spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeछत्तीसगढ़किसान सभा ने बजट को बताया कॉर्पोरेट परस्त, कहा- बढ़ेगी आदिवासियों की...

किसान सभा ने बजट को बताया कॉर्पोरेट परस्त, कहा- बढ़ेगी आदिवासियों की बेदखली

रायपुर: छत्तीसगढ़ किसान सभा ने केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट को कृषि व्यापार करने वाली कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने वाला, किसान विरोधी, आदिवासी विरोधी और कॉर्पोरेट परस्त बजट करार दिया है।

उन्होंने कहा है कि बजट प्रावधानों से देश में कृषि संकट बढ़ने के साथ ही किसानों और आदिवासियों की बेदखली भी बड़ी तेजी से बढ़ेगी। इस बजट में मनरेगा के मद में वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 34 प्रतिशत की कटौती की गई है। बजट में अपनी आजीविका खोकर गांवों में पहुंचने वाले आप्रवासी मजदूरों के लिए कोई राहत नहीं हैं और न ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने और किसानों को कर्जमुक्त करने के बारे में कुछ कहा गया है, जिस मुद्दे पर आज पूरे देश के किसान आंदोलित हैं। कुल मिलाकर यह बजट आर्थिक संकट का बोझ आम जनता पर डालने के लिए कृषि संकट, महंगाई और बेकारी बढ़ाने के सिवा और कुछ नहीं करता।

आज यहां जारी बजट प्रतिक्रिया में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि जिस प्रकार सरकारी उद्योगों की जमीन को बेचने की घोषणा की गई है, उसका सबसे ज्यादा असर कोरबा, बस्तर, कोरिया व सूरजपुर जैसे जिलों में एसईसीएल, एनएमडीसी व एनटीपीसी द्वारा अधिग्रहित, लेकिन अप्रयुक्त जमीनों पर पड़ेगा और उस पर काबिज मजदूर-किसानों और आदिवासियों को बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना होगा। इसी प्रकार 2.5 लाख करोड़ रुपये के बजट से उतना भी खाद्यान्न भंडारण नहीं होगा, जितना पिछले साल हुआ है।

कृषि बजट में वर्ष 2019-20 में किये गए वास्तविक खर्च की तुलना में 8% की भारी कटौती की गई है। इससे स्पष्ट है कि किसानों को किसान विरोधी कानूनों की मंशा के अनुरूप खुले बाजार में धकेलने की योजना लागू की जा रही है। इससे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली खतरे में पड़ने वाली है। उन्होंने कहा है कि यह हास्यास्पद है कि जिस कृषि विकास के नाम पर पेट्रोल-डीजल पर सेस लगाया गया है, उसका अधिकांश भार खेती-किसानी करने वालों पर ही पड़ने जा रहा है। ग्रामीण जनता भुखमरी का शिकार हो रही हैं, लेकिन उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने और देश के खाद्यान्न भंडार को उनकी भूख मिटाने के लिए खोलने की कोई योजना इस सरकार के पास नहीं है, जबकि अर्थव्यवस्था में मांग के अभाव और मंदी का मुकाबला बड़े पैमाने पर रोजगार के सृजन, मुफ्त खाद्यान्न वितरण और नगद राशि से मदद करने के जरिये आम जनता की क्रय-शक्ति बढ़ाकर ही किया जा सकता है।

यह भी पढ़ेंः-प्रियंका ने डाॅगी डायना के साथ फोटो की शेयर, लिखा-वाइट टाइगर…

बजट में किसानों की आय दुगुनी करने की फिर से जुमलेबाजी तो की गई है, लेकिन यह बताने के लिए तैयार नही कि पिछले चार सालों में किसानों की आय कितनी बढ़ी है। इसी प्रकार 65 हजार करोड़ रुपये की किसान सम्मान निधि देश के 14.5 करोड़ लघु और सीमांत किसान परिवारों के लिए नितांत अपर्याप्त है। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश से अपने हाथ खींच रही है और इसके दुष्परिणामों के खिलाफ, इस बजट के किसान विरोधी प्रावधानों के खिलाफ और देशव्यापी किसान आंदोलन की मांगों के समर्थन में पूरे प्रदेश में अभियान चलाकर जनता को लामबंद किया जाएगा।

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें