जानिए कौन हैं जनरल मिन आंग, जिनका म्यांमार के तख्तापलट में है सबसे अहम रोल

212

नई दिल्लीः म्यांमार में तख्तापलट हो गया है। असैनिक सरकार और सेना के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर सोमवार तड़के राष्ट्रपति विन मिंत, स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और सत्तारूढ़ नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। इसके बाद सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी है जो एक साल तक चलेगी।

म्यांमार में हुए इस तख्तापलट और एनएलडी के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद से पूरी दुनिया की नजरें अब सेना प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग पर हैं। म्यांमार में तख्तपलट के कुछ ही देर बाद सेना ही ने मिन आंग लाइंग के हाथों में ही सत्ता की कमान सौंपी दी थी। जनरल मिन आंग लाइंग ही अब विधायिका, प्रशासन और न्यायपालिका की जिम्मेदारी संभालेंगे।

म्यांमार में राजनीति पर सेना हमेशा से रही भारी

ऐसा पहली बार नहीं है कि म्यांमार में सेना ने तख्तापलट किया हो इससे पहले सन 1962 में भी ऐसी ही घटना हुई थी। उस समय सेना ने देश पर लगभग 50 सालों तक प्रत्यक्ष रूप से शासन किया था। म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग तेज होने पर साल 2008 में सेना ही नया संविधान लाई। इस नए संविधान में लोकतांत्रिक सरकार और विपक्षी दलों के नेता को जगह दी गई, लेकिन सेना की स्वायत्तता और वर्चस्व को बनाए रखा गया।

म्यांमार में किसी भी कानून को लागू करने के लिए सेना प्रमुख की अनुमति जरूरी है, या ऐसा कहें कि म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार किसी कानून को ला सकती है, लेकिन इसे लागू कराने की शक्ति सेना प्रमुख के पास ही है। पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और प्रशासनिक विभाग सबका नियंत्रण सेना प्रमुख के पास ही रखा गया है। सेना के लिए संसद की एक-चौथाई सीटें आरक्षित हैं और सरकार में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और सीमा मामलों के मंत्री की भी नियुक्ति सेना प्रमुख ही करता है। सेना प्रमुख किसी भी संवैधानिक बदलाव पर वीटो करने का अधिकार रखता है। इसके अलावा, सेना प्रमुख किसी भी चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करने की ताकत रखता है। यहां तक कि सेना देश की दो बड़ी कंपनियों का भी स्वामित्व अपने पास रखती है। इन कंपनियों का शराब, तंबाकू, ईंधन और लकड़ी समेत कई अहम क्षेत्रों पर एकाधिकार है।

कौन हैं जनरल मिन आंग लाइंग

जनरल मिन आंग लाइंग की उम्र 64 साल है। जिन्होंने म्यांमार में तख्तापलट का सबसे अहम रोल निभाया है। इन्होंने साल 1972-74 तक यंगून यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की। जब लाइंग कानून की पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त म्यांमार में राजनीति में सुधार की लड़ाई जोरों पर थी।

डिफेंस एकेडमी में लिया था दाखिला

डीएसए एकेडमी में साथ पढ़े एक छात्र ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब साथी छात्र प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे तो मिन आंग लाइंग मिलिट्री यूनिवर्सिटी डिफेंस सर्विसेज एकेडमी (डीएसए) में दाखिले के लिए प्रयास कर रहे थे। साल 1974 में तीसरे प्रयास में जाकर लाइंग को एकेडमी में दाखिला मिला। लाइंग एक औसत दर्जे के कैडेट थे।

मिन आंग लाइंग 30 मार्च 2011 को सेना प्रमुख बने। इस दौरान म्यांमार लोकतंत्र की तरफ कदम आगे बढ़ा रहा था। मिन आंग लाइंग ने सेना में आने के बाद ज्यादातर समय म्यांमार की पूर्वी सीमा पर विद्रोहियों से लड़ाई में बिताया। ये इलाका म्यांमार के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए जाना जाता है।

यह भी पढ़ेंः-किसान मुद्दे पर राज्यसभा में जमकर हंगामा, सभापति बोले- कल होगी चर्चा

साल 2009 में मिन आंग लाइंग ने म्यांमार-चीन सीमा पर कोकांग विशेष क्षेत्र में सशस्त्र गुटों के खिलाफ जो ऑपरेशन चलाया, उससे वो सुर्खियों में आ गए। लाइंग ने सिर्फ एक हफ्ते के भीतर इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और सीमाई इलाके से विद्रोहियों को खदेड़ दिया। इस ऑपरेशन के बाद करीब 30,000 लोगों ने चीन में भागकर शरण ली। इस ऑपरेशन के बाद कोकांग का अहम व्यापारिक मार्ग भी खुल गया।