मंडी में शिवरात्रि पर आज भी लगता है ऐतिहासिक मेला, राजा ईश्वरी सेन का लगता था दरबार

0
71

mandi-shivratri

मंडी: मंडी में शिवरात्रि का संबंध राजा ईश्वरी सेन से जोड़ा जाता है। साल 1782 से 1793 तक राजा ईश्वरी सेन कांगड़ा के राजा संसार चंद कटोच की कैद में रहे। 1792 में कांगड़ा पर गोरखाओं द्वारा आक्रमण करने के बाद ईश्वरी सेन रिहा हए थे। उनके मंडी पहुंचने पर प्रजा द्वारा लोकोत्सव का आयोजन किया गया। जो आगे चलकर शिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। मंडी शिवरात्रि आज की तरह पड्डल मेदान में न मनाकर दमदमा महल के नीचे सेरी बाजार में चानणी के साथ मनाई जाती थी। सेरी चानणी में ही राजा का दरबार भी लगता था। जहां पर वे लोगों की समस्याएं भी सुनते थे और मेले का आनंद भी लेते। इसी पर आधारित 1793 में मंडी के चित्रकार सजनु द्वारा मंडी कलम के रूप में पहाड़ी पेंटिंग आर्ट वर्क में शिवरात्रि की एक उत्कृष्ट पेंटिंग बनाई। जिसमें राजा ईश्वरी सेन को मंडी राज्य के राजा के रूप में राज्य अभिषेक के बाद दरबार लगाया गया दिखाया है।

ये भी पढ़ें..फिल्म की सफलता के लिए सिद्धिविनायक मंदिर पहुंचा ‘Shehzada’, फैन्स के…

कांगड़ा पर आक्रमण करने के बाद जब गोरखाओं ने मंडी के राजा ईश्वरी सेन को बहाल कर दिया, तो उनके राज्य की राजधानी मंडी लौटने पर उनका स्वागत किया गया था। इस अवसर पर राजा ने राज्य के सभी स्थानीय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव का आयोजन किया, संयोग से यह दिन शिवरात्रि उत्सव के दिन पड़ा। तब से हर साल शिवरात्रि के दौरान मंडी मेला लगता है। ईश्वरी सेन अपने साथ चित्रकार सजनू को कांगड़ा से लाए थे और तुरंत अपने दरबार में पहाड़ी चित्र शैली में बड़े कैन्वास पर चित्रों को बनाना शुरू कर दिया।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)