Monday, March 31, 2025
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Homeफीचर्डअभी भी बरकरार है खटास

अभी भी बरकरार है खटास

राज्यपाल का पद बहुत सम्मानित होता है। अगर उनका अनादर होता है तो उसे पूरे राज्य का अनादर माना जाता है। राज्यपाल को राज्य के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त है, उसे अगर हवाई यात्रा न करने की जाए तो यह राज्यपाल के गरिमा पर ठेस है, करारा आघात है। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी तथा सरकार के बीच का संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारी हवाई जहाज से यात्रा की अनुमति न दिए जाने से राज्यपाल को हवाई जहाज से उतरना पड़ा, अगर किसी राज्य के राज्यपाल को उसी राज्य के हवाई अड्डे पर हवाई जहाज पर बैठने के बाद, यह कहकर उतार दिया जाए कि उन्हें सरकारी हवाई जहाज से यात्रा करने की अनुमति नहीं है, तो यह उस राज्यपाल तथा उस राज्य जिसके वे राज्यपाल हैं, कितनी लज्जा का विषय है। राज्यपाल को हवाई यात्रा से रोके जाने के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से आलोचना की जा रही है, लेकिन इन अलोचनाओं से परे राज्यपाल पद की गरिमा पर इस घटना से कितनी ठेस पहुंची है, इस बात पर बहुत ही गंभीरता से चिंतन करना होगा। राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में जाना था।
 
राज्यपाल की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम 12 फरवरी, 2021 को होने वाला था। इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए राज्यपाल राजभवन से सुबह 9.25 हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए और राज्यपाल अपने काफिल के साथ 10 बजे मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचे। 10.30 बजे हवाई जहाज उड़ान भरने वाला था, फिर भी जब हवाई जहाज ने उड़ान नहीं भरी तो यात्रियों में चर्चाएं होने लगी कि आखिरी विमान उड़ान क्यों नहीं भर रहा, पता चला कि राज्यपाल महोदय को यात्रा के लिए राज्य सरकार की ओर से अनुमति नहीं दी गई थी, लिहाजा राज्यपाल को हवाई जहाज से नीचे उतरना पड़ा और राज्यपाल ने दूसरे हवाई जहाज से अपनी यात्रा पूरी। यात्रा पूरी करने के बाद राज्यपाल ने इस मामले में बड़ी शालीनता से जबाव देते हुए कहा कि किसी वजह से उन्हें निर्धारित हवाई जहाज से सफर करने की अनुमति नहीं मिली। 

जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से यह पूछा गया कि क्या निजी दौरा होने की वजह से आपको सरकार की ओर से यात्रा की अनुमति नहीं दी गई, तो इस पर राज्यपाल ने कहा कि आईएएस अधिकारियों का दौरा निजी दौरा कैसे हो सकता है। इस पूरे मामले में हालांकि राज्यपाल ने बड़ी शालीनता दिखायी लेकिन अपनी प्रतिक्रिया में जो कुछ राज्यपाल ने कहा उससे साफ है कि वे सरकार के व्यवहार से प्रसन्न नहीं हैं। राजभवन के सूत्र जहां एक ओर यह बता रहे हैं कि राज्यपाल के इस दौर के बारे में राज्यपाल के सचिवालय की ओर से राज्य सरकार के अधीन अधिकारियों को विगत 2 फरवरी को ही सूचित कर दिया गया था, यानि राज्यपाल के मसूरी दौरे के बारे में राज्य सरकार के अधीन अधिकारियों को 10 दिन पहले से ही सूचना दे दी गई, ऐसा होने पर भी राज्य सरकार की ओर से राज्यपाल को यात्रा की अनुमति क्यों नहीं दी गई, इस संदर्भ में राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि राज्यपाल के सचिवालय को राज्यपाल के दौरे से पहले इस बात की तफ्तीश कर लेनी चाहिए थी कि राज्यपाल को यात्रा की अनुमति मिली है या नहीं। 

यहां सवाल यह उठता है कि जब दस दिन पहले ही सरकारी अधिकारियों को राज्यपाल के दौरे की अनुमति देने संबंधी प्रस्ताव भेजा जा चुका था तो संबंधित सरकारी अधिकारियों की यह नैतिक जिम्मेदारी थी कि राज्यपाल के दौरे से पहले उन्हें यह बता चाहिए था कि उन्हें सरकारी हवाई जहाज से यात्रा करने की अनुमति मिली है या नहीं। राज्यपाल के दौरे को लेकर राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा बरती गई लापरवाही यही बता रही है कि राज्यपाल तथा राज्य सरकार के बीच की दूरियां अभी-भी बरकार है। राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी तथा राज्य के महाविकास आघाडी सरकार के बीच के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे हैं। एक दिन भी राज्यपाल  और राज्य सरकार के बीच सौहार्दपूर्ण स्थिति देखने को नहीं मिली है। 

राज्यपाल पद आसीन भगत सिंह कोश्यारी का अपमान किसी व्यक्ति का अपमान न होकर पूरे महाराष्ट्र का अपमान है। इस घटना के लिए केवल मुख्यमंत्री ही नहीं राज्य की महाविकास आघाडी की सरकार में शामिल सभी मंत्रियों तथा मुख्यमंत्री सचिवालय में काम करने वाले सभी अधिकारियों को सामूहिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। मसूरी के दौरे से पहले राज्यपाल को विमान का उपयोग करने की अनुमति न दिए जाने से राज्यपाल को अपनी निधार्रित विमान की जगह दूसरे विमान से सफर करना पड़े, इसे बड़ी लापरवाही करार देना गलत नहीं है। इतनी बड़ी भूल के बाद भी राज्य सरकार की ओर से अगर यह कहा जा रहा है कि राज्यपाल को विमान से उतरने के मामले में सरकार ने किसी भी तरह की गलती नहीं है, इससे सरकार कीतनी मगरूर है, इस बात का खुलासा होता है। 
मुख्यमंत्री भले ही इस मामले में यह कह रहे हो कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सबंधित विभाग ही जब यह कह रहा है कि इसमें अधिकारियों का कोई दोष नहीं है, तो फिर कार्रवाई कैसे होगी। राज्यपाल के सचिवालय से हवाई जहाज का उपयोग करने संबंधी प्रस्ताव भेजा गया लेकिन इस प्रस्ताव के बाद उस पर कुछ कार्रवाई करने की जगह संबंधित विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों ने कुंभकर्णी नींद सोने का ही सबब पेश किया है।  राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी उत्तराखंड में हुई प्राकृतिक आपदा का अवलोकन करने के लिए देहरादून भी जाने वाले थे। 

राज्यपाल को निर्धारित हवाई जहाज से क्यों नहीं जाने दिया गया, यह तो शोध का विषय है, लेकिन इतना तो तय है राज्यपाल को जिस तरह से हवाई जहाज से उतारा गया, उससे महाराष्ट्र सरकार तथा उनके अधिकारियों के दामन पर जो दाग लगा है, उसे धो पाना आसान नहीं होगा।  मुंबई के पालक मंत्री अस्लम शेख ने इस मुद्दे पर कहा है कि राज्यपाल का हम सन्मान करते हैं, ऐसी घटना क्यों हुई उसकी जांच की जाएगी। विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने राज्यपाल के साथ हुए बर्ताव के लिए राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सच तो यह है कि राज्य में महाविकास आघाडी सरकार के गठन के पहले से ही राज्यपाल और शिवसेना, राकांपा तथा कांग्रेस के नेताओं के बीच टकराव के कई मामले सामने आते रहे हैं। राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश करने का मौका किए जाने समेत कई मुद्दों पर राज्यपाल और उक्त तीन राजनीतिक दलों के बीच मतभेद भी उभरकर सामने आते रहे हैं। 

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राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संघर्ष अभी-भी थमा नहीं है, इस बात का खुलासा राज्यपाल के हवाई यात्रा में उत्पन्न की गई बाघा के बाद एक बार फिर उजागर हो गया है। राज्य सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे को राज्यपाल नामांकित विधायकों में सहजता के स्थान न देने, सरकार बनाते वक्त अनेक तरह से परेशान करने के बात मन में रखने के कारण राज्यपाल और राज्य सरकार में संघर्ष कई बार होता दिखायी दिया है। कंगना राणावत के मुद्दा हो या फरि पूर्व नौ सेना अधिकारी पर हुए हमले का मामला सभी में राज्यपाल के द्वारा खटखटाए जाने से सरकार और राज्यपाल के बीच की दूरी और ज्यादा बढ़ी है और राज्यपाल को हवाई यात्रा पर जाने से रोकने की घटना के बाद एक बार फिर यह बात सामने आई है कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच के रिश्तों में अभी-भी खटास बरकार है।

सुधीर जोशी (महाराष्ट्र)

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