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Ganesh Chaturthi: गणपति बप्पा को घर लाते समय इन बातों का रखें खास ध्यान

नई दिल्लीः भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है और हिंदू धर्म में किसी भी पूजा के आयोजन में सबसे पहले गणपति बप्पा की ही पूजा की जाती है। भगवान गणेश को सुख-समृद्धि का प्रदाता माना जाता है और वह अपने भक्तों की सहज भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें सभी देवताओं का प्रिय भी माना जाता है, ऐसे में गणेश उत्सव का पर्व पूरे देश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। गणपति बप्पा के स्वागत की तैयारियों में भक्त जोर-शोर से जुट गए हैं। इस बार भगवान गणेश का उत्सव भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 31 अगस्त से शुरू हो रहा है। पंडालों के अलावा तमाम श्रद्धालु अपने घरों में भी भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ उनका पूजन-अर्चन करते हैं। अगर आप भी गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करने की सोच रहे हैं, तो कुछ बातों का आपको विशेष ध्यान रखना चाहिए।

भगवान विनायक को घर लाते समय इन बातों का रखें ध्यान
सबसे पहले श्रद्धालुओं को भगवान गणेश की मूर्ति खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए। मूर्ति की मुद्रा पर जरूर ध्यान दें। वास्तु के अनुसार, ललितासन यानी बैठी हुई मुद्रा में भगवान गणेश की प्रतिमा सबसे अच्छी होती है। इस मूर्ति को घर लाने से सुख-समृद्धि और शांति आती है।

भगवान गणेश के सूंड की दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गणपति बप्पा की सूंड बाईं ओर झुकी होनी चाहिए। ऐसी मूर्ति स्थापित करने से बप्पा जल्द ही प्रसन्न होते हैं। यदि आप दाएं ओर झुकी हुई सूंड की प्रतिमा लाते हैं, तो बप्पा को प्रसन्न करना काफी मुश्किल है।

एक बात का और भी ध्यान रखना चाहिए कि मूर्ति में मूशक और हाथों में मोदक हो। मोदक भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है और मूशक उनका वाहन है।

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वास्तु के मुताबिक, यदि आप घर में गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करने जा रहे हैं तो आत्मविश्वास जगाने के लिए लाल सिंदूर रंग की प्रतिमा ही घर लाएं। ऐसा करने से आपके घर में सुख-समृद्धि आएगी।

वास्तु शास्त्र के मुताबिक, भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना करते समय दिशा का सबसे अधिक ध्यान रखें। गणेशजी की मूर्ति उत्तर दिशा में रखें, क्योंकि इस दिशा में मां लक्ष्मी के साथ शिवजी भी वास करते हैं। इसके साथ ही उनका मुख घर के मुख्य द्वार की ओर होना चाहिए।

इस मंत्र का करें जाप
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरुमे देवः सर्वकार्येषु सर्वदा॥

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