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कम वोट पाकर भी 2016 में जीत गए थे ट्रंप, जानें क्या था गणित

नई दिल्लीः 2016 के अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत किसी चमत्कार से कम नहीं थी। इसका कारण था जनता का भरपूर समर्थन। इस बार भी 3 नवंबर को जनता क्या फैसला सुनाएगी, इसके कयास पूरी दुनिया में लग रहे है। दरअसल, पिछले चुनाव में पाने वाले वोट में ट्रंप काफी पीछे थे और हिलेरी क्लिंटन से मुकाबले में एकतरफा हार चुके थे, लेकिन जिस सिस्टम की कभी ट्रंप आलोचना करते थे, उसे इलेक्टोरल कॉलेज की वजह से अंत में उन्हें जीत मिल गई थी। हालांकि 2016 का यह चुनाव कई वजहों से चर्चा में था। पहली बार कोई महिला राष्ट्रपति बनने के इतने करीब पहुंची थी। अमेरिकी चुनाव में रूस का हाथ खुलकर सामने आ गया था और अंत में एक ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बन गया, जिसके खिलाफ खुलकर इतना माहौल बन चुका था।

आगामी 03 नवंबर को अमेरिका की जनता अपना राष्ट्रपति चुनेगी। डोनाल्ड ट्रंप और जो बिडेन में से कौन अगले चार साल तक अमेरिका पर राज करेगा, इसकी तस्वीर साफ होगी। अभी अमेरिका में सारे सर्वे और पोल डोनाल्ड ट्रंप के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं और जो बिडेन को अगला राष्ट्रपति घोषित करते दिख रहे हैं। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में पहले किसी को उम्मीद नहीं थी कि डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बनेंगे। उसके बाद हर सर्वे हिलेरी क्लिंटन को ही चुनाव में आगे बता रहा था और उम्मीद जताई जा रही थी कि अमेरिका को पहली महिला राष्ट्रपति मिल सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को 62,984,825 (46.4 फीसदी) जबकि हिलेरी क्लिंटन 65,853,516 (48.5 फीसदी) वोट मिले थे।

कम वोट मिलने पर भी जीत गए थे ट्रंप

अमेरिका चुनाव में सीधे जनता अपना राष्ट्रपति नहीं चुनती है। वह वोट जो अमेरिकी की जनता डालती है, वो अपने राज्य और शहर के किसी रिप्रेंजेटिव को डालती है। अगर भारत के हिसाब से तुलना करें तो किसी सांसद को, जो बाद में जाकर अमेरिकी संसद में राष्ट्रपति को चुनता है। 2016 के चुनाव में कुल वोटों की संख्या में तो क्लिंटन आगे हो गईं लेकिन जब इलेक्टोरल कॉलेज की बात आई तो उन्हें मात मिली। अमेरिका में कुल इलेक्टर की संख्या 538 है, जिनमें 100 सीनेटर, 435 रिप्रेंजेटेटिव और 3 इलेक्टर वॉशिंगटन डी.सी. से होते हैं। 2020 में डेमोक्रेट्स के कुल डेलिगेट्स की संख्या 3,979 है और जीतने के लिए 1,991 की जरूरत है, जबकि रिपब्लिकन के कुल डेलिगेट्स की संख्या 2550 है और उम्मीदवार बनने के लिए 1276 की जरूरत है।

प्राइमरी और कॉकसस चुनाव की प्रक्रिया

पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं। पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस। इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है। उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है। अगर प्राइमरी चुनाव के बात करें तो यह राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं जो कि खुले और बंद रूप से भी कराए जा सकते हैं। यानी अगर राज्य सरकार चुनती है कि खुले रूप से चुनाव करेगी तो उसमें पार्टी के समर्थक के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है। वहीं अगर बंद रूप से मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं।

अब अगर बात कॉकसस सिस्टम की करें तो यह चुनाव पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं, इसमें पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठे होते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए खड़े हो रहे व्यक्ति की बात सुनते हैं उसके बाद उसी सभा में हाथ खड़े कर एक उम्मीदवार को समर्थन दे दिया जाता है हालांकि ऐसा बहुत ही कम राज्यों में होता है।

प्राइमरी और कॉकसस की बुराईयां

रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स, दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए एक संख्या की जरूरत होती है वह संख्या जो प्राइमरी और कॉकसस के चुनावों में जरूरी होती है। उदाहरण के तौर पर अगर एक पार्टी की तरफ से 10 लोग राष्ट्रपति पद की रेस में है तो उन्हें हर राज्य में होने वाले प्राइमरी या कॉकसस चुनाव में सबसे अधिक डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होगा, अंत में इन्हीं डेलिगेट्स की संख्या के आधार पर नेशनल कन्वेंशन की ओर बढ़ा जाता है।

नेशनल कन्वेंशन में होता है ऐलान

एक बार जब प्राइमरी इलेक्शन खत्म हो जाता है तो यह तस्वीर साफ हो जाती है कि दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन बनेगा, लेकिन इसका आधिकारिक ऐलान नेशनल कन्वेंशन में होता है। डेमोक्रेट्स का नेशनल कन्वेंशन हमेशा जुलाई में होता है और रिपब्लिकन पार्टी का अगस्त के महीने में।

राष्ट्रपति चुनाव और इलेक्टर

अमेरिकी जनता हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करती है लेकिन यह मतदान सीधे उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है। अमेरिकी जनता सबसे पहले स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है, यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है।

इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है, जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं। जनता सीधे तौर पर इन्हीं सदस्यों को चुनती है, जो आगे जाकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। जब अमेरिकी जनता एक बार अपने इलेक्टर को वोट दे देती है तो उसका राष्ट्रपति पद के चुनाव में कोई हाथ नहीं रहता है। सिर्फ यह इलेक्टर पर निर्भर करता है कि वह किसे राष्ट्रपति बनाना चाहता है।

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किस राज्य के पास कितनी ताकत

अमेरिका भी भारत की तरह कई राज्यों का एक देश है। हर राज्य के पास सीटों की अपनी एक ताकत है, जो प्राइमरी और बाद में फाइनल चुनाव में अपना किरदार निभाती है। कुछ राज्य ऐसे हैं जो अकेले दम पर पूरा चुनाव ही बदल सकते हैं जैसे कि भारत में उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे अहम राज्य है। प्राइमरी चुनाव के हिसाब से अमेरिका में सबसे ताकतवर राज्य कैलिफोर्निया है जिसके पास 415 डेलीगेट्स है, इसके बाद टेक्सस 228 और फिर नॉर्थ कैरोलिना 110 के आंकड़े के साथ आता है।