीग गई थी।

इसी कारण इस तीर्थ का नाम कुंभकोणम पड़ा। कुंभकोणम स्टेशन से लगी तीन किमी उत्तर दिशा में कावेरी नदी है। नदी के तट पर ही महाकालेश्वर महादेव तथा अन्य देव मंदिर हैं, उसमें सुन्दरेश्वर शिवलिंग तथा माता मीनाक्षी (पार्वती) की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इसके समीप ही इन्द्र तथा महामाया का मंदिर है। महामाया मंदिर में स्थापित मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि वह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।

समयपुरम् नामक ग्राम के देवी मंदिर में एक दिन वहां के पुजारी ने देखा कि एक ओर भूमि फटी है और उसमें से एक मूर्ति का मस्तक दिखाई दे रहा है। आहिस्ता-आहिस्ता पूरी मूर्ति स्वयं ऊपर आ गयी, वही मूर्ति वहां से लाकर यहां महामाया मंदिर में स्थापित की गई। कुंभकोणम में स्थित महामघम् सरोवर में श्रद्धालु स्नान करते हैं। वैसे भी कुंभकोणम में अर्द्ध कुंभ स्नान के लिए यही पुण्य तीर्थ माना जाता है। यह सरोवर चारों ओर से पूरा पक्का बना है। कहा जाता है कि कुंभ पर्व के समय इस सरोवर में गंगाजी का प्रादुर्भाव होता है, सरोवर के नीचे से स्वयं जलधारा निकलती है।

सरोवर के चारों ओर घाटों पर सोलह मंदिर हैं। प्रधान मंदिर सरोवर के उत्तर में है। उस मंदिर में काशी विश्वनाथ तथा पार्वती जी की मूर्ति स्थापित है। जनश्रुति है कि महामघम सरोवर में कुंभ पर्व पर गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, महानदी, पयोष्णी और सरयू ये नौ नदियां, जो कि नौ गंगा कहलाती है, स्नान करने आती हैं, वे अपने जल में अवगाहन करने वालों की अनंत पापराशि को, जो उनके अंदर संचित हो जाती है, यहां आकर प्रति बारह वर्ष पर धोतीं है इसलिए इस सरोवर को नवगंगा कुण्ड भी कहा जाता है। यहां स्वयं भगवान विष्णु, शिव तथा अन्य देवता उस समय आकर निवास करते हैं। महामघम् सरोवर में कुंभेश्वर मंदिर की ओर जाने पर रास्ते में नागेश्वर मंदिर मिलता है। इस मंदिर में भगवान शंकर की लिंग-मूर्ति है। पार्वती जी का मंदिर भी अंदर है। परिक्रमा मार्ग में अन्य देव मूर्तियां भी हैं।

यहां सूर्य भगवान का भी एक मंदिर है। भगवान सूर्य ने यहां शंकर जी की आराधना की थी। इसके प्रमाण रूप में नागेश्वर लिंग पर वर्ष में एक दिन सूर्य की रश्मियां गिरती देखी जाती हैं। नागेश्वर मंदिर में एक उच्छिष्ट गणपति जी की भी मूर्ति है। नागेश्वर मंदिर से थोड़ी ही दूर पर कुंभेश्वर मंदिर है। यहीं कुंभकोणम तीर्थ का प्रमुख मंदिर है। इसका गोपुर बहुत ऊंचा है तथा मंदिर का घेरा बहुत विस्तृत है, इसमें कुंभेश्वर लिंग मूर्ति मुख्य पीठ पर है। यह मूर्ति घड़े के आकार की है। मंदिर में ही पार्वती जी का मंदिर है। यहां पार्वती को ‘‘मंगलाम्बिका’’ कहते हैं। यहां भी गणेश जी, सुब्रह्मण्यम् आदि की मूर्तियां परिक्रमा मार्ग में है।

Kumbakonam Tirtha : कला के लिए प्रसिद्ध है रामस्वामी मंदिर

कुंभेश्वर मंदिर से थोड़ी दूर पर ही रामस्वामी मंदिर है। इसमें श्री राम-लक्ष्मण, सीता जी की बहुत सुंदर झांकी है। कहा जाता है कि ये मूर्तियां दारासुरम् ग्राम के एक तालाब से निकली थीं। इस मंदिर में श्रीराम जन्म से लेकर राज्याभिषेक काल तक की संपूर्ण लीलाओं के चित्र दीवारों पर बने हैं। स्तम्भों में विविध लीलाओं को व्यक्त करने वाली बहुत ही सुंदर एवं कलापूर्ण मूर्तियां उत्कीर्ण की गई हैं। यह मंदिर अपनी कला के लिए बेहद प्रसिद्ध है।

रामस्वामी मंदिर के समीप ही शांगपाणि का विशाल मंदिर है। इस मंदिर के अंदर स्वर्ण मण्डित गरुड़ स्तम्भ है। मंदिर के घेरे में अनेकों छोटे मंदिर तथा मण्डप हैं। प्रमुख मंदिर में भगवान शांगपाणि की मनोहर चतुर्भुज मूर्ति है। यह शेषशायी भगवान नारायण की मूर्ति है। श्री देवी और भूदेवी भगवान की चरण सेवा कर रही है। परिक्रमा मार्ग में श्री लक्ष्मी जी का मंदिर है। यहां का मुख्य मंदिर जो घेरे के मध्य में है, एक रथ के आकार का है, जिसमें घोड़े और हाथी जुते हुए हैं। मंदिर की आकृति इस बात को प्रदर्शित करती है कि भगवान शांगपाणि इसी रथ में बैठकर वैकुण्ठधाम से यहां पधारे थे।

शांगपाणि का मंदिर से संबंधित यहां एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि ऋषि भृगु ने जब भगवान नारायण के वक्ष स्थल पर चरण प्रहार किया और उसके लिए भगवान ने भृग को कोई दण्ड तो दिया ही नहीं, उल्टे उनसे क्षमा मांगी, तब लक्ष्मी जी भगवान नारायण से रूठ गयीं। वे रूठकर यहां आयीं। यहां हेम नामक ऋषि के यहां कन्या रूप में अवतीर्ण हुई। भगवान नारायण भी अपनी नित्य प्रिया लक्ष्मी जी का वियोग नहीं सह सके, वे भी यहां पधारे और ऋषिकन्या से उन्होंने विवाह कर लिया। तभी से शांगपाणि और लक्ष्मी जी यहां श्री विग्रह रूप मंें स्थित हैं। शांगपाणि मंदिर के समीप ही सोमेश्वर नामक छोटा सा मंदिर है।

इसमें दो भिन्न-भिन्न मंदिरों में सोमेश्वर शिवलिंग तथा पार्वती की मूर्तियां हैं। कुंभकोणम के बाजार के एक सिरे पर चक्रपाणि मंदिर है, इसमें भगवान विष्णु की मूर्ति है। पास में ही श्री लक्ष्मी जी का मंदिर एक अलग चबूतरे पर स्थित है। कुंभकोणम नगर के समीप ही वेद नारायण मंदिर है। कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में यहीं ब्रह्मा जी ने नारायण का यज्ञ किया था। उस यज्ञ में वेद नारायण प्रकट हुए थे। भगवान ने वहां अवभृथ-स्नान के लिए कावेरी नदी को बुला लिया था, वह अब भी वहां हरिहर नदी के रूप में है। कुंभकोणम में इन मंदिरों के अलावा विनायक, अभिवृद्धेश्वर, काल हस्तीश्वर, बाणेश्वर, गौतमेश्वर आदि मंदिर भी दर्शनीय हैं।

कैसे जाएं कुंभकोणम

– कुंभकोणम, दक्षिण रेलवे के चेन्नई-एगमोर-तिरुचिरापल्ली-रामेश्वरम् रेलमार्ग पर स्थित है।
– सड़क यातायात द्वारा कुंभकोणम दक्षिण भारत से सभी नगरों से जुड़ा हुआ है।
– कुंभकोणम में यात्रियों के ठहरने के लिए कई होटल, लॉज एवं धर्मशालाएं उपलब्ध हैं।

ज्योतिप्रकाश खरे

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