खतौली चुनावः भाजपा-रालोद ने झोंकी ताकत, दलित वोट बना ट्रंप कार्ड

21
jayant-chaudhary

खतौलीः पश्चिम यूपी के मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर उपचुनाव हो रहा है। मतदान का दिन नजदीक आने के साथ-साथ जातीय समीकरण साधने के लिए भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस सीट पर दलित वोट ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। भड़काऊ भाषण मामले में विधायक विक्रम सैनी को सजा मिली, जिससे इस सीट पर चुनाव हो रहा है। भाजपा ने इस सीट पर विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को चुनाव मैदान में उतारा है तो रालोद ने मदन भैया पर दांव लगाया है। रालोद को सपा का समर्थन है।

ये भी पढ़ें..परिवहन विभाग के फर्जी चालान की खुली पोल, दस्तावेज पूरे होने के बाद भी…

यहां पिछले चुनाव में बसपा तीसरे स्थान पर रही थी, पर इस बार चुनाव मैदान में नहीं है। ऐसे में मुकाबला आमने-सामने का है। जयंत चौधरी ने बड़ी-बड़ी सभाओं से माहौल बनाना शुरू किया है। वहीं भाजपा की तैयारी भी काफी मजबूत है। इस सीट पर दलित वोटर 50 हजार से ज्यादा हैं। भाजपा ने दलितों को जोड़ने के लिए पूरी टीम उतारी है। मंत्रियों और प्रदेश पदाधिकारियों की फौज उतारी रखी है। प्रदेश संगठन मंत्री धर्मपाल ने खुद जाकर दो तीन बार इस सीट पर व्यक्तिगत बूथ स्तर तक की मीटिंग कर चुके हैं। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी इस सीट को जीतने के लिए कई बैठकें कर चुके हैं।

पश्चिमी यूपी की नब्ज को समझने वाले कहते हैं कि कांग्रेस व बसपा के प्रत्याशी मैदान में न होने से रालोद और भाजपा में सीधी टक्कर है। रालोद जाट-गुर्जर-मुस्लिम समीकरण के साथ-साथ दलित वोटों को भी पाले में खींचने के प्रयास में जुटी है। खतौली सीट को रालोद हर हाल में जीतना चाहती है। इसलिए उसने पूरी ताकत लगा रखी है। दलित वोट को छिटकने से बचाने के लिए चंद्रशेखर को लगाया है। हालांकि वह दलित वोट पाने में कितने कामयाब होंगे। यह तो आने वाला चुनाव परिणाम बताएगा।

रालोद के एक पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी ने खतौली विधानसभा सीट को 35 सेक्टर में बांटा है। हर सेक्टर में 50 कार्यकतार्ओं की टीम लगी है, जो घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं। हर समाज का साथ मिल रहा है। खासकर इस बार बसपा के मैदान में न होने से दलित वोट रालोद के साथ है। रालोद को आजाद समाज पार्टी का समर्थन भी मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि खतौली उप चुनाव में भाजपा और गठबंधन ने जातीय गणित साधने की तैयारी की है। जातियों के हिसाब से ही जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदारी दी गई है। उपचुनाव में जातीय गणित का फार्मूला कितना कामयाब रहेगा यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इस सीट पर दलित वोट काफी निर्णायक है। अगर इस सीट का इतिहास देखें तो बसपा इस सीट पर 2007 में महज एक बार ही जीत का परचम फहराया है, लेकिन उसके बाद से दोबारा नहीं जीती। पिछले पांच चुनाव में मिले वोटों के आंकड़े को देखें तो बसपा का एवरेज वोट 20 फीसदी के करीब रहा है और उसे 30 से 40 हजार के बीच उसे वोट मिलता रहा है।

दलित मतदाता भी यहां पर 40 हजार के करीब है, जो बसपा को हार्डकोर वोटर माने जाते हैं। खतौली में 2017 के चुनाव में भाजपा ने तकरीबन आठ फीसदी वोटों के अंतर से आरएलडी से यह सीट जीती थी। ऐसे में इस सीट पर दलित वोटर काफी महत्वपूर्ण भूमिका तय करेगा। पांडेय ने कहा कि मुख्य चुनाव में दलित बहुल बूथों पर बसपा को खूब वोट मिले थे। मगर, इस बार बसपा प्रत्याशी मैदान में नहीं है। देखने वाली बात यह होगी कि अनुसूचित जाति के वोट किसके हिस्से में आते हैं।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)