राजस्थान

कलराज मिश्र ने दिया वेदों के बारे में व्याख्यान, कहा-जीवन के सर्वांगीण विकास की कुंजी हैं वेद

जयपुरः राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि वेद ज्ञान परम्परा की वह विरासत हैं जो जड़-चेतन, सारे संसार और पूरे ब्रह्मांड में शांति और कल्याण का रास्ता सुझाती है। उन्होंने कहा कि वेद हमारी प्राचीन जीवन संस्कृति के संवाहक तो हैं ही, साथ ही जीवन के सर्वांगीण विकास की कुंजी भी हैं।

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राज्यपाल ने राज्य सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान संस्कृत अकादमी, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर एवं श्रीकल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय वेद सम्मेलन को वर्चुअली सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि वेद ईश्वर प्रदत्त हमारा ऐसा लिखित संविधान है जिसमें सभी वर्गों के लिए जीवन जीने का सर्वोत्तम ढंग बताया गया है। इसलिए यह जरूरी है कि वेद शाखाओं में से जो कुछ भी विलुप्त हो रहा है, उसे जतन कर बचाया जाए और उसका संरक्षण किया जाए। राज्यपाल मिश्र ने सुझाव दिया कि जटिल वेद मंत्रों की व्याख्या के लिए विद्वतजनों की सेवाएं ली जाए और वेदों में निहित ज्ञान को अनुवाद के जरिए व्यापक पाठक वर्ग तक पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि वेद संस्कृति आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का महत्वपूर्ण आधार हो सकती है। इसलिए वेदों से जुड़े लौकिक व अलौकिक ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रभावी प्रयास करने की जरूरत है।

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वैदिक परम्पराओं के लिए कार्य करने वाले विषय-विशेषज्ञों के लिए सुनियोजित प्रयास किए जाएं। राज्यपाल ने कहा कि देश में नई शिक्षा नीति बहुत सोच विचार के बाद बनाई गई है। इसमें प्राचीन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन के भरपूर अवसर विद्यार्थियों को मिल सकेंगे। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति प्राचीन मूल्यों की मजबूत नींव पर भविष्य के श्रेष्ठ भारत का निर्माण करने वाली है। हमारे प्राचीन ज्ञान और वैदिक परम्परा के विकास के लिए वेद से जुड़े ज्ञान को यदि पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाए तो यह नई पीढ़ी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा। कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने कहा कि वेद ज्ञान के प्राचीनतम स्रोत्र हैं और भारत को दुनिया ने वेदों के माध्यम से ही जाना-पहचाना है। उन्होंने हजारों साल से चली आ रही सस्वर वेद पाठ की परम्परा को संरक्षण प्रदान करते हुए प्रोत्साहित करने पर बल दिया। कार्यक्रम में वेद विद्वानों ने चारों वेदों की ग्यारह शाखाओं के मंत्रों का सस्वर पाठ किया।