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अब ईंट भट्ठों का ईंधन बनेंगे गोबर के कंडे, कान्हा उपवन की नई पहल से बढ़ेगी आय

लखनऊः ट्रांसपोर्ट नगर एरिया में स्थित कान्हा उपवन तमाम खूबियों के चलते मशहूर है। सैकड़ों गायों के लिए सुरक्षित बसेरा होने के साथ-साथ यह तमाम महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है। अब इस उपवन ने एक नई पहल की है और अब यहां पर बनने वाले कंडे ईंट भट्ठों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त किए जाएंगे। जिससे न सिर्फ इसके आय में बढ़ोत्तरी होगी, बल्कि तमाम लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

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कान्हा उपवन में करीब 1,200 गौवंश

शहर के कान्हा उपवन में इन दिनों कंडे नहीं बनाए जा रहे हैं, लेकिन काम यह ज्यादा और दिन रूकने वाला नहीं है। मौसम ने अब करवट बदलनी शुरू कर दी है और तापमान बढ़ने लगा है। नगर निगम के कान्हा उपवन में महिलाएं कंडा बनाकर अपना खर्च तो निकालती ही हैं, साथ ही गोबर का सही इस्तेमाल भी करती हैं। अमौसी के इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित कान्हा उपवन में करीब 1,200 गौवंश हैं। यहां बड़ी संख्या में गोबर रोज निकलता है। सर्दी के दौरान की समस्या यह रहती है कि धूप हल्की या नहीं होने के कारण कंडे सूखते नहीं हैं। इससे बाकी गोबर का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है। उपवन के कर्मचारी गोबर को खाद के लिए इधर-उधर पहुंचाते हैं, लेकिन इससे आय के स्रोत पर फर्क पड़ता है। यहां जो भी गौवंशीय पशु हैं, उनके गोबर से बने कंडे अभी तक बैकुंठ धाम पहुंचा दिये जाते थे, मगर उपवन में पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, इससे गोबर की मात्रा भी बढ़ रही है।

श्मशान घाट के साथ ईंट भट्ठों पर होगी कंड़ों की सप्लाई

अब कोशिश की जा रही है कि पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत जो मशीन खरीदी गई थी, उससे कंडे बनाने का सिलसिला तेज किया जाए। यह कंडे श्मशान घाट के अलावा ईंट भट्ठों को सप्लाई कर दिए जाएंगे। कोशिश है कि लकड़ी और कोयले की जगह पर इनका इस्तेमाल किया जाए। इससे प्रदूषण भी कम होगा, साथ ही लकड़ी की अपेक्षा कंडे सस्ते होंगे तो महंगाई भी कम की जा सकेगी। एक फायदा यह भी होगा कि भूसा का खर्च निकालने में बछडे़ भी काम आ जाएंगे। इन्हें भी तमाम गौशालाओं में रखा गया है।

कान्हा उपवन के प्रबंधक यतीन्द्र का कहना है कि लोगों के लिए बछड़ों को खिलाने वाला भूसा महंगा पड़ता है, लेकिन जब उनका गोबर को कंडे में खपाया जाएगा तो खर्च भी निकल आएगा। गोबर के कंडे को टिकाऊ बनाने के लिए इसमें कोयला और राल का बुरादा भी मिलाया जाएगा। इससे इनकी आग तेज और टिकाऊ हो जाएगी। जिस मशीन से कंडे बनाए जाते हैं, उसकी स्पीड काफी ज्यादा है। यह मशीन ढाई सेकेंड में एक कंडा बनाकर निकाल देती है। प्रतिदिन इस मशीन से एक हजार कंडे आसानी से निकाले जा सकते हैं। वैज्ञानिकों का दावा यह भी है कि कंडों से निकलने वाला धुआं कोयले की अपेक्षा कम नुकसानदेय होता है। प्रबंधक का कहना है कि कई जगह पर बात चल रही है, जल्द ही इस योजना को मूर्तरूप दिया जाएगा।

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