kamakhya temple:- भारतवर्ष में असंख्य तीर्थ विद्यमान हैं। सनातन धर्म में तीर्थों की विशेष महिमा बताई गई है। कालिका पुराण व देवी भागवत पुराण के अनुसार त्रैलोक्य के पालनकर्ता भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से माता सती का छाया शरीर धीरे-धीरे कटा। उस देह के खण्ड पृथ्वीतल पर जहां-जहां गिरे, उन-उन स्थानों पर कामरूपादि महाशक्तिपीठ अवतरित हो गए। कामरूप देश में छाया रूपी माता सती के शरीर का योनि भाग गिरा।
यह देखकर शिवजी काम से व्याकुल एवं उत्कण्ठित हो गए। कामभाव से शिवजी के द्वारा देखे जाने पर शरीर का योनिभाग पृथ्वीतल को भेदता हुआ पाताल की ओर चल पड़ा। ऐसा देखकर शंकरजी ने अपने अंश से पर्वत रूप धारण करके प्रसन्नतापूर्वक सती की उस योनि को धारण कर लिया।
कामरूपादि सभी शक्तिपीठों में भगवान सदाशिव ने महेश्वरी को पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से कामरूप पीठ, जिसे कामख्या पीठ (Kamakhya Temple) के नाम से भी जाना जाता है वहां रहकर मन में महादेवी का ध्यान करते हुए समाहित चित्त से तपस्या की। यह कामाख्या महापीठ है, यहां परमेश्वरी साक्षात विराजमान होकर अपने साधकों को प्रत्यक्ष फल प्रदान करती हैं। भगवान सदाशिवजी के कामरूप सिद्धपीठ पर उन परमेश्वरी जगदम्बा का ध्यान करते हुए शांत एवं समाहित चिंत होकर तप किया। ब्रह्मा और विष्णु ने भी उसी महापीठ पर रहते हुए कठोर और परम तप किया। बहुत समय बीतने पर जगदम्बा प्रसन्न हुई और उन जगद्माता ने त्रैलोक्यमोहिनी रूप में उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया।
कामना के अनुरूप प्राप्त होता है फल
51 पीठों में (Kamakhya Temple) श्री कामाख्या महापीठ सर्वश्रेष्ठ शक्तिपीठ माना गया है। इस देवीपीठ की अधिष्ठात्री देवी तथा भैरवी कामाख्या देवी या नीलपार्वती हैं। शिव और शक्ति हमेशा एक साथ रहते हैं। कामाख्या देवी के भैरव उमानन्द शिव हैं। जिस स्थान में देवी का योनिमण्डल गिरा था, वह स्थान तीर्थों का राजा है या शक्तिपीठों का राजा है।
ब्रह्मपुत्र नद के तीर पर नीलांचल पर्वत पर स्थित यह स्थान महयोग स्थल के रूप में ख्याति प्राप्त करता है। पुराणानुसार नीलांचल पर्वत पर देवी का योनिमण्डल गिरकर नीलवर्ण का पाषाण रूप हो गया, इस कारण यह पर्वत नीलांचल के नाम से प्रसिद्ध है। उसी पाशाणमय योनि में कामाख्या देवी नित्य स्थित हैं। जो मनुश्य इस शिला का स्पर्श करते हैं, वे ब्रह्मलोक में निवास कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
नीलांचल पर सभी देवता पर्वतरूप में निवास कर अंत में मोक्षलाभ करते हैं। नीलांचल पर सभी देवता पर्वतरूप में स्थित हैं और उस पर्वत का समस्त भू-भाग देवी का स्वरूप है। कालिका पुराण के अनुसार रति पति कामदेव शिव की क्रोधाग्नि में यहीं भस्मीभूत हुए और पुनः उन्हीं की कृपा से उन्होंने अपना पूर्वरूप भी यहीं प्राप्त किया, अतः इस देश का नाम ‘कामरूप’ पड़ा। तंत्रशास्त्र के अनुसार यहां कामना के अनुरूप फल प्राप्त होता है, इसलिए यह ‘कामरूप’ के नाम से विख्यात हुआ। विशेषकर कलियुग में यह स्थान शीघ्र फल प्रदान करता है। इस स्थान के समान दूसरा स्थान नहीं है।
कन्या रूप में विद्यमान हैं मां कामाख्या
सती स्वरूपिणी आद्याशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ को दुनिया का सबसे ऊंचा कौमार्य तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कुमारी-पूजा अनुष्ठान का भी बहुत महत्व है। यद्यपि आद्यशक्ति की प्रतीक सभी कुलों और वर्णों की कुमारियाँ ही हैं। कोई जातिगत भेदभाव नहीं है। इस क्षेत्र में आदिशक्ति कामाख्या सदैव कन्या रूप में विद्यमान रहती हैं।
इस क्षेत्र में सभी जाति-जाति की कुँवारी कन्याएँ पूजनीय एवं पूजनीय हैं। जाति-पाति के भेदभाव से साधक की सिद्धियाँ नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि ऐसा करने से इंद्र जैसे शक्तिशाली देवता को भी अपने पद से वंचित होना पड़ा था।
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुम्भ पर्व का महत्व माना जाता है, उसी प्रकार इस आद्यशक्ति के अम्बुवाची पर्व का महत्व उससे भी अधिक है। इसके अंतर्गत तंत्र-मंत्र में निपुण साधक विभिन्न प्रकार की दिव्य अलौकिक शक्तियां प्राप्त कर लेते हैं और पुरश्चरण अनुष्ठान करके अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को स्थिर कर लेते हैं। और यही वह समय होता है जब दुनिया के सबसे पुराने तंत्र मठ (चिनाचारी) आगम मठ के विशेष तांत्रिक लोग तिब्बत से यहां अपनी साधना करने आते हैं।
इस उत्सव में देवी भगवती के मासिक धर्म से पहले गर्भगृह में स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाया जाता है, जो रक्तवर्ण का हो जाता है। इन कपड़ों को मंदिर के पुजारियों द्वारा प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों के बीच विशेष रूप से वितरित किया जाता है। इस पर्व पर न केवल भारत से बल्कि बांग्लादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों से भी तंत्र साधक यहां आते हैं और अपनी साधना के उच्चतम शिखर को प्राप्त करते हैं। यह वाममार्ग साधना का सर्वोच्च स्थान है। मछंदरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, इस्माइलजोगी आदि तंत्र साधक भी यहां सांवर तंत्र में अपना स्थान बनाकर अमर हो गए हैं।
Kamakhya Temple का समय
भक्तों के लिए कामाख्या मंदिर के दर्शन का समय सुबह (8:00) बजे से दोपहर (1:00) बजे तक और फिर दोपहर (2:30) बजे से शाम (5:30) बजे तक है। सामान्य प्रवेश निःशुल्क है, लेकिन भक्त सुबह (05:00) बजे से ही कतारें लगाना शुरू कर देते हैं, इसलिए यदि समय हो तो कोई भी इस विकल्प को चुन सकता है। आम तौर पर इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए वीआईपी प्रवेश टिकट की कीमत चुकानी पड़ती है, जो प्रति व्यक्ति 501 रुपये की कीमत पर उपलब्ध है।
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Maa kamakhya devi temple कैसे पहुंचे?
लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, जिसे गुवाहाटी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के रूप में भी जाना जाता है, कामाख्या मंदिर के सबसे नजदीक यही हवाई अड्डा है। मंदिर एयरपोर्ट से करीब 20 KM दूर स्थित है। लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और अन्य भारतीय शहरों के लिए नियमित उड़ानों से जुड़ता है। आपको बता दें जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे वह स्थान शक्तिपीठ माना जाता हैं। असम के गुवाहाटी में स्थित Maa Kamakhya Devi Temple भी इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है।
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